MY YOUTUBE VIDEOS

{Disclaimer : इस पेज पर हर कविता के अंत में उस कविता के stage performance की वीडियो का लिंक दिया गया है।}


11. हर लड़के का दिल मुझपर आता है

हर लड़का क्यों मुझसे मिलना चाहता है??
मैं नहीं शर्माती जितना वो शर्माता है,
खामोश रहकर वो अपना प्यार जताता है,
पता नहीं ऐसे शरीफ लड़कों का दिल मुझपर क्यों आता है??     

हर बार मेरा पड़ोसी MORNING WALK का वादा तो करता है,
मगर कभी वक़्त पर नहीं आता है,
MARKET जाऊँ तो वहाँ भी कोई न कोई ताड़ने वाला मिल ही जाता है,
पता नहीं ऐसे छिछोरे लड़कों का दिल मुझपर क्यों आता है??

मैं ठहरी MODERN ज़माने की लड़की, और वो पूछता है,
"क्या तुम्हे खाना बनानां आता है??" 
मुझे पसंद है WESTERN DRESSES, मगर उसे मेरा देसी LOOK भाता है,
GIRLFRIEND बनने की उम्र में वो मुझे बीवी बनाना चाहता है,
पता नहीं ऐसे घरेलु लड़कों का दिल मुझपर क्यों आता है??

उसके PROPOSAL REJECT किये हैं मैंने कई दफ़ा,
फिर भी हर मुलाक़ात पर वो गुलाब का फूल ले आता है,
कभी माँ के पैर छूने तो कभी पापा की तबियत पूछने आजाता है,
कभी किसी बहाने से सामने से, तो कभी छुपकर देखने आता है,
पता नहीं ऐसे छुपे रुस्तमों का दिल मुझपर क्यों आता है?? 

कभी OFFICE में तो कभी किसी EVENT पर, कोई नया आशिक़ बन जाता है,
लाख मना करने पर भी वो साथ वक़्त बिताने के बहाने ढूँढ लाता है,
शायद शक्ल कुछ ज्यादा ही मासूम है मेरी, 
तभी तो मेरा RUDE BEHAVIOUR भी उन्हें CUTE नज़र आता है,
लगता है यही REASON है जो हर लड़के का दिल मुझपर आता है...                  

[नोट: अगर आप ऊपर दी गयी कविता को चाहते हो सुनना, तो क्लिक👆🏻 करें नीचे⬇️ दिए गए लिंक पर...]


***********************************************************************************
       
10. क्या लिखूँ....???

सोचती हूँ क्या लिखूँ?,
पुराना लिखूँ या नया लिखूँ?,
कुछ लिखूँ या ना लिखूँ?,
वो लिखूँ या ये लिखूँ?,
इसे लिखूँ या उसे लिखूँ?
सोचती हूँ किसे लिखूँ?
सोचती हूँ क्या लिखूँ?, 
पुराना लिखूँ या नया लिखूँ?,
कोई बता दे क्या लिखूँ....

हक़ीक़त लिखूँ की फ़साना लिखूँ?,
हाल - ए - दिल या तराना लिखूँ?,
नई खुशी की ग़म पुराना लिखूँ?,
सपना पूरा या ख्वाब अधूरा लिखूँ?,
सोचती हूँ क्या लिखूँ?, 
पुराना लिखूँ या नया लिखूँ?,
कोई बता दे क्या लिखूँ?....

क्यूँ लिखूँ क्यूँ ना लिखूँ?
क्या कहता है आईना लिखूँ?,
कल रात का सपना लिखूँ या आज की सुबह लिखूँ?,
जो पाया मैने वो लिखूँ या कैसे हुई तबाह लिखूँ?,
सोचती हूँ क्या लिखूँ?, 
पुराना लिखूँ या नया लिखूँ?...
कोई बता दे क्या लिखूँ?....

चेहरे की ये खुशी लिखूँ या आँख के आंसू लिखूँ?,
जो कल थी मैं वो लिखूँ, या आज क्या हूँ वो लिखूँ?,
आने वाला पल लिखूँ या बीता हुआ कल लिखूँ?,
बीती हुई सदियाँ लिखूँ, या फिर हर एक पल लिखूँ?
सोचती हूँ क्या लिखूँ?, 
पुराना लिखूँ या नया लिखूँ?
कोई बता दे क्या लिखूँ....

दिल की हर खुशी लिखूँ, या मैं दर्द-ए-दिल लिखूँ?,
गुज़री हुई ज़िंदगी लिखूँ या फिर मैं तिल-तिल लिखूँ?,
चला गया जो वो लिखूँ, या जो आएगा उसे लिखूँ?,
आए कोई तो लिखूँ जाएगा तो क्यूँ लिखूँ?,
सोचती हूँ क्या लिखूँ?, 
पुराना लिखूँ या नया लिखूँ?
कोई बता दे क्या लिखूँ?...

जो बैठती हूँ लिखने दिन में सोचती हूँ क्या लिखूँ?,
आते नहीं ख्याल दिन में तो भला मैं क्या लिखूँ?,
पूछती हूँ फिर मैं दिल से तू ही बता दे क्या लिखूँ?,
लिख दूँ क्या वो पहला प्यार या आशिक कोई नया लिखूँ?
सोचती हूँ क्या लिखूँ, 
पुराना लिखूँ या नया लिखूँ,
कोई बता दे क्या लिखूँ....

[नोट: अगर आप ऊपर दी गयी कविता को चाहते हो सुनना, तो क्लिक👆🏻 करें नीचे⬇️ दिए गए लिंक पर...]


***********************************************************************************

9.मेरा आईना

यूँ ही कभी बेकार में,
कभी बिना श्रृंगार के,
लगने लगी हूँ खूबसूरत, क्यूँ समझ में आए ना, 
क्यूँ छेड़ने लगा है, मुझको ही मेरा आईना...? 

हृदय में सौ सवाल हैं,
मचा हुआ बवाल है,
सुनकर मेरी कविता, माँ कहती है तू कमाल है,
बवाल हैं, कमाल हैं, ये बस मेरे ख्याल हैं,
मेरे इन्हीं सवालों के, कोई जवाब लेके आए ना,
क्यूँ छेड़ने लगा है, मुझको ही ये मेरा आईना...???

वो आता है जो ख्वाबों में,
जाता नहीं ख्यालों से,
छुपा हुआ है शायद, इन्हीं - किन्हीं सवालों में,
ना जाने क्या है डर उसे, जो सूरत कभी दिखाए ना,
क्यूँ छेड़ने लगा है, मुझको ही मेरा आईना...? 

पहले नहीं ये उड़ती थी,
जो जुल्फ अब उड़ने लगी,
जो राह सीधी चलती थी,
वो खुद-बा-खुद मुड़ने लगी,
ये लेगी कितने मोड़ यूँ, कोई भी कुछ बताए ना,
क्यूँ छेड़ने लगा है, मुझको ही मेरा आईना...???

शायद कोई खुमार है,
या फिर चढ़ा बुखार है,
कहता है दिल, ये प्यार है,
नादां नहीं बीमार है,
मोहब्बत से हम तो दूर है, 
ये इश्क़ इक फितूर है,
शादी होनी ज़रूर है,
पर दिन अभी वो दूर है...
मालूम है इस दिल को सब, फिर भी ये बाज आए ना,
बहुत छेड़ने लगा है मुझको ही मेरा आईना...

[नोट: अगर आप ऊपर दी गयी कविता को चाहते हो सुनना, तो क्लिक👆🏻 करें नीचे⬇️ दिए गए लिंक पर...]


***********************************************************************************

8. लड़की के जीवन चक्र की कथा

आज मुझे एक कहानी दोहरानी है,
एक लड़की के जीवन चक्र की कथा, आपके सामने लानी है,
एक लड़की कितनी पीड़ा सहती है, अपने पूरे जीवन काल में,
बस उसी की एक झलक आपको दिखानी है।

ये कहानी शुरू होती है जब वो पैदा होती है,
बेटे के पैदा होने पर ढोल नगाड़े बजते हैं,
मगर बेटी के होने पर आज भी हमें खुशी नहीं होती है।
क्या ये सिर्फ इसलिए होता है कि, बेटा वंश की बेल को बढ़ाता है?,
और बेटियाँ पराया धन होती है?

इसके बाद अभी तो वो महज 10-11 साल की होती है,
और उसने चलना बोलना सीखना होता है,
और हम उसे सही-गलत सीखाने लगते हैं,
उसकी ज़िंदगी पर हक़ है तो उसका,
मगर उसपे भी हम अपना हक़ जाताने लगते हैं।

उसकी अपनी मर्ज़ी क्या है, ये कोई नहीं जानता,
उसे भी हक़ है आज़ादी से जीने का, ये भी कोई नहीं मानता,
हाँ! ये हम सब करते हैं,
बस फर्क़ ये है कि दुनिया के आगे इस बात को मानने से डरते हैं।

अब वो युवा अवस्था में कदम रखती है,
यूँ तो वो शुरूवात से ही बहुत कुछ सहती है,
मगर सोचिए ज़रा, कितने सवाल उठते होंगे उसके ज़हन में,
जब अपनी ही माँ, दर्द होने पर चुप रहकर सहने को कहती है।

ग़लती माँ की नहीं है, परवरिश की है,
की उन्हें भी बचपन से ये ही सिखाया है,
दर्द होने पर चुप रहकर सहना, उनकी माँ ने उन्हें यही बताया है।

एक लड़की की युवा अवस्था होती इतनी असान नहीं है,
पूरे सात दिन खून बहता है उसके जिस्म से,
बस निकलती उसकी जान नहीं है।

फिर भी आप कहते हैं कि लड़कियां कमज़ोर हैं,
पैदा करके दिखाओ एक औलाद अपने जिस्म से, तो मानेंगे हम की आप में भी ज़ोर है,
और अगर नहीं कर सकते ऐसा, तो ये कहना छोड़ दो कि लड़कियाँ कमज़ोर हैं।

इसके बाद अब लड़की जवानी की पहली सीढ़ी पर कदम रखती है,
और शादी के रिश्ते आने लगते हैं,
और जो हो जाए मोहब्बत गलती से, तो सुनने दुनिया भर के ताने पड़ते हैं।

अब बेचारी असमंजस में पड़ जाती है,
एक तरफ जवानी और दूसरी तरफ कुर्बानी,
या तो घरवालों का निरादर करो, या भूल जाओ मोहब्बत की कहानी।

फिर घरवालों की इज्ज़त और मोहब्बत में किसी एक को चुनना पड़ता है,
और "चार लोग क्या कहेंगे? " दिन रात बस यही सुनना पड़ता है।

फिर किसी तरह शादी हो जाती है, और नए रिश्तों के साथ-साथ,
इनके कंधों पर नयी जिम्मेदारियाँ भी आ जाती है।

और ऊपर से माँ ये समझा कर भेजती है, की जो समझाया वो भूल ना जाना,
कोई कुछ भी कहे, मगर तुम दिल से हर रिश्ते को निभाना,
और जा तो रही हो डोली में, मगर वापस सिर्फ, अर्थी में ही आना। 

मगर आज वो बेटी पूछना चाहती है,
कि मैं अर्थी में क्यों आऊँ, ज़िंदा क्यों नहीं????,
ये बात होनी ही औलाद से कहते वक़्त आप शर्मिंदा क्यों नहीं???

इतना ही नहीं इसके बाद शुरू होती है,
ससुराल वालों की कहानी, और उनकी सेवा में गुज़र जाती है पूरी जवानी।

अब बारी आती एक पत्नी से माँ बनने की,
उस खुशी का हम अंदाज़ा नहीं लगा सकते,
जो होती है अपनी कोख से एक औलाद जनने की।

यूँ तो कई दर्द सहकर वो अपनी औलाद जनती है,
तब जाकर कहीं एक औरत, माँ बनती है।

फिर वही औलाद बड़ी होके अपने जीवन में,
उसकी अहमियत ना होने का एहसास दिलाती है,
ये वही माँ होती है, जो अपनी औलाद को बड़ा करने के लिए अपना दुध नहीं,
अपने जिस्म से अपना खून पिलाती है।

आखिर में वही औलाद कहती है, "मैंने जो किया अपने दम पर किया, माँ तेरी औकात ही क्या थी?",
कोई ज़रा पूछे उसको कि "पैदा नहीं करती तुझ जैसी औलाद तो फिर बात ही क्या थी?"।

अब वो बेटी, बहन, पत्नी और माँ, अपने बुढ़ापे की तरफ बढ़ती है,
और ज़िंदगी तो मानो जैसे मौत की तरफ एक एक सीढ़ी चढ़ती है।

और एक दिन वो हमेशा के लिए चैन की नींद सो जाती है,
एक बेटी की कहानी, दादी या नानी की मौत पर खत्म हो जाती है।

बस मुझे एक यही बात आप तक पहुँचानी थी,
एक लड़की के जीवन चक्र की कथा, आपके सामने लानी थी,
एक लड़की कितनी पीड़ा सहती है, अपने पूरे जीवन काल में,
बस उसी की एक झलक आपको दिखानी थी।

[नोट: अगर आप इस कविता को चाहते हो सुनना, तो क्लिक👆🏻 करें नीचे⬇️ दिए गए लिंक पर...]


7. निर्भया - एक कहानी, आठ साल पुरानी

तो दोस्तों!
साउथ दिल्ली की ये कहानी है,
और ये कहानी कुछ आठ साल पुरानी है,
जो मुझे आज आपको याद दिलानी है।

दिसम्बर का वो महीना था और रात भी कुछ अँधेरी थी,
लेकिन उस रात  वो लड़की नहीं अकेली थी,
उसका दोस्त उसके साथ था जब इस हादसे की शुरुआत हुई थी,
वो लड़की पागल थी शायद वरना घर से बाहर निकलती क्यों जब शुरू रात हुई थी।

अरे! क्या हुआ??? आप लोग ऐसे क्यों देख रहे हो, हम लड़कियों को बचपन से यही तो सिखाया जाता है,
अपने नज़रें नीचे रखना , जब भी कोई हमें बुरी नज़र से देखना चाहता है।
हम अक्सर लड़कियों को सीखाते हैं, नज़रें नीची रखना, कपड़े पुरे पहनना, और किसी लड़के से बात ना करना,
हम लड़को को ये क्यों नहीं सीखाते की हर लड़की की इज़्जत करना?
जिस दिन ये हो जायेगा उस दिन से लड़कियाँ छोड़ देंगी सड़को पर डर कर चलना।

तो हम बात कर रहे थे एक पुरानी कहानी की, जो मुझे आप सबको बतानी थी,
हाँ! ये वही कहानी थी जो आठ साल पुरानी थी।
और मैं जानती हूँ  दोस्तों आप बहुत समझदार हैं, समझ ही गये होंगे ये कौनसी कहानी थी,
जो मुझे आज आपको याद दिलानी थी।

मेरा मकसद नहीं था उस दर्द भरी दास्तान को दोहराने का,
मेरा मकसद था आप सबको नींद से जगाने का, और कुछ याद दिलाने का।

क्यूँ हम किसी हादसे के बाद जगते हैं,
क्यूँ हम कैंडल जलाकर पूरी रात जगते हैं?

क्यूँ करने देते हैं किसी मासूम पर ज़ुल्म उन शैतानों को?,
क्यों ज़िंदा नहीं जला देते ऐसे हैवानों को?

 ज़िंदा ही जला देना चाहिए जो इंसानियत पर लगा हुआ एक दाग हैं,
जानती हूँ  बातें सुनकर जल रही आप सबके सीने में आग है।

लेकिन अगर ये आग किसी मासूम को इन्साफ नहीं दिला सकती तो भुजा दो इस आग को,
जो ना इन्साफ दिला सकती है, ना मिटा सकती है उसके माथे पर लगे दाग को।

जो आग जली है आप सबके दिलों में मुझे बस यही आग जलानी थी,
बिलकुल सही समझे हैं आप ये कहानी निर्भया की कहानी थी।

[नोट: अगर आप इस कविता को चाहते हो सुनना, तो क्लिक👆🏻 करें नीचे⬇️ दिए गए लिंक पर...]

***********************************************************************************

6. आग - जो दिलों में जलानी है

याद है वो कहानी, जो हो गयी है कुछ आठ साल पुरानी,
आज फिर वैसी ही एक कहानी किसी ने दोहराई है,
आज फिर मुझे वो कैंडल मार्च याद आयी है।

वैसा ही हुआ है कुछ फिर से जब उस रात उन दरिंदों के अंदर का इंसान मर गया था,
और उस किस्से के बाद हमने दिया उसको नाम निर्भया था।

फिर से एक निर्भया को किसी ने जनम दिया है,
फिर एक मासूम की हँसती खेलती ज़िन्दगी को कुछ हैवानो ने,
दो पल की ख़ुशी के लिए कुचल दिया है।

यूँ तो वो करती थी इलाज़ बेज़ुबाँ जानवरों का,
ये लोग तो उससे भी बद्द्तर निकले,
जिनसे इंसानियत के नाते मांगी थी,
मदद उसने आखिर वही जानवर निकले।

क्या इसका हश्र भी वही होगा जो आशिफ़ा और निर्भया का हुआ था,
रावण को तो मौत की सजा हुई थी,
जब उसने सिर्फ सीता माँ की परछाई को छुआ था।

आज वैसा इन्साफ हम क्यों नहीं कर पाते हैं,
ऐसी बातें सुनकर हमारे सिर क्यों, झुक जाते हैं?

गुस्सा आ रहा होगा, एक आग जल रही होगी दिल में सुनकर मेरी बातें,
कभी-कभी मेरे दिल में ख्याल आता है, ऐसे हैवान पैदा होने से पहले ही मर क्यों नहीं जाते?

दोस्तों क्या फायदा इस आग का जो हर बार एक औरत की परीक्षा ले सकती है,
मगर ऐसे हैवानों को मौत नहीं दे सकती है।

पहले निर्भया की बली, फिर आशिफ़ा मरी, अब प्रियंका रेडडी की कहानी है,
ये जो आग जल रही है आप सबके दिलों में, बस यही आग उन हैवानों के जिस्म तक पहुंचानी है।

[नोट: अगर आप इस कविता को चाहते हो सुनना, तो क्लिक👆🏻 करें नीचे⬇️ दिए गए लिंक पर...]

***********************************************************************************
5. माँ मुझे उड़ने दे

माँ मुझे उड़ने दे
मुझे नए ख़्वाबों से जुड़ने दे। 

जैसे कभी लगायी थी नानी ने तेरे पाओं में बेड़ियाँ,
मत बाँध मुझे उसी तरह मुझे खुले आसमान में खुलकर उड़ने दे,
माँ मुझे उड़ने दे, मुझे नए ख़्वाबों से जुड़ने दे। 

मैं मानती हु मैं बेटा नहीं तेरी बेटी हूँ,
मगर मैं बिगड़ूँगी नहीं तुझे दिल से ये वादा देती हूँ। 

माँ! कर दे ना मुझे उन दक़ियानूसी ज़ंजीरों से आज़ाद,
मैं तेरा बेटा नहीं तो क्या?, आखिर हूँ तो तेरी ही औलाद। 

चार लोग क्या कहेंगे इस पर हम क्यों करे विचार,
क्यों उन चार अनजान लोगों के लिए होती हमारे बीच तकरार?

भला तुझे क्यों लगता है मैं तुझसे किया वादा तोड़ूँगी,
मैं बेटा नहीं हूँ जो शादी के बाद तुझे वृद्ध आश्रम में छोड़ूंगी। 

भरोसा रख मुझपर तेरा सर कभी शर्म से झुकने नहीं दूंगी,
मगर तू भी वादा कर और कह दे की "मैं तुझे कभी रुकने नहीं दूंगी"।

जैसे बेटों को दिए जाते है आशीर्वाद कामयाब होने के लिए, मुझे भी दे तो मैं भी कामयाब बनूँगी,
डर मत! यकीन रख मुझपर, मैं तेरा नाम कभी ना खराब करुँगी।

तू क्यों डरती है मेरे नए लोगों से जुड़ने से ,
माँ! खोल दे ना ये मेरे पैरों में बंधी ज़ंजीर जो समाज ने बाँधी है,
और मुझे खुली हवा में खुलकर उड़ने दे,
माँ मुझे उड़ने दे, मुझे नए ख़्वाबों से जुड़ने दे

[नोट: अगर आप इस कविता को चाहते हो सुनना, तो क्लिक👆🏻 करें नीचे⬇️ दिए गए लिंक पर...]
*********************************************************************************

4. यूँ हर रात मेरे ख़्वाबों में आया ना कर

मत कर इतनी मुहब्बत मुझसे,
यूँ बेवजह अपना वक़्त ज़ाया ना कर,
कितनी बार समझाया तुझे,
यूँ हर रात मेरे ख़्वाबों में आया ना कर...

आकर-जाना, जाकर-आना, तेरी फ़ितरत है,  ये जानते हैं हम,
अब कि बार ग़र आकर रुक सके तो आना,
आकर-जाने के लिए वापस आया ना कर,
कितनी बार समझाया तुझे, 
यूँ हर रात मेरे ख़्वाबों में आया ना कर...

मालूम है हमें, की हमारा रिश्ता महज़ मज़ाक था तेरे लिए,
इस बात का एहसास मुझे बार-बार कराया ना कर,
कितनी बार समझाया तुझे, 
यूँ हर रात मेरे ख़्वाबों में आया ना कर...

जब हमने माँगा था तेरा वक़्त तुझसे,
उस वक़्त, वक़्त नहीं था तेरे पास हमारे लिए,
तो अब बेवजह मेरे पीछे अपना वक़्त तू गवाया ना कर,
कितनी बार समझाया तुझे, 
यूँ हर रात मेरे ख़्वाबों में आया ना कर...

और दिल्लगी करना तो तेरी आदत है,
तो कर दुनिया भर से मुझे कोई ऐतराज़ नहीं,
मगर तू अपनी ये दिल्लगी मुझपर आज़माया ना कर,
कितनी बार समझाया तुझे, 
यूँ हर रात मेरे ख़्वाबों में आया ना कर...

एक वो भी वक़्त था जब हमने, 
अपना हाथ बढ़ा कर तुझसे तेरा साथ माँगा था,
तब जो ना दिया तूने साथ मेरा,
तो अब मेरा साथ मांगने को तू अपना हाथ बढ़ाया ना कर,
कितनी बार समझाया तुझे, 
यूँ हर रात मेरे ख़्वाबों में आया ना कर...

जब तेरे साथ चलने की चाह थी हमें,
तब तुझे अकेले चलना था,
अब हम सीख गये हैं, ज़िंदगी को अकेले जीना,
और खाई है कसम की पीछे मुड़ कर कभी नहीं देखेंगे, 
तो चलने दे अब मुझे तन्हा, 
यूँ हर बार पीछे मुझे आवाज़ लगाया ना कर, 
कितनी बार समझाया तुझे, 
यूँ हर रात मेरे ख़्वाबों में आया ना कर...

[नोट: अगर आप इस कविता को चाहते हो सुनना, तो क्लिक👆🏻 करें नीचे⬇️ दिए गए लिंक पर...]

*********************************************************************************
3. अब मुझे उसकी याद नहीं आती

अब मुझे उसकी याद नहीं आती,
जब भी देखती हूँ दो प्यार करने वालों को,
हँसते-हँसते मेरी आँखें हैं भर जाती,
मगर अब मुझे उसकी याद नहीं आती

जब भी कभी उन गालियों से निकलती हूँ,
जहाँ कभी हम साथ चले थे,
उस वक़्त मेरे चेहरे पर एक मुस्कान आज भी है आती,
फिर भी मुझे उसकी याद नहीं आती

कभी तड़पते थे हम जिसकी एक झलक के लिए,
आज वो सामने से भी गुज़र जाये, 
तो भी मेरी नज़रें उस पर नहीं जाती,
क्यूँकी अब मुझे उसकी याद नहीं आती

एक वक़्त था जब उसका नाम भी, किसी और के साथ सुनने भर से हम तड़प उठते थे, 
मगर अब उसे किसी और के साथ देख कर भी मैं आँसू नहीं बहाती, 
क्या करूँ? अब मुझे उसकी याद ही नहीं आती

कभी-कभी सवाल करता है दिल मेरा मुझसे, 
की क्यूँ इतनी शिद्दत के बाद भी वो तेरा ना हुआ? 
सच कहूँ, तो आज भी मैं इस सवाल का जवाब अपने दिल को दे नहीं पाती,
अब सच में मुझे उसकी याद नहीं आती

आज भी जब वो जा चुका है हमेशा के लिए,
और मुझे अपनी बेवकूफ़ी याद आती है, तो मैं रात भर सो नहीं पाती, 
हाँ! करवटें ज़रूर बदलती हूँ,
मगर सच है ये के अब मुझे उसकी सच में याद नहीं आती

[नोट: अगर आप इस कविता को चाहते हो सुनना, तो क्लिक👆🏻 करें नीचे⬇️ दिए गए लिंक पर...]

*********************************************************************************

2. मुझे अच्छा लगता है

तुम हर रात मेरे सपने में आती हो,
फिर बातें करते-करते अचानक चुप हो जाती हो,
फिर धीरे से पलकें झुका कर, ज़रा सा मुस्काती हो,
ये सपना मुझे सच्चा सा लगता है,
तुम यूँ ही हर रात मेरे सपनों में आया करो, मुझे अच्छा लगता है

वो तुम्हारी बड़ी-बड़ी आँखों में वो ज़रा सा काजल,
तुम्हारी जुल्फें हो जैसे काला बादल,
वो तुम्हारा मेरी बातें सुनते-सुनते मुस्काना,
वो तुम्हारा जाते-जाते पीछे मुड़ जाना,
ऐसी आदत है मुझे इस सपने की, कि मेरा दिल जगने से डरता है,
तुम यूँ ही हर रात मेरे सपनों में आया करो, मुझे अच्छा लगता है

वो तुम्हारा होठों को दाँतों से दबाना,
वो तुम्हारा उँगलियों से लटों को कान के पीछे ले जाना,
वो अचानक सामने आजाने पर तुम्हारा घबराना,
और उसी घबराहट में वापस चले जाना,
ये सपना तो अब मुझे और सच्चा सा लगता है,
तुम यूँ ही हर रात मेरे सपनों में आया करो, मुझे अच्छा लगता है

[नोट: अगर आप इस कविता को चाहते हो सुनना, तो क्लिक👆🏻 करें नीचे⬇️ दिए गए लिंक पर...]

*********************************************************************************

1. कोरोना की दहशत

कोरोना की दहशत  देखो,
घेर रहा है ये इंसान,
सारी दुनिया सोच रही है,
आगे क्या होगा भगवान।

अपने घर में कैदी हैं सब,
माँग रहें हैं सब आज़ादी,
डर बैठा है सबके दिल में,
और करे कितनी बर्बादी,
ना जाने कितनी बर्बादी।

अब घर ही है मंदिर - मस्जिद,
अब घर ही है चारो धाम,
जो हैं रोज कमाते-खाते,
उनका कैसे चलेगा काम।

रुकी हुई है अर्थव्यवस्था,
रुके हुए सारे काम,
रुका हुआ है उत्पादन भी,
बड़ गए हैं चीजों के दाम।

लेकिन हमको लड़ना होगा,
बिल्कुल भी ना डरना होगा,
फैले ना ये आगे जाकर,
ऐसा अब कुछ करना होगा।

मचा हुआ है हाहाकार,
चीख रही अपनी सरकार,
रहो घर के अंदर अपने,
मत निकलो घर से बाहर।

ये संकट तो टल जाएगा,
जो देंगे हम सबका साथ,
करो नमस्ते, रहो दूर तुम,
मत मिलाना किसी से हाथ।

नोट: अगर आप इस गीत को चाहते हो सुनना, तो क्लिक👆🏻 करें नीचे⬇️ दिए गए लिंक पर...

*********************************************************************************

Comments

Post a Comment