MY CREATIONS


98. हे मुरलीधर, कृष्ण- कन्हैया (भजन)

हे मुरलीधर, कृष्ण-कन्हैया,
तुम रक्षक, तुम ही हो खिवैया...(2)
तुम सुर नायक, तुम त्रिपुरारि,
आन पड़ी है विपदा भारी...(2)

मैं कहाँ जाऊँ, किसको बुलाऊं,
कैसे तुम्हारी शरण मैं पाऊँ,(2)
हाथ भी जोड़ूं, झोली फैलायू,
कैसे अपनी लाज बचाऊं...(2)

हे मुरलीधर, कृष्ण- कन्हैया,
तुम रक्षक, तुम ही हो खिवैया...(2)
तुम सुर नायक, तुम त्रिपुरारि,
आन पड़ी है विपदा भारी...(2)

राह दिखाओ, कुछ तो बताओ,
अपनी सखी की लाज बचाओ,(2)
तुम ही आओ, चक्र चलाओ,
लाज मेरी अब तुम्हीं बचाओ...(2)

हे मुरलीधर, कृष्ण- कन्हैया,
तुम रक्षक, तुम ही हो खिवैया...(2)
तुम सुर नायक, तुम त्रिपुरारि,
आन पड़ी है विपदा भारी...(2)

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97. दिया और बाती !!!!...

तनहा बैठे-बैठे यूँ ही सोचती हूँ, क्या करूँ इस तन्हाई को मिटाने के लिए,
हर किसी को जरुरत होती है एक हमसफ़र की ज़िन्दगी बिताने के लिए…

फिर सोचती हूँ खुदा ने किसी को तो बनाया होगा मेरे लिए,
कोई तो हमराही-हमसफ़र इस दुनिया में आया होगा मेरे लिए…

क्या वो खुदा इतना मशरूफ था की उसे फुर्सत नहीं थी मेरा हमसफ़र बनाने की??,
या हुई थी मुझसे कोई खता, जिसके लिए उसने मुझे दी ये सज़ा, ज़िन्दगी तन्हा बिताने की…

क्या सारी ज़िन्दगी मुझे यूँ ही तन्हा बितानी पड़ेगी???,
या फिर है मुझमे इतना सब्र की मुझे किसी साथी की ज़रूरत ही नहीं पड़ेगी???....

फिर दिल से आवाज़ आयी की  “मत हो इतनी परेशान",
इस दुनिया में कोई ना कोई तेरे लिए  भी आया होगा,
उस खुदा ने, तेरा हमसफ़र भी बनाया होगा….

कोई-ना-कोई बेसब्र होकर तेरा भी इंतज़ार कर रहा होगा,
जैसे तू बेचैन है अपने हमसफ़र के लिए,
वो भी तुझसे मिलने के लिए मर रहा होगा….

फिर एक दिन एक अजनबी मेरी ज़िन्दगी में आ गया,
जैसे पहाड़ियों पर छा जाते हैं बदल बरसात के मौसम में,
कुछ इस कदर वो भी मेरे दिल-ओ-दिमाग पर छा गया….

उसके आने से पहले मेरी हर ख्वाहिश अधूरी थी,
कुछ तो जादू था उसमें, जो उसके आते ही,
जैसे अब मेरी जिंदगी की हर तमन्ना पूरी थी...  

अब हम मिलने लगे, बातें करने लगे,
कभी छुप कर, तो कभी सरेआम मुलाकातें करने लगे...

उनसे बात करके इस दिल का सूनापन कम हो गया,
और कुछ तो कशिश ज़रूर थी उस अजनबी में,
की देखते ही देखते हम उनके,और वो अजनबी हमारा सनम हो गया….

हमारे लिए कभी-कोई ख़ास होगा ये बात तो मालूम थी हमें,
मगर हम किसी की जिंदगी में ख़ास बन सकेंगे ये बात नहीं मालूम थी हमें,

एक वक़्त था जब हम अपने आईने से बातें किया करते थे,
असल में हम आईने से नहीं अपनी तन्हाई से मिला करते थे,  
तब कहाँ हम किसी पर इस कदर जान दिया करते थे....

अब तो आलम यूँ हैं कि, आईने से दिन रात गिले-शिकवे करने वाले,
हमारे ये होंठ ना जाने क्यों उनके सामने आते ही सिल जाते हैं??,
क्या ऐसे ही जोरों से धड़कता है ये दिल, जब इश्क़-मोहब्बत मिल जाते हैं??...

उन्हें सामने देख कर हमारी सांसें थम जाती है, और हम सहम जाते हैं, 
बाज़ नहीं आता ये दिल, फिर भी इसे बार बार समझाते हैं... 
 
जैसे दरिया और समंदर, जैसे बदल और बारिश,
जैसे धुप और किरणें, और जैसे दिया और बाती हैं, 
हाँ! हम दोनों भी इस जनम के नहीं,जन्मों जन्मों के साथी हैं....

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96. यहीं तुझे श्री राम मिलेंगे...

कई नाम प्रसिद्ध भी होंगे,
कई नाम बदनाम मिलेंगे,
कहीं कोई कभी खास लगेगा, 
कई लोग तुझे आम मिलेंगे, 
यहीं दशानन तुझे दिखेगा,
यहीं तुझे श्री राम मिलेंगे...

कोई भाई दुर्योधन सा है, 
कहीं युधिष्टिर भी जन्मा है, 
क्यूँ कोसे तू किस्मत अपनी, 
ये सब तो तेरा कर्मा है, 
छीन नहीं, बस त्याग ही करदे, 
तभी तुझे घनश्याम मिलेंगे...
यहीं कहीं रावण भी मिलेगा, 
यहीं तुझे श्री राम मिलेंगे...

कोई अर्जुन सा जीतेगा,
कोई वस्त्र हरण कर लेगा,
कोई राजा जनक बनेगा,
कहीं तो कोई कंस भी होगा,
शुम्भ निशुंभ भी यहीं मिलेंगे,
यहीं भक्त हनुमान मिलेंगे...
यहीं कहीं रावण भी मिलेगा, 
यहीं तुझे श्री राम मिलेंगे...

कहीं कोई भैरव सा जिद्दी,
किसी की भक्ति श्रीधर जैसी,
पूजेगा कोई श्रवण के जैसा, 
यहीं पे परशुराम मिलेंगे,
कर ले भक्ति मीरा जैसी,
तभी तो तुझको श्याम मिलेंगे...
यहीं कहीं रावण भी मिलेगा, 
यहीं तुझे श्री राम मिलेंगे...

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95. घर ले जाने वाला चाहिए

क्लब ले जाने को तो कई मिल जाते हैं,
मगर अब कोई घर ले जाने वाला चाहिए,
झूठी कसमें तो कोई भी खा लेता है, 
मगर अब हमें उन कसमों को निभाने वाला चाहिए... 

यूँ तो आँसू पोछने और दिलासे देने वाले कई हैं,
मगर अब हमें, हिम्मत और जज़्बे को बढ़ाने वाला चाहिए,
झूठी कसमें तो कोई भी खा लेता है, 
मगर अब हमें उन कसमों को निभाने वाला चाहिए... 

यूँ तो दिल्लगी हमने भी बहुत की है,
मगर अब हमें कोई दिल लगाने वाला चाहिए,
झूठी कसमें तो कोई भी खा लेता है, 
मगर अब हमें उन कसमों को निभाने वाला चाहिए... 

हमारे ज़ख्मों पर नमक लगाने को हर कोई तैयार है, 
हमें तो बस वो एक शख्स, ज़ख्मों पर मरहम लगाने वाला चाहिए, 
झूठी कसमें तो कोई भी खा लेता है, 
मगर अब हमें उन कसमों को निभाने वाला चाहिए... 

ऊपर से नीचे तक, ताड़ने वाले कई मिलते हैं बाज़ार में, 
अब कोई नज़रों से नज़रे मिलाने वाला चाहिए, 
झूठी कसमें तो कोई भी खा लेता है, 
मगर अब हमें उन कसमों को निभाने वाला चाहिए... 

हमारे ख्यालों को, समाज के ठेकेदार, कलंक कह कर बुलाते हैं,
और हमें उसी कलंक, को काजल बनाने वाला चाहिए,
झूठी कसमें तो कोई भी खा लेता है, 
मगर अब हमें उन कसमों को निभाने वाला चाहिए...
क्लब ले जाने को तो कई तैयार हैं,
मगर अब कोई घर ले जाने वाला चाहिए ...

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94. नज़रों में क्यूँ ग़ुरूर है???....

वो हूर है, या नूर है,
नज़रों में क्यूँ ग़ुरूर है???,
खुमार या नशा कहें,
या ये इश्क़ का सुरूर है?....
वो हूर है, या नूर है,
नज़रों में क्यूँ ग़ुरूर है???....

दिल की हर चाहत मिले, 
या पहली मोहब्बत मिले,
उसमें तेरी आदत मिले, 
अजी!!! ये महज़ फितूर है....
वो हूर है, या नूर है,
नज़रों में क्यूँ ग़ुरूर है???.... 

आँखों में तेरे अश्क है, 
फिर भी तबियत मस्त है, 
तेरी नहीं गलती कोई, 
इस दिल का ही कुसूर है.... 
वो हूर है, या नूर है,
नज़रों में क्यूँ ग़ुरूर है???....

मिट्टी तुझे भी होना है,
मिट्टी मुझे भी होना है,
मिट्टी से ही तू आया है,
मिट्टी में ही तो सोना है,
फिर वो हूर है, या नूर है,
किस बात का ग़ुरूर है???....

देखे कई है ख़्वाब हमने,
तोड़े भी अपने हाथ से,
दुनिया से हम तो लड़ लिए,
ना लड़ सके हालात से,
नाराज़ है, रूठा नहीं,
ये टूट कर टूटा नहीं,
इसीलिए मगरूर है....
वो हूर है, या नूर है,
नज़रों में क्यूँ ग़ुरूर है???...

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93. आग जला के रखनी है

दिल मे मेरे जलती आग, 
वो आग जला के रखनी है,(2)
जिसने जो-जो बोली बात,
वो बात बचा के रखनी है...
दिल मे मेरे जलती आग, 
वो आग जला के रखनी है...

दुनिया सोचे खाक हूँ मैं,
अब ये खाक बचा के रखनी है,(2)
इसी खाक में आग भी है,
वो आग जला के रखनी है...
जिसने जो-जो बोली बात,
हर बात बचा के रखनी है....(2)

दिल में है कई आह भरी,
वो आह दबा के रखनी है,(2)
चैन ओ सुकूं तो गवा दिया,
अब नींद चुरा के रखनी है,
जिसने जो-जो बोली बात,
हर बात बचा के रखनी है....(2)

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92. कहाँ हूँ मैं

कहाँ हूँ मैं, कहाँ हूँ मैं???,
जहाँ भी देखो, वहाँ हूँ मैं....

पर्वत में, कण-कण में मैं, 
माटी में, कंकड़ में मैं, 
काल चक्र और क्षण में मैं, 
जीवन में और मरण में मैं... 
कहाँ हूँ मैं, कहाँ हूँ मैं???,
जहाँ भी देखो, वहाँ हूँ मैं....

खण्ड में मैं, अखण्ड में मैं, 
दुर्गा के रूप प्रचण्ड में मैं,
सती के शीतल रूप में मैं,
काली के स्वरूप में मैं...
कहाँ हूँ मैं, कहाँ हूँ मैं???,
जहाँ भी देखो, वहाँ हूँ मैं....

तेज़ भी मैं, नादान भी मैं,
अज्ञानी में ज्ञान भी मैं,
जीवन का अभिमान भी मैं, 
मृत्यु का प्रमाण भी मैं....
कहाँ हूँ मैं, कहाँ हूँ मैं???,
जहाँ भी देखो, वहाँ हूँ मैं....

आरंभ मैं, और अंत भी मैं, 
आदि शक्ति, अनंत भी मैं,
अन्तर मैं, निरंतर मैं,
बाग भी मैं, खंडहर भी मैं...
कहाँ हूँ मैं, कहाँ हूँ मैं???,
जहाँ भी देखो, वहाँ हूँ मैं....

माँ-बाबा का दुख में मैं,
खुशियों की ऊर्जा में मैं,
गंगा सी बहती मैं निर्मल,
चंडी में, दुर्गा में मैं....
कहाँ हूँ मैं, कहाँ हूँ मैं???,
जहाँ भी देखो, वहाँ हूँ मैं....

नृत्य-संगीत की कला में मैं,
सुर-ताल, रागिनी में मैं,
सूरज की किरणों में मैं,
चाँद की चाँदनी में मैं....
कहाँ हूँ मैं, कहाँ हूँ मैं???,
जहाँ भी देखो, वहाँ हूँ मैं....

प्रेम में मैं, क्रोध में मैं,
ईर्ष्या में, प्रतिशोध में मैं,
काजल मैं, कलंक भी मैं,
माँ का सुना अंक भी मैं....
कहाँ हूँ मैं, कहाँ हूँ मैं???,
जहाँ भी देखो, वहाँ हूँ मैं....

धरती से आकाश में मैं,
दर्द, भूख और प्यास में मैं,
कभी दूर, कभी पास में मैं,
अगर-मगर और काश में मैं....
कहाँ हूँ मैं, कहाँ हूँ मैं???,
जहाँ भी देखो, वहाँ हूँ मैं....

सीता की अग्नि परीक्षा मैं,
मीरा की भक्ति - प्रतीक्षा मैं,
राधा के प्रेम की निष्ठा मैं,
पांचाली की प्रतिष्ठा मैं
कहाँ हूँ मैं, कहाँ हूँ मैं???,
जहाँ भी देखो, वहाँ हूँ मैं....

व्रत पूजा और पाठ में मैं,
चुप्पी में हर बात में मैं,
रामायण की कथा में मैं,
महाभारत की व्यथा में मैं,
कलयुग की कुप्रथा में मैं,
यहा- वहाँ सर्वथा हूँ मैं,
फिर भी पूछे कहाँ हूँ मैं,
जहाँ भी देखो वहाँ हूँ मैं....

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91. समझ रखा है....

बिन हक़ दिए, खुदको हक़दार समझ रखा है,
किसी के शक़ को, किसी ने ऐतबार समझ रखा है, 
अजीब सा चलन है आज मोहब्बत की दुनिया का,
हर किसी ने प्यार को कारोबार समझ रखा है.... 

कोई वादों के बदले, बंदिशें मांगता है,
तो कोई तोहफ़े के, बदले जिस्म की चाहत रखता है,
ये अजीब सी आदत बन गई है मोहब्बत में मांगने की,
प्यार को प्यार नहीं, व्यापार समझ रखा है....

माना!!! आँसू बहाने से परेशानी का हल नहीं मिलता,
मगर दिल हल्का ज़रूर होता है,
और कमाल है ये दुनिया वाले, मेरे आंसूओं को देख,
किसी ने ढोंगी, तो किसी ने लाचार समझ रखा है....

दूसरों की बर्बादी, को ज़ायका लेकर सुनते सब हैं, 
मगर किसी के ग़म में शरीक हो सके इतना वक़्त नहीं मिलता, 
कहीं किसी का घर उजड़ गया, तो किसी के ख़्वाब खाक हो गए,
और यहाँ दूसरों की बर्बादी को, दुनिया ने चटपटी खबरों का अख़बार समझ रखा है...

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90. मैं प्यार करती हूँ!!!!...

हर पल, हर वक़्त बस तेरी ही बात करती हूँ,
क्यूंकि मैं तुझसे प्यार करती हूँ….

तू जो भी कहता है,
तेरी कही हर बात पर ऐतबार करती हूँ,
क्यूंकि मैं तुझसे प्यार करती हूँ….

जब तू कहता है “वक़्त नहीं है मेरे पास तुम्हारी इन सब बातों के लिए”,
तो तेरे वक़्त निकालने का इंतज़ार करती हूँ,
क्यूंकि मैं तुझसे प्यार करती हूँ….

दिल मेरा भी दुखता है कभी-कभी तेरे रूखेपन से, 
मगर फिर भी तेरी हर गलती पर माफ़ तुझे हर बार करती हूँ,
क्यूंकि मैं तुझसे प्यार करती हूँ….

तू जो जुदा हो जाता है मुझसे एक पल को भी, 
उस एक पल में, मैं सौ बार मरती हूँ,
क्यूंकि मैं तुझसे प्यार करती हूँ….

तू ग़र रूठे मुझसे चाहे यूँ ही बेवजह, 
तब भी तुझे मनाने को, मिन्नतें बार-बार करती हूँ,
क्यूंकि मैं तुझसे प्यार करती हूँ….

तेरा दिया हर इलज़ाम क़ुबूल है मुझे,
मगर बेवफ़ा हूँ मैं एक इसी बात से इंकार करती हूँ,
क्यूंकि वाक़िफ़ है तू भी इस बात से कि मैं तुझसे प्यार करती हूँ….

तू छोड़ देगा एक दिन मुझे तनहा, इस दुनिया कि भीड़ में ये मालूम है मुझे,
फिर भी दीवानी होकर तुझसे एक ही बात का इज़हार बार बार करती हूँ
क्यूंकि मैं तुझसे प्यार करती हूँ….

खैर जब कभी दिल से आवाज़ आये तो मुड़कर देख लेना इस पगली को एक दफा,
कल भी यही कहती थी, आज भी यही कहती हूँ,
और कल फिर यही कहूँगी कि "मैं तुझसे बेहद प्यार करती हूँ"….

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89. दिल के पास !!!!.....

आज भी याद है वो दिन हमें, जब देखा था उन्हें पहली बार,
उस रोज़ हुआ था, हमारी पहली मोहब्बत का दीदार पहली बार…

हम खड़े थे अपनी चौखट पर, और वो जा रहे थे बाज़ार,
उस पहली झलक में हो चला था, उनसे इश्क़ पहली बार…

जब मुड़कर देखा उन्होंने हमारी तरफ़, तब हमारी नज़रों में शर्म की परछाई थी,
उनकी सीरत का तो पता नहीं, मगर सूरत एक नजर में भाई थी...

हम हर रोज़ किया करते थे, उनका दीदार दूर से,
हर रोज़ किया करते थे, अपनी मोहब्बत का इज़हार दूर से…

फिर एक दिन उनकी भी नज़र हमारे चेहरे पर आकर रुक गयी,
खुदा की कसम शर्म-ओ-हया से हमारी नज़रें झुक गयी, 
और कुछ पल के लिए मानो हमारी धड़कनें भी रुक गयी....

उनके कदम जब मेरे घर की चौखट पर आकर रुक गए,
तो लगा जैसे आसमान के सारे तारे मेरी चौखट पर आकर झुक गए …

फिर उनसे दोस्ती हुई, कुछ बातें हुई,
बातों-बातों में चंद मुलाक़ातें हुई ….

उन् मुलाक़ातों में हम उनके और भी दीवाने हो गए,
उनके होकर हम तो अपनों से ही बेगाने हो गए….

जिसे हम चाहते रहे दूर से, वो अब भी हमसे दूर था 
मगर उस दुरी में ना गलती उनकी थी, ना हमारा कसूर था...
  
क्यों थे वो इतने दूर??,
क्यों थे हम इतने मजबूर??...

उनसे दुरी सहते-सहते, हम और दीवाने हो गए,
अपनों से तो पहले ही थे, अब तो खुद से भी बेगाने हो गए...
 
उनसे दूर होकर था कुछ भी सही नहीं,
वो आज भी मौज़ूद हैं हममें ही कहीं...
 
वो करीब आने से पहले ही हुए दूर कुछ इस तरह,
जिस्म से जान निकलती है जिस तरह…

वो कल भी थे और आज भी हैं, हमारे लिए ख़ास,
वो दूर ही सही हमसे, मगर हैं हमारे दिल के पास...

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88. उनसे मिलने के बाद!!!!....

उनसे मिलने के बाद हाल कुछ ऐसा था इस दिल का,
जो शब्दों में बयान नहीं होता,
जब सुनते थे किस्से प्यार के औरों से तो कहते थे
“ऐसा मेरे साथ तो कभी नहीं होता”....

पर अब एहसास हुआ की वो नादानी थी हमारी,
प्यार तो एक अलग एहसास होता है जो लुटे दिन का चैन और रातों की नींदें हमारी…..

ना जाने क्यों नींद और चैन गवां के एक ख़ुशी-सी होती है,
जब वो सामने होते हैं, तो दिल में हलचल और 
बदन में अजीब-सी गुदगुदी सी होती है....

जी करता था की सारी दुनिया से कह दू की “हाँ मुझे प्यार है उनसे”,
पर डरते थे की कहीं वो रूठ ना जाएं हमसे……

एक दिन दिल से आवाज़ आयी की कह दे अपने दिल की बात,
कहीं कोई और ना ले जाए उन्हें अपने साथ,
फिर हिम्मत करके गए उनके पास कहने अपने दिल की बात,
पर टूट कर बिखर गया हमारा दिल जब देखा उन्हें किसी और के साथ …….

फिर कोसने लगे खुद को की “क्यों किया प्यार?,क्यों किया इस दिल की बातों पे ऐतबार?”
फिर दिल ने दिया जवाब, "अगर वक़्त रहते कर देते तुम अपनी मोहब्बत का इज़हार,
तो कभी जुदा ना होता तुमसे तुम्हारा प्यार"

पर अब कर भी क्या सकता था ये दिल,
अब तो दर्द में तड़पना ही लिखा था हमारी किस्मत में,
और दिल-ही-दिल  में उनसे प्यार करना भी शामिल था अब हमारी फितरत में …..

अब तो जी कर भी जी नहीं सकते, 
और चाह कर भी कुछ कर नहीं सकते......

हमें कोई शिकवा या शिकायत ना थी, ना है उनसे,
क्यूंकि मोहब्बत करने से पहले इज़ाज़त भी तो नहीं ली थी इस दिल ने हमसे......

आखिर अपना चैन -ओ -सुकून  खुद ही  गवाया है 
मोहब्बत करने वालो को कहाँ कुछ हासिल हो पाया है......

पर अब इस दिल को सुकून तभी मिल पायेगा,
जब मौत गले लगाएगी या महबूब गले लगाएगा.....

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87. एक एहसास जो आज महसूस हुआ !!!!....

ना जाने ये कैसा एहसास है जो आज महसूस हुआ,
तुझे सब बता कर दिल को सुकून हुआ……

तू जब ज़िन्दगी में नहीं था तो तन्हा था दिल,
अब चाहता है की तू इससे रोज़ मिल……

पर तू वहाँ है, जहाँ मैं नहीं,
और मैं यहाँ, जहाँ तू नहीं……

पर तू फिर भी दिल के पास है,
ना जाने ये कैसा एहसास है……???

चाहता है दिल तुझसे बहुत सारी बातें करना, तेरे संग जीना और तेरे संग मरना,
रब से बस यही दुआ करता है दिल की अब इससे कभी जुदा ना करना…..

ना जाने क्यों तुझे खोने से डरता है दिल,
दिन-रात, सुबह-शाम हर वक़्त बस तेरी ही बातें करता है दिल……

कभी बेवफाई ना करेंगे ये है इस दिल का वादा,
सारी उम्र बिताएं तेरे साथ ये है इस दिल का इरादा,
और चाहेंगे तुझे हद्द से भी ज्यादा……

पर कभी भी हम अपनी हद्द पार ना करेंगे,
मगर फिर भी तुझे हद्द से ज्यादा प्यार करेंगे…….

सुनने में तो लगता है ये किसी शायर का अफ़साना,
पर ये दिल चाहता है सिर्फ तुझे पाना…….

तुझे पाने के सिवा कुछ और नहीं है इस दिल की तमन्ना,
ये दिल चाहता है सिर्फ तेरा बनना…….

तू जो ना मिला इसे तो ये पागल हो जाएगा,
और ज़माना इसे दीवाना बुलाएगा....

तू जो मिल गया तो जैसे जन्नत हासिल हो जाएगी,
इस दिल की आखिरी ख्वाइश पूरी हो जाएगी……

तेरे इंतज़ार में काटे नहीं कटते रात और दिन,
दिन तो गुज़र जाता है किसी तरह, पर रातें कटती है तारे गिन - गिन,
अब बस नहीं जीना, नहीं जीना हमें तेरे बिन…….

तू है मेरी ज़िन्दगी, तू ही तो है मेरी बंदगी,
तू मिल गया तो मिल जायेगा सब, तुझे पाकर पा लेंगे रब…..

तुझे जो ना पा सके तो जीते-जी मर जाएंगे,
लोग तुझे जाने "शायरा" के नाम से कुछ ऐसा कर जायेंगे…..

ना जाने ये कैसा एहसास है जो आज महसूस हुआ,
तुझे दिल की बात बता कर दिल को सुकून हुआ……

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86. हम भी "शायरा" हैं

हमारा दिल बहुत बड़ा है, इसीलिए हमने उन्हें अपना लिया है,
ये फूल हमारे दुश्मन क्या बनेंगे, हमने तो कांटों से भी दोस्ती का रिश्ता बना लिया है।

जो पड़ रही है कानों में उनके, वो हमारी आवाज़ नहीं किसी पंछी ने गीत गाया है,
जानते हैं दिल टूटा है उनका इसीलिए सहारा देने को हमने हाथ बढ़ाया है।

जिस राह से गुजरें हम, वहाँ तारों का नहीं बस उनका साथ चाहिए,
चाँद के टीके की हमें ज़रूरत नहीं, हमें तो बस दोस्ती का हाथ चाहिए।

दुनिया वैसे ही जलती है हमसे, उन्हें और जलाकर क्या करना?, 
जो सम्भाले ना संभले ऐसा प्यार दिखा कर क्या करना?

बेवजह करते हैं वो  मशक्कत हमसे दूर जाने की, 
भला हम कहाँ किसी को अपनी ओर खींचते हैं,
वो टूटे दिल आशिक़ सही हम भी "शायरा" हैं, 
इसीलिए हर बार उनकी हर बात का जवाब शायराना अंदाज़ में लिखते हैं।

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85. उसकी शादी किसी और के साथ

रह लेगी वो दिल पर पत्थर रख कर, जो अब तक तेरे प्यार की आदि थी,
जो लग रही है शादी तुझे, असल में वो उसके सपनों की बर्बादी थी।

आज वो केसर या हल्दी नहीं, बल्कि अपने आँसू दुध में घोल कर ले जाएगी,
जब छुएगा उसका पति उसको, तब उसका जिस्म नहीं रूह तक जल जाएगी।

अब होश में क्या ख़्वाब में भी ख़्वाब देखने से डरेगी,
मोहब्बत एक बार होती है, तो दुबारा कैसे करेगी?

ना चाहते हुए भी उसे झूठा प्यार करना होगा,
फर्ज़ और कर्तव्य की खातिर उसके सच्चे प्यार को मरना होगा।

हाँ! अब साथ फेरे तो लेने पड़ेंगे उसको किसी और के साथ,
शायद ये फेरे तुम्हारे साथ होते, अगर मांग लेते वक़्त पर तुम उसका हाथ।

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84. लिखना - मेरा जुनून

पहले लिखना बस एक शौक-सा था,
फिर लिखने की आदत हुई,
अब लिखना जैसे जुनून-सा है
,
पहले लिखने से दिन में चैन मिल जाता था,
अब लिखना जैसे रातों के सुकून-सा है।

कुछ लिखने वाले ख़यालों के समंदर से शब्दों के मोती चुन लेते हैं,
हमें तैरना नहीं आता, इसलिए हम किनारे पर ही बैठ कर,
ख़्वाबों और ख्यालों का झालर बुन लेते हैं।

सुना है हमने लिखने वाले बड़ी मेहनत करते हैं, कई तो पसीना भी बहाते हैं,
ना जाने वो कौन है जो इतनी शिद्दत से लिख पाते हैं,
पसीने का तो पता नहीं, मगर लिखना अब जैसे मेरी रगों मे बहता खून-सा है।
हाँ! पहले लिखना बस एक शौक-सा था,
फिर आदत हुई, अब लिखना जैसे जुनून-सा है।


मेरे कई दोस्त मुझे शायरा कहकर चिढ़ाते हैं,
और उन्हीं चिढ़ाने वालों में से कई तारीफ़ भी कर जाते हैं,
मगर कोई समझाये उन्हें की अभी सफर शुरू हुआ है, मंज़िल अभी बाकी है,
अभी तो बस जुनून चढ़ा है, शिद्दत अभी भी बाकी है,

और जहाँ पहुंची हूँ मैं, वो कामयाबी की ऊँचाई नहीं है,
मेरी उंगली पर नाखून-सा है।
पहले लिखना बस एक शौक-सा था,
फिर आदत हुई, अब लिखना जैसे जुनून-सा है।


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83. मैं कैसी हूँ

मुझे नहीं मालूम की मैं कैसी हूँ,
मगर वो कहता है की मैं बिलकुल उस जैसी हूँ...

कोई पागल ,तो कोई चिड़चिड़ा कहता है मुझे,
कोई कहता है की मैं ऐसी-वैसी हूँ,
मुझे नहीं मालूम की मैं कैसी हूँ,
मगर वो कहता है की मैं बिलकुल उस जैसी हूँ...

किसी के लिए बेहद खूबसूरत लड़की,
तो किसी के लिए बच्चों जैसी हूँ,  
जिसका जैसा नजरिया उसके लिए बिलकुल वैसी हूँ,
मुझे नहीं मालूम की मैं कैसी हूँ, 
मगर वो कहता है की मैं बिलकुल उस जैसी हूँ...

हाँ पसंद,ना-पसंद मिलती है हमारी,
एक दूसरे से बातें करके मुस्कान भी खिलती है हमारी,
कभी खुद से तो कभी आईने से पूछ लेती हूँ, 
की तू ही बता दे के आखिर मैं कैसी हूँ???,
क्यूंकि, मुझे नहीं मालूम की मैं कैसी हूँ,
मगर वो कहता है की मैं बिलकुल उस जैसी हूँ...

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82. एक नारी - ना अबला, ना बेचारी

मैं हूँ सीता मैं हूँ राधा,
छेड़े कोई, कर दूँ आधा,
मैं ही दुर्गा, मैं ही काली,
मैं ही चंडी, मैं भवानी...

कोई ना सुने हमारी,
ना मैं अबला, ना बेचारी,
उड़ाते हो मज़ाक मेरा,
एक नारी सब पे भारी...

वक़्त आयेगा हमारा,
ना लेंगे law का सहारा,
देखा जो गंदी नज़र से,
तोड़ देंगे मुँह तुम्हारा...

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81. क्यूँ जी रहीं हूँ

(NOTE: THIS POETRY IS DEDICATED TO ALL WORKING WOMEN)

क्यूँ जी रहीं हूँ अपनी मर्ज़ी से,
हर कोई ये सवाल पूछने को तैयार बैठा है,
अभी घर से कदम निकाला है मैंने,
और हर इंसान नुमा जानवर जैसे नोचने को तैयार बैठा है...

जो हाथों से नहीं, तो वो आँखों से कर जाता है,
हर गली में एक ऐसा शैतान बैठा है,
जो करूँ शिकायत समाज के ठेकेदारों से,
तो ज़वाब मिलता है, कि तू अपनी नज़रों का ईलाज करवा,
हमारे सामने तो एक मासूम इंसान बैठा है...

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80. जंगल में मंगल (RAP)

अब होगा जंगल में मंगल, 
तुम देखोगे दंगल,
सुनो ना ओ अंकल...
है बच्ची सी शकल,
पर ज़्यादा है अकल...

मैं उतना ही खाती हूँ,
जितना कमाती हूँ,
पहले कमाती हूँ,
फिर खुद पे उड़ाती हूँ,
गैरों पे नहीं,
हक़ अपनों पे जताती हूँ...
ज़ख्मों को अपने मैं खुद सी रहीं हूँ,
आंसूओं को अपने कबसे पी रहीं हूँ,
बुरे के लिए मैं बुरी ही सही हूँ,
अच्छे के लिए अच्छी ही रही हूँ,
देख लो आकर तुम्हारे बिना मैं,
मरी भी नहीं हूँ, और जी भी रही हूँ...

लोगों की नजरों में खटकी बहुत हूँ,
सपनों की गलियों में भटकी बहुत हूँ,
दिखाए थे उसने, जो झूठे सपने, उसके चक्कर में, लटकी भी बहुत हूँ...

खटकी हूँ, भटकी हूँ, लटकी हूँ,
लेकिन ना अटकी हूँ किसी की बात में,
ना वो पहली मुलाकात में,
जागी हूँ चाँदनी रात में,
की हैं आँखें नम मैंने हर बरसात में...

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79. कुछ बनके मैं दिखाऊंगी (RAP)

हाँ ! हाँ ! कद मेरा छोटा है , 
छोटा मेरा दिल नहीं ..., 
डॉक्टर, इंजीनियर बनना मेरी मंजिल नहीं। 
अब कोई मुश्किल नहीं, 
मिल गया है हल यही, 
हूँ जहां मैं आज, 
तुमको मैं मिलूंगी कल नहीं। 
जो भी मैं हूँ कहती, 
सच है, कोई छल नहीं। 
रोके ना बिताया मैंने, 
ऐसा कोई पल नहीं... 

खुद बहुत हूँ रोई, 
दूसरों को ना रुलाया है,
खर्च उतना ही किया, 
जितना मैंने कमाया है,
है डराता मुझको, 
मेरे कल का जो साया है, 
पूछते हैं मुझसे सब,
आखिर क्या पाया है? ... 

कितनी भी हो मज़बूरी, 
हाथ ना फैलाती हूँ
जलते भी हो, चिढ़ते भी हो, 
क्यूँकी कमाती हूँ, 
सच्चाई ये है कि, 
मैं आईना दिखाती हूँ… 

मेरे जो हैं सपने , 
बस पूरे वो करना चाहती हूँ ... 
हाँ मैं चाहती हूँ, 
बस ये चाहती हूं, 

एक घर, एक गाड़ी, एक मेरा सपना है, 
सोशल मीडिया पे नहीं, मीडिया में दिखना है, 
Wikipedia पे मेरा biodata छपना है, 
सबको दिए मौके पर, 
सबने दिए धोखे भर, 
वक़्त ने दिखाया और सिखाया, कौन अपना है, 
फिर भी पूरा मैं करुँगी मेरा जो सपना है.... 

मेरी माँ और परवरिश की खातिर आजतक रुकी,
 खुद को साबित करने को आजतक झुकी,
वर्ना रोके मुझे कोई , किसी में वो बात नहीं,
याद है   

याद है मुझे कहा था, 
की मेरी कोई औकात नहीं, 
पर अब मैं बताऊंगी, 
और करके भी दिखाऊंगी, 

अपने सिर को नहीं, मैं खुद को ऊँचा बनाऊँगी, 
मगर जहाँ भी जाऊँगी, 
किसी को ना दबाऊँगी, 

और जैसे तुम झुकाते हो, किसी को ना झुकाऊँगी, 
ना गिराऊँगी ना डराऊँगी, 
मगर है वादा एक ये,
कुछ बनके मैं दिखाऊंगी... 

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78. यूँ ही कुछ दिन गुज़र गए

पहले हम मिले, फिर नज़रें मिली,
फिर बातें हुईं, मुलाकातें हुई,
यूँ ही कुछ दिन गुज़र गए,
और हमें पता भी ना चला...

पहले उन्हें हमारा ख़्याल आया,
उनके ज़वाब पर, हमारा सवाल आया,
बातों के जरिए बातें होने लगी,
उन्हें हमारी, हमें उनकी आदतें होने लगी,
यूँ ही कुछ दिन और गुज़र गए,
और हमें पता भी ना चला...

अब चाय पर मिलना आम हो गया,
एक दूजे की खैरियत जानना, 
सबसे पहला और ज़रूरी काम हो गया,
अभी नज़रें मिली थी, हाथों का मिलना बाकी था,
आदत हो गई थी, मोहब्बत का होना बाकी था,
यूँ ही कुछ दिन और गुज़र गए,
और हमें पता भी ना चला...

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77. नए ख़्याल

धुन पुरानी है, बस ख़्याल नए हैं,
चलते-चलते ना जाने हम कहाँ आगए हैं...

कभी बरसती थी खुशी की घटायें हमारे दरवाज़े पर,
आज ना जाने क्यूँ ये ग़म के बादल छा गए हैं...

जिन्होंने खाई थी ज़िंदगी भर हँसाने की कसमें, 
वो तोड़कर हर कसम, बेदर्दी से हमें रुला गए हैं...

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76. ठीक नहीं

मोहब्बत करनी है तो कर दिल खोल कर, किसने रोका है??,
मगर मोहब्बत में अंधे हो जाना, तो ठीक नहीं...

ख़्वाब संजोने का शौक है, तो खुलकर संजो,
मगर उन ख़्वाबों के पूरे होने का ख़्वाब संजोना, तो ठीक नहीं...

तुझे करनी है "वफ़ा" तो कर मोहब्बत में, 
मगर मोहब्बत में "वफ़ा की उम्मीद" करना, तो ठीक नहीं...

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75. कल रात हमारा सोना मुश्किल था

कल रात हमारा सोना मुश्किल था,
किसी का ना होकर भी, उसका होना मुश्किल था...

कई दफ़ा भीगी हैं, ये आँखें "बेवफ़ाई" पर,
मगर इस दफ़ा "वफ़ा" के लिए आँखों को भिगोना मुश्किल था...

बहुत कुछ "पाकर खोया" है, इस ज़िंदगी में,
मगर इस बार, कुछ पाए बिना खोना मुश्किल था...

फूलों से ज़्यादा कांटों से निभाए हैं रिश्ते हमने,
मगर अपनी खुशी के लिए, किसी को वही कांटे चुभोना मुश्किल था...

जहाँ ढूँढते हैं लोग हँसने की वजह अक्सर,
उस दुनिया में बेवजह रोना मुश्किल था...

जहाँ तोड़े हों अपने ही कई ख़्वाब हमने अपने हाथों से,
वहाँ फिर से, अपने लिए एक नया सपना संजोना मुश्किल था...

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74. "वो" खुद चला आता है
"वो" अपनी मोहब्बत कुछ इस तरह जताता है,
ग़र मैं ना जाऊँ कभी उससे मिलने,
तो "वो" खुद चला आता है...

मेरे साथ होकर "वो" सारे ग़म भूल जाता है,
मेरी नजरों में उसे अपने लिए प्यार नज़र आता है,
ग़र मैं ना जाऊँ कभी उससे मिलने,
तो "वो" खुद चला आता है...

मेरे पैग़ामों के ज़वाब ना देकर "वो" मुझे अक्सर तड़पाता है,
हाँ!!! मज़बूर है अपनी जिम्मेदारियों के आगे इसीलिए देर लगाता है,
ग़र मैं ना जाऊँ कभी उससे मिलने,
तो "वो" खुद चला आता है...

वो मुझसे ढेर सारी बातें करना चाहता है,
इसीलिए ऑफिस से निकल कर पहला फोन मुझे लगाता है,
उसे किसी जाम की ज़रूरत कहाँ,
उसे तो मेरी आँखों से नशा हो जाता है,
"वो" अपनी मोहब्बत कुछ इस तरह जताता है,
ग़र मैं ना जाऊँ कभी उससे मिलने,
तो "वो" खुद चला आता है...

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73. सब "मैं" ही तो हूँ
 
मैं घनेरी रात हूँ,
मैं उजली भोर हूँ,
कभी हूँ सन्नाटे सी चुप्पी,
कभी चीखता शोर हूँ... 

मैं एक तरफ़ा भी हूँ,
मैं ही चारो ओर हूँ,
मैं उड़ती पतंग सी हूँ,
मैं ही अपनी डोर हूँ... 

कहीं क़ैद हूँ किनारों के दायरे में,
तो कभी आज़ाद खुला छोर हूँ,
ये मेरा ही अक्स दिख रहा है आइने में,
या वो कोई और है, और मैं कोई और हूँ???

मैं ही सती सी शीतल, 
मैं ही दुर्गा हूँ, 
कभी बच्चे जनने की मशीन, 
कहीं बेजान पुर्जा हूँ, 
किसी के लिए बाँझ या मनहूस, 
तो किसी के जीवन की ऊर्जा हूँ,
मैं ही सती सी शीतल, 
मैं ही दुर्गा हूँ...

मैं राधा की प्रेम की धारा हूँ, 
मैं कल का चमकता उजियारा हूँ, 
मैं मीरा सी भक्त हूँ, 
मैं चंडी, भवानी, काली सी सशक्त हूँ, 
मैं माथे पर ठंडे पसीने सी, 
मैं ही रगों में बहता खौलता रक्त हूँ... 

मैं लहरों का कोलाहल,
मैं नदियों सी शांत हूँ,
मैं भीड़ हूँ किलकारियों की,
मैं ही अनन्त एकांत हूँ,
जिसके लिए लड़ी रानी लक्ष्मीबाई,
मैं वो एक मात्र सिद्धांत हूँ,
जहाँ पूरे साल हो अत्याचार नारी पर,
और नवरात्रि में पूजी जाए देवियाँ,
मैं वो एकमात्र प्रांत हूँ...

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72. उसे मुझ पर प्यार आता है

वो कहता है उसे मुझ पर प्यार आता है,
बार-बार आता है, हर बार आता है, 
एक नहीं कई बार आता है, 
बेपनाह-बेशुमार आता है,
वो कहता है उसे मुझ पर प्यार आता है,
बेपनाह-बेशुमार आता है...

गलती उसकी हो या मेरी, 
मुझसे कभी ना टकराता है, 
वो सही भी होता है, कभी-कभी 
मगर मेरे आगे हार जाता है...
वो कहता है उसे मुझ पर प्यार आता है,
बेपनाह-बेशुमार आता है...

जो हो जाऊँ नाराज़ मैं, 
तो बड़े प्यार से मनाता है, 
मुझसे जुदा होने के, 
बस ख्याल से डर जाता है... 
वो कहता है उसे मुझ पर प्यार आता है,
बेपनाह-बेशुमार आता है...

रोती मैं हूँ, आँसू वो बहाता है,
मैं चली जाऊँगी छोड़ के,
ये सुनकर उसे बुखार आता है,
मुझसे ना मिल पाने पर,
वो सिर से पांव तक, तड़प जाता है,
वो कहता भी है, और मुझे नज़र भी आता है,
कि उसे मुझ पर प्यार आता है,
बार-बार आता है, हर बार आता है, 
एक नहीं कई बार आता है, 
बेपनाह और बेशुमार आता है...

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71. हमने बस कैंडल जलाये हैं

क्यूँ अपनी मर्ज़ी से जीना छोड़ दूँ?,
इन गंदी नियत वालों का मुँह ना तोड़ दूँ...? 
क्यूँ बदल लूँ अपने जीने का तरीका?,
इन मर्दों को भी सिखाओ कुछ सलीका...
क्यूँ हर बार समाज के लिए मैं बदल जाऊँ?, 
तुम्हारी छोटी सोच की, हर बार मैं बलि चड़ जाऊँ...

"अरे! थोड़ा सुन लो, थोड़ा adjust कर लो," 
हर बार मुझे यही बातें सुननी पड़ती है, 
हर बार क्यूँ मुझे ही, resignation की राहें चुननी पड़ती है...??? 

अगर हो जाए बलात्कार मेरा, तो उसके लिए भी मुझे ज़िम्मेदार ठहराया जाता है, 
मुझे बेशरम, और मेरे कपड़ों को गुनाहगार बताया जाता है... 

ये कैसी सोच है???, ये कैसा न्याय है???,
कानून के होते हुए भी हम कहाँ कुछ कर पाए हैं???,
अफसोस है तो बस इस बात का, 
कि, निर्भया हो या प्रियंका रेड्डी
हर कांड होने के बाद हमने बस कैंडल जलाये हैं...

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70. मोहब्बत - जो बातों से होती है

किसी को किसी के दिल से,
तो किसी को आँखों से होती है,
हमें ना दिल से शिकवा है,
ना आँखों से गिला कोई,
हमें हर बार मोहब्बत, 
उनकी बातों से होती है...

जताने को मोहब्बत उनसे, 
ये पूरी उम्र बाकी है, 
तकने को सूरत उनकी,
बस ये दिन ही काफ़ी है,
नहीं हम औरों जैसे,
जिनकी कहानी, रातों में होती है...

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69. दंगे-फसाद

क्यूँ करते हो दंगे-फसाद?,
क्या हासिल होगा इन सबके बाद?, 
देश तो आज़ाद है कई सालों से,
मगर हम कब होंगे अपनी स्वार्थी सोच से आज़ाद???

जब निकलती हूँ अपने घर से,
तो माँ कहती है "मेरी बेटी को किसी की नज़र ना लगे",
मगर मुझे इन्तज़ार है उस दिन का, 
जब किसी को सड़क पर निकलने में डर ना लगे...

इतना क्रोध, ये आक्रोश, 
सही जगह पर दिखाओ ना,
इतनी ही आग है ज़हन में,
तो सरहद पर ज़ोर लगाओ ना...

Corona जैसी मुसीबत का हल निकला है,
तो ये मसला भी टल जाएगा,
ग़र तुम ऐसे ही आग लगाते रहे,
तो आँगन तुम्हारा भी ना बच पाएगा...


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68. जिंदगियां जलाने वाला - तेज़ाब 

मैं जब भी जाती थी स्कूल वो रोज़ मेरा पीछा करता था,
वो हर रोज़ "मुझसे शादी करोगी?" बस यही सवाल करता था।

ये सिलसिला तब शुरू हुआ,
जब मेरी उम्र थी कुछ उन्नीस या बीस,
घरवालों से छुपकर भरी थी, 
मैंने Singing Classes की फीस। 

कोई गलत इरादा नहीं था मेरा, 
मैं तो बस Indian Idol बनना चाहती थी,
और आगे बढ़कर अपने माँ-पापा का बेटा बनना चाहती थी।

उस शख्स से कोई दोस्ती या दुश्मनी नहीं थी मेरी,
बस एक मुह बोली रिश्तेदारी थी,
सोचा कई दफा की बाबा को बता दूँ,
मगर ना बता सकी क्यूँकी मुझ पर घर की इज्ज़त की ज़िम्मेदारी थी।

आखिरकार वो मेरी "ना" नहीं सह पाया,
फिर एक रात उसका फोन आया, 
और उसने मुझे फोन पर धमकाया...
उसने कहा "सुना है, तुझे आगे बढ़ना है, 
अपने माँ-बाबा का नाम रोशन करना है...
तो अब तू देख मैं क्या करूँगा,
तू मेरी तो हुई नहीं, अब मैं किसी और का भी नहीं होने दूँगा"

मैं उस रात उसकी बातें सुन ज़रा-सी सहमी ज़रूर मगर डरी नहीं,
कह दो उस जानवर को, कि "देख ले मुझे आकर मैं अब भी जिन्दा हूँ, मरी नहीं।

और कमाल की बात तो देखो, कि मुझपर तेज़ाब उस लड़के ने नहीं,
बड़ी ही बे-रहमी से एक लड़की ने फैका था,
और मेरे साथ हो रहे उस दर्दनाक हादसे को सबने देखा था।

तमाशा हर किसी ने देखा, मगर मदद को कोई आगे नहीं आया,
था मौजूद वहाँ एक बुजुर्ग इंसान जिसे आखिरकार मुझपर तरस आया,
और उसने किसी तरह मुझे अस्पताल पहुँचाया।

उस हादसे के बाद मैंने बहुत कुछ सहा,
किसी ने मदद की, तो किसी ने जी भर के, भला-बुरा कहा।

और इसके बाद बेशर्मी और बे-रहमी की हद पार कर चुका वो ज़ालिम,
करके बर्बाद मेरी जिंदगी खुशियां मना रहा था,
और इधर मेरा कन्धा, मेरे सपनो का जनाज़ा उठा रहा था।

मगर मैं सोच रही थी, 
कि जो ये तेज़ाब यूँ खुले-आम बिकता नहीं,
तो शायद किसी मासूम पर यूँ फिकता भी नहीं।

और हकीकत तो ये है कि ये तेज़ाब हाथ से पहले दिमाग में आता है,
और सही-गलत की सोच को जलाता है।  

हमें ये तेज़ाब दुकानों से पहले दिमाग से मिटाना होगा,
और अब वो वक़्त है, जब हर मर्द को दर्द का एहसास कराना होगा।

और बताना होगा की हमें भी दर्द होता है क्यूंकि हममें भी जान हैं, 
मत जलाओ हमें यूँ इस तरह हम भी तो तुम्हारी तरह एक इंसान हैं।

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67. किस्सा शाम-ए-गुफ़तगू का

मैं जब पहली बार इस GUFTAGU CAFE में आयी थी, 
तब एक लड़के के चेहरे से, मेरी नज़रें टकराई थी...

उससे नहीं था मेरा कोई रिश्ता जन्मों पुराना,
मगर हाँ! वो लग रहा था, मुझे कुछ जाना- पहचाना...

मैं उसे बार-बार देखकर ये सोच रही थी कि "ये मेरा कोई पुराना दोस्त है, या मेरी किसी सहेली का भाई?",
सच कहूं तो दोस्तों! उस रात इसी कश्मकश में मुझे काफी देर तक नींद नहीं आयी...

और मज़े की बात तो ये थी,कि मैंने तो उसे कई दफ़ा देखा, मगर उसने मुझे देखा या नहीं देखा, ये मैंने नहीं देखा,
हाँ! उसके साथ बैठे दोस्त ने मुझे उसे देखते हुए कई बार देखा...

हाँ दोस्तों ! यह सच है कि मैं बार-बार उसे देख रही थी, मगर आप मुझे गलत मत समझना, 
मैं तो बस उसे पहचानने कि कोशिश कर रही थी, अपनी आँखें नहीं सेक रही थी...

हाँ! अगर मुझे मौका मिलता तो मैं उससे बात आगे जरूर बढ़ाती, 
नंबर ना सही, "INSTAGRAM HANDLE" ही SHARE कर आती...

खैर! यही सोचते-सोचते, मेरी आँखें बंद हो गयी, 
और फिर होना क्या था, सर्दियों का मौसम था, मुँह पर डाली रज़ाई, और मैं सो गयी...

यूँ तो उस लड़के को ढूंढने की खातिर मैंने कई शामें, "शाम-ए-गुफ़तगू" में बितायी है, 
और आज इस शाम ने मुझे फिर उसी लड़के की याद दिलाई है... 

उसी शख्स की तलाश ने मुझे आज फिर "शाम-ए-गुफ़तगू" का हिस्सा बनाया है,
मगर अफ़सोस उस शाम वाला लड़का, आज इस "शाम-ए-गुफ़तगू" की महफिल में नहीं आया है...        
         
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66. हर लड़के का दिल मुझपर आता है

हर लड़का क्यों मुझसे मिलना चाहता है??
मैं नहीं शर्माती जितना वो शर्माता है,
खामोश रहकर वो अपना प्यार जताता है,
पता नहीं ऐसे शरीफ लड़कों का दिल मुझपर क्यों आता है??     

हर बार मेरा पड़ोसी MORNING WALK का वादा तो करता है,
मगर कभी वक़्त पर नहीं आता है,
MARKET जाऊँ तो वहाँ भी कोई न कोई ताड़ने वाला मिल ही जाता है,
पता नहीं ऐसे छिछोरे लड़कों का दिल मुझपर क्यों आता है??

मैं ठहरी MODERN ज़माने की लड़की, और वो पूछता है,
"क्या तुम्हे खाना बनानां आता है??" 
मुझे पसंद है WESTERN DRESSES, मगर उसे मेरा देसी LOOK भाता है,
GIRLFRIEND बनने की उम्र में वो मुझे बीवी बनाना चाहता है,
पता नहीं ऐसे घरेलु लड़कों का दिल मुझपर क्यों आता है??

उसके PROPOSAL REJECT किये हैं मैंने कई दफ़ा,
फिर भी हर मुलाक़ात पर वो गुलाब का फूल ले आता है,
कभी माँ के पैर छूने तो कभी पापा की तबियत पूछने आजाता है,
कभी किसी बहाने से सामने से, तो कभी छुपकर देखने आता है,
पता नहीं ऐसे छुपे रुस्तमों का दिल मुझपर क्यों आता है?? 

कभी OFFICE में तो कभी किसी EVENT पर, कोई नया आशिक़ बन जाता है,
लाख मना करने पर भी वो साथ वक़्त बिताने के बहाने ढूँढ लाता है,
शायद शक्ल कुछ ज्यादा ही मासूम है मेरी, 
तभी तो मेरा RUDE BEHAVIOUR भी उन्हें CUTE नज़र आता है,
लगता है यही REASON है जो हर लड़के का दिल मुझपर आता है...
[नोट: अगर आप इस कविता को चाहते हो सुनना, तो क्लिक👆🏻 करें नीचे⬇️ दिए गए लिंक पर...]



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65. मैं धूप - वो रात

मैं थी धूप-सी चमकती,
और वो रात के अंधेरे-सा था,
सपने भरी आँखों में,
वो काले घेरे-सा था...

वो था कुछ अलग,
मगर काफ़ी हद्द तक, मेरे-सा था
मैं थी धूप-सी चमकती,
वो रात के अंधेरे-सा था,
सपने भरी आँखों में,
वो काले घेरे-सा था...

उसे तो गैरों के साथ सुकून मिलता था,
उसका राबता कहाँ मेरे से था,
मैं थी धूप-सी चमकती,
वो रात के अंधेरे-सा था,
सपने भरी आँखों में,
वो काले घेरे-सा था...

उसे चाहिए थी मेरी रातें तमाम,
मुझे मतलब उसके हर सवेरे से था,
मैं थी धूप-सी चमकती,
वो रात के अंधेरे-सा था,
सपने भरी आँखों में,
वो काले घेरे-सा था...

उसको शायद बस वक़्त बिताना था,
उसका इश्क़ कहाँ मेरे-सा था,
मैं धूप-सी चमकती,
वो रात के अंधेरे-सा था,
सपने भरी आँखों में,
वो काले घेरे-सा था...

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64. मैं आज भी कुंवारी हूँ

कल तक थी मैं दिवाली की फुलझड़ी,
अब आग लगाने वाली चिंगारी हूँ,
वो मेरे साथ, सात जन्मों का साथ निभाने की कसमें खाने वाला, बसा चुका है अपना घर,
मैं कल भी कुंवारी थी, आज भी कुंवारी हूँ...

कभी हाथों में हाथ डालकर, वो मुझे अपनी दुनिया बताता था,
अब उसके लिए मैं बेकार की दुनियादारी हूँ,
वो मेरे लिए पूरी दुनिया के खिलाफ़ खड़ा होने वाला तो बसा कर खुश है अपना घर,
मैं कल भी कुंवारी थी, आज भी कुंवारी हूँ...

कल तक वो मुझे अपने बराबर समझता था,
अब मैं उसके लिए एक तरफ़ा तरफदारी हूँ,
वो सबसे मेरे लिए लड़ने वाला बसा कर खुश है अपना घर,
मैं कल भी कुंवारी थी, आज भी कुंवारी हूँ...

कल तक उसे मेरा हर नखरा वाज़िब और प्यारा लगता था,
अब मैं उसके लिए ज़बरदस्ती की खातिरदारी हूँ,
वो मेरी गलत बात को भी सही कहने वाला, बसा कर खुश है अपना घर,
मैं कल भी कुंवारी थी, आज भी कुंवारी हूँ...

कल तक मैं उसके लिए एक क़ीमती हीरा थी,
आज पर्स में पड़ी बेकार रेजगारी हूँ,
वो मेरे लिए चाँद तारे तोड़ने वाला बसा कर खुश है अपना घर,
मैं कल भी कुंवारी थी, आज भी कुंवारी हूँ...

कल तक उसके लिए मेरी हर ख्वाहिश ज़रूरी थी,
अब उसके लिए मैं एक अनचाही ज़िम्मेदारी हूँ,
वो मेरे साथ अपना हर ख़्वाब बांटने वाला बसा कर खुश है अपना घर,
मैं कल भी कुंवारी थी, आज भी कुंवारी हूँ...

कल तक बिन कहे वो मेरे ग़म में, मेरे साथ बैठ कर आँसू बहाता था,
अब मैं उसी शख्स के लिए, अत्याचारी नारी हूँ,
वो मेरे साथ सुख-दुख बांटने का वादा करने वाला बसा कर खुश है अपना घर,
मैं कल भी कुंवारी थी, आज भी कुंवारी हूँ...

चलो बसा लिया उसने अपना घर,
इस बात से मैं भी खुश हूं,
मगर खुशी इस बात की ज़्यादा है,
की अब ना किसी पे भारी हूँ,
ना किसी की लाचारी हूँ,
अपने फैसले लेने को आज़ाद हूँ मैं कल की तरह,
क्यूँकी मैं कल भी कुंवारी थी, आज भी कुंवारी हूँ....

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63.आनंद ही आनंद है

आनंद ही आनंद है,
आनंद ही आनंद है,
इंसां है तू मेरी तरह,
 फिर क्यूँ तुझे घमंड है? 
 विनम्रता से जोड़ नाता, 
छोड़ दे जो द्वंद है, 
आनंद ही आनंद है(2)... 

है खुशी कहीं - कहीं, 
सबका दुख अत्यंत है, 
नज़र घुमा के देख ले, 
किसकी खुशी अखंड है? 
हृदय को कर ले तू बड़ा, 
फिर आनंद ही आनंद है, 
आनंद ही आनंद है...

बेटा करे जिसे पसंद,
वो माँ को नहीं पसंद है,
और माँ को जो पसंद है,
भला वो किसे पसंद है,
दिल से नहीं रिश्ता कोई,
ज़बरदस्ती रज़ामंद हैं,
जो बात तुम ये जान लो,
फिर आनंद ही आनंद है,
आनंद ही आनंद है...

आतिथ्य से भरपूर हम, 
हृदय का द्वार बंद है,
छोड़ो सभी शिकायतें,
खोलो जो द्वार बंद है,
फिर मिल सकोगे तुम उसे,
जीवन का जो आनंद है, 
आनंद ही आनंद है, 
आनंद ही आनंद है...

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62.मैं कह नहीं पा रहीं हूँ...

क्यों नहीं हो रहा हासिल, 
जो मैं हासिल करना चाह रहीं हूँ?,
दिल भरा है बातों और अल्फाजों से,
फिर भी क्यों मैं कह नहीं पा रहीं हूँ??

यूँ तो सहा है बहुत दर्द इस दिल ने,
फिर आज ये ज़रा-सी तकलीफ़,
क्यों मैं सह नहीं पा रहीं हूँ??
दिल भरा है बातों और अल्फाजों से,
फिर भी क्यों मैं कह नहीं पा रहीं हूँ??

कभी कह दिया करती थी, हर बात यूँ ही बेधड़क,
फिर क्यों सिल से गए हैं मेरे होंठ, क्यों आज मैं कुछ कह नहीं पा रही हूँ?,
दिल भरा है बातों और अल्फाजों से,
फिर भी क्यों मैं कह नहीं पा रहीं हूँ??

जुबाँ मेरी खामोश है, 
मगर दिल से चुप हो नहीं पा रही हूँ,
दिल भरा है बातों और अल्फाजों से,
फिर भी क्यों मैं कह नहीं पा रहीं हूँ??

यूँ तो हर बार रखा है सब्र मैंने,
मगर इस बार का इंतज़ार मैं सह नहीं पा रही हूँ,
दिल भरा है बातों और अल्फाजों से,
फिर भी क्यों मैं कह नहीं पा रहीं हूँ??

यूँ तो कई बातें समझी हैं मैंने बिन कहे भी,
मगर इस बार खुदा का इशारा मैं समझ नहीं पा रही हूँ, 
शायद इसीलिए अल्फाजों के होते हुए भी, 
इस बार मैं कुछ कह नहीं पा रहीं हूँ...


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61.मेरा दिल क्यूँ तोड़ दिया??? 

मैं तो नन्ही सी बच्ची थी,
मेरा दिल क्यूँ तोड़ दिया?,
मेरी माँ ने घर की खातिर,
घर का दामन छोड़ दिया...

भूल नहीं पायी मैं अबतक,
कैसा-कैसा ज़ुल्म किया,
खता किसी की, सज़ा किसी को,
कैसा ये इंसाफ किया??? 

कभी गिराया, कभी सम्भाला,
सबने इक-इक ज़ख्म दिया,
सज़ा वो देगा ऊपर वाला,
मैंने अपना कर्म किया...

याद है मुझको, वो भी इक दिन, 
जब मैंने रोना छोड़ दिया,
गलती उसके बच्चे की थी,
उसने मेरा हाथ मरोड़ दिया...

वो था उसका अपना बच्चा,
मैं ठहरी औलाद किसी की,
सबको दिखता दर्द है अपना,
नहीं यहाँ तकलीफ़ किसी की... 

शायद उसे मालूम ना होगा, 
कि दर्द मुझे भी होता है,
देख के खाली घर को मेरे,
मेरा दिल भी रोता है... 

उसने सोचा मैं पत्थर हूँ, 
इसीलिए तो तोड़ दिया, 
सीख लिया ज़ख्मों पर हँसना, 
अब मैंने रोना छोड़ दिया...

काँच जो टूटे, ज़ख्म है लगता, 
दिल ने कब, किसको ज़ख्म दिया, 
दिल ही था, कोई काँच नहीं था,
क्या हुआ जो तोड़ दिया??... 

हर दिन पूछे ये दिल मुझसे, 
माँ की तेरी मज़बूरी थी, 
शौक नहीं जो छोड़ दिया, 
तू तो थी मासूम सी बच्ची, 
फिर तेरा दिल क्यूँ तोड़ दिया????


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60.क्यों पूछता है...

है कल का ये साया मुझे नोचता है,
किया क्या है हासिल हर कोई पूछता है... (2x)

ये करते हैं, तुझसे सवाल आजकल जो,
दिया क्या इन्होने ये दिल पूछता है...
है कल का ये साया मुझे नोचता है,
किया क्या है हासिल हर कोई पूछता है... 

जगह मेरे दिल में है, बस इक जूनून की,
हर कोई अपनी जगह पूछता है...
है कल का ये साया मुझे नोचता है,
किया क्या है हासिल हर कोई पूछता है...

दिया मैंने अपना वक़्त हर किसी को,
फिर भी क्या दिया है, ये जग पूछता है...   
है कल का ये साया मुझे नोचता है,
किया क्या है हासिल हर कोई पूछता है...

जो भी किया है, वो खुद ही किया है,
दिया कुछ नहीं जब, तो क्यों पूछता है???
है कल का ये साया मुझे नोचता है,
किया क्या है हासिल हर कोई पूछता है...

करेंगे हम हासिल मकां जो है सोचा,
दुबारा मिलेगा ना तुझको ये मौका, 
क्या है तेरे दिल में, तू क्या सोचता है, 
खुलके पूछ ले आज जो पूछता है...
है कल का ये साया मुझे नोचता है,
किया क्या है हासिल हर कोई पूछता है...

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59.जिंदगी ने मुझे कभी अपनाया नहीं

मेहनत तो की मैंने मगर परिणाम कभी आया नहीं ,
या ये कहूँ की इस जिंदगी ने मुझे कभी अपनाया नहीं। 

जो भी मिला उसने यही कहा की बेइंतहां प्यार है उनके दिल में,
कभी किसी ने ढंग से जताया ही नहीं,
या इस जिंदगी की तरह उन्होंने भी मुझे अपनाया नहीं।  

वादा सबने किया साथ निभाने का, 
मगर मेरी तरह शिद्दत से किसी ने वादा निभाया नहीं,
शायद इस जिंदगी की तरह उन्होंने भी मुझे अपनाया नहीं। 

मुझसे हाथ बढ़ा कर मदद सबने मांगी,
मगर मेरी ज़रूरत पर किसी ने अपना हाथ बढ़ाया नहीं,
क्यूँकि इस जिंदगी की तरह उन्होंने भी मुझे अपनाया नहीं।  

मालूम थी मुझे सबकी हक़ीक़त, फिर भी दिल में दबा कर रखा मैंने हर राज़, 
किसी को, किसी का सच बताया नहीं,
क्यूँकि वाक़िफ़ थे हम इस बात से, की इस जिंदगी की तरह उन्होंने भी मुझे अपनाया नहीं।  

सबने सुनाया अपना हाल-ए-दिल मुझे,
मैं सुनती रही सबका दर्द, मगर अपना दर्द किसी को दिखाया नहीं,
क्यूँकि मालूम था मुझे की इस जिंदगी की तरह उन्होंने भी मुझे अपनाया नहीं।  

हर कोशिश की मैंने अपनी मंजिल को पाने की,
हर बार गिरी मगर अपनी हिम्मत को मैंने हराया नहीं,
बस एक ही बात समझायी खुदको की हासिल होगी मेरी मंजिल कभी न कभी,
गले लगाएगी ये जिंदगी और क़िस्मत मुझे एक ना एक दिन,    
क्या हुआ जो आज इस जिंदगी ने मुझे अपनाया नहीं?? 

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58.उसको बच्ची लगती हूँ...

है एक दीवाना मेरा, 
मैं उसको अच्छी लगती हूँ,
यूँ तो हो गई हूँ मैं सयानी,
मगर उसको बच्ची लगती हूँ...

पसंद है उसको मेरी कविता,
अल्फाजों से सच्ची लगती हूँ,
यूँ तो हो गई हूँ मैं सयानी,
मगर उसको बच्ची लगती हूँ...

कहता है मुझको, कि मैं अलग हूँ ,
बस अक्ल से कच्ची लगती हूँ,
यूँ तो हो गई हूँ मैं सयानी,
मगर उसको बच्ची लगती हूँ...

मिलें हैं उसको बेवफ़ा कई,
एक मैं ही सच्ची लगती हूँ,
यूँ तो हो गई हूँ मैं सयानी,
मगर उसको बच्ची लगती हूँ...

कहता है दिल से नादान हूँ मैं,
मगर इरादों की पक्की लगती हूँ
यूँ तो हो गई हूँ मैं सयानी,
मगर उसको बच्ची लगती हूँ...

इक दिन पूछा मैंने उसको, 
आखिर ऐसा है क्या मुझमें, 
जो मैं सच्ची लगती हूँ?, 
दुनिया में तो हैं कई चेहरे, 
फिर मैं ही क्यूँ अच्छी लगती हूँ??...

वो भी निकला हाज़िर ज़वाब, 
कहता उसने देखा ख़्वाब, 
झूठ नहीं मैं कहती हूँ, ना वो सुनना चाहता है, 
बस मेरे साथ बिताने के कुछ ख़्वाब बुनना चाहता है... 

नहीं हुई थी बात खत्म, 
आगे भी उसको कहना था, 
बना कर एक ख़्वाबों का जहाँ, 
उसको मेरे साथ जो रहना था... 

अंत में उसने खोला राज़, 
भाया मुझे उसका अंदाज़, 
चेहरे कई हैं देखे उसने, 
मैं नज़रों से सच्ची लगती हूँ, 
यही एक कारण है, जो मैं, 
उसको अच्छी लगती हूँ... 

यूँ तो हो गई हूँ मैं सयानी,
मगर उसको बच्ची लगती हूँ...

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57.खाई है कसम

खाई है कसम अब खुद को बिलकुल नहीं बचाएंगे,
खाई है कसम अब खुद को बिलकुल नहीं बचाएंगे,
बारिश हो तो सही,
अरे! बारिश हो तो सही, हम ज़रा क्या पूरा भीग जायेंगे।

और यूँ तो बहुत आलसी हैं हम, फिर भी सज-सवर कर खड़े रहते हैं,
हर शाम अपनी चौखट पर उनके इंतज़ार में,
की कब वो गली से गुज़रेंगे, और कब हम उन्हें देख कर,
शरमाते हुए अपनी नज़रें झुकाएँगे,
खाई है कसम अब खुद को बिलकुल नहीं बचाएंगे,
बारिश हो तो सही, हम ज़रा क्या पूरा भीग जायेंगे।

और उन्हें हमारी हर बात दिल्लगी लगती है,
और उन्हें हमारी हर बात दिल्लगी लगती है,
काश! कोई बताये उन्हें के हम हर रात खुद से सवाल करते हैं,
की कब वो दिन आएंगे जब हम उन्हें "अजी सुनते हो" कहकर बुलाएँगे,
खाई है कसम अब खुद को बिलकुल नहीं बचाएंगे,
बारिश हो तो सही, हम ज़रा क्या पूरा भीग जायेंगे।

[नोट : यह कविता द स्पिरिट मेनिया  द्वारा प्रकाशितजुस्तजू  में प्रकाशित हुई है। और यह पुस्तक AMAZON.IN पर उपलब्ध है] 

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56.उड़ता तीर

कमाती हूँ अपना मैं कोई फ़कीर नहीं हूँ,
तेरे बाकी दोस्तों जैसी पैसों की पीर नहीं हूँ,
हाँ! ये सच है की मैं बस प्यार की भूखी हूँ, 
मगर तू मज़ाक ना उड़ाया कर यूँ सरेआम मेरी मोहब्बत का,
हाँ! मैं लड़की हूँ मगर कोई उड़ता तीर नहीं हूँ...     
 
तू हाँकता है अपने दोस्तों के आगे लंबी-लंबी, 
इस बात से वाक़िफ़ हूँ मैं,
सबको यही कहता है तू, एक तेरी मोहब्बत सच्ची है,
जिसके नहीं काबिल हूँ मैं...
 
ख़ैर! अब जो तू कर चुका है फैसला मुझसे जुदा होने का,
तो जाते-जाते सुनता जा, तू बने मजनूँ या राँझा किसी और का,
मगर आज से मैं तेरी क्या किसी की हीर नहीं हूँ,
और ये बात याद रखना, की ना मेरे जैसी है, ना मिलेगी, 
मैं "संजीता" हूँ कोई उड़ता तीर नहीं हूँ।       

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55. गुनाह तो बता दो...

उसने कहा कि सज़ा होगी तुमको ,
मैंने कहा कि खता तो बता दो,
सज़ा जो भी दो, है मंज़ूर हमको, 
मगर पहले हमको गुनाह तो बता दो... 
उसने कहा कि सज़ा होगी तुमको ,
हमने कहा कि खता तो बता दो...

जो निभा ना सका खुद मोहब्बत के वादे, 
कैसे वो वफा मांगता है बता दो, 
करते नहीं हम बेवफ़ाई किसी से, 
सीखा है हमने वफा दो, वफा लो, 
उसने कहा कि सज़ा होगी तुमको, 
हमने कहा कि खता तो बता दो...

करता रहा वो भरोसे को छल्लीं, 
इस हक़ीक़त से वाकिफ़ हैं, हम ये बता दो, 
थी उसकी चाहत बस जिस्मों को पाना,
कोई इस हक़ीक़त से वाकिफ़ करा दो,
उसने कहा कि सज़ा होगी तुमको, 
हमने कहा कि खता तो बता दो...

जो बस में नहीं था, वो वादा निभाना, 
क्यूँ खाई थी कसमें इतना ही बता दो, 
हैं कैसे निभाते मोहब्बत में वादे,
मेरे यार कोई उसे ये सीखा दो,
उसने कहा कि सज़ा होगी तुमको, 
हमने कहा कि खता तो बता दो...

की जिसने मोहब्बत पाकीज़ा होके, 
किसने दिया हक़ की तुम उसको दगा दो??, 
जो आती नहीं है, ये इश्क़-ओ-मोहब्बत,
कदम पीछे रखो, यहीं से दफ़ा हो,
उसने कहा कि सज़ा होगी तुमको, 
हमने कहा कि खता तो बता दो...

वो कहते थे, हम में नशा कुछ अलग है,
अरे! कोई इन्हें मयखाने का पता दो,
वो कहते रहे हमें महफ़िल में क़ातिल,
हुई किसकी आख़िर कजा तो बता दो,
उसने कहा कि सज़ा होगी तुमको ,
हमने कहा कि खता तो बता दो...
 
दो तुम दुआएँ या बद्दुआ दो , 
रुलाया क्यूँ दिल को ज़रा ये बता दो??,
क्या सच में थी उसकी मोहब्बत में शिद्दत??,
मेरे दोस्तों मुझको इतना बता दो, 
उसने कहा कि सज़ा होगी तुमको, 
हमने कहा कि खता तो बता दो...
सज़ा जो भी दो, है मंज़ूर हमको, 
मगर पहले हमको गुनाह तो बता दो...

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54.फिर एक बार...

ये दिल तन्हा हो गया, फिर एक बार,
वक़्त से टूटा लम्हा हो गया, फिर एक बार... 

कभी टूटे थे हम, आज टूटते देखा किसी और को, फिर एक बार, 
ये दिल तन्हा हो गया, फिर एक बार...

ये आँखे भूल गई थी ख़्वाब सजाना,
इन्हीं आँखों में सजने लगे सपने, फिर एक बार,
ये दिल तन्हा हो गया, फिर एक बार...

हाँ! की थी इस दिल ने गलती कभी, 
वो गलती अब ना दोहराएगा दिल, फिर एक बार,
क्या हुआ? जो ये दिल तन्हा हो गया, फिर एक बार...

कभी टेक दिए थे घुटने हमने हालातों के आगे, 
मगर इस बार ना मानेंगे हार, फिर एक बार,
हाँ! ये दिल तन्हा हो गया, फिर एक बार...

कभी डर लगता था तन्हाई से, 
अब नहीं डरते हम किसी भी रुस्वाई से, 
क्यूँकी अपनी मर्ज़ी से चुनी है तन्हाई हमने इस बार, 
हाँ! ये दिल तन्हा हो गया, फिर एक बार...

जो रह गए थे सपने अधूरे कभी हमारे,
होंगे पूरे वो ख़्वाब सारे, 
ये वादा है खुद से इस बार,
क्यूँ डरें हम जो ये दिल तन्हा हो गया, फिर एक बार???...

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53.अजीब दोस्त

है मेरा एक दोस्त, 
जो बहुत अजीब तरह से अपना प्यार जताता है,
रूठता भी खुद है, फ़िर खुद ही मनाता है।

यूँ तो छोटी-छोटी बातों पर खुद मुझसे लड़ता है,
मगर मेरे लिए वो हर किसी से लड़ जाता है, 
हाँ! है ज़रा नादां वो तभी हर बार नादानी कर जाता है। 

गुस्से में वो अक्सर मेरा प्यार भूल जाता है,
और लड़ते-लड़ते कभी मुस्कुरा दूँ, तो मुझसे ज़्यादा वो शर्माता है।

यूँ तो नए लोगों से बात करने में उसे पसीना आता है,
मगर मुझसे कई बातें वो बेशर्मी से कह जाता है।

कभी-कभी उसके सवाल होते हैं, बे-सर, पैर के,
मगर मुझे उसकी बक-बक सुनने में बड़ा मज़ा आता है।

पहले खुद शक़ करता है,
फ़िर खुद अपने भरोसे को कमज़ोर बताता है,
कभी कहता है कि मुझ पर उसे सबसे ज़्यादा यकीं है, 
तो कभी अपने ही भरोसे पर सवाल उठाता है, 
ऐसा ही अलबेला है वो, तभी अलबेली हरकतें कर जाता है।

हाँ! है मेरा एक दोस्त, 
जो बहुत अजीब तरह से अपना प्यार जताता है,
रूठता भी खुद है, फ़िर खुद ही मनाता है।

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52.वो मुझसे बहुत प्यार करता है

एक वक़्त था जब वो मुझसे कहता था
कि बहुत बोलती हो तुम यार, ज़रा चुप भी रहा करो,
और आज वही शख्स मेरी ख़ामोशी से डरता है,
पहले हम उसे यकीन दिलाते थे, अपनी मोहोब्बत का,
और आज वो खुद चीख-चीख कर ये कहता है,
कि वो मुझसे बहुत प्यार करता है।               

पहले कहता था की, 
"जाना है तो जा, मुझे फ़र्क नहीं पड़ता तेरे होने या ना होने से",
"मुझे कोई ख़ुशी या दर्द नहीं होता, तेरे हँसने या रोने से",
और आज वही शख्स मेरे साथ बिताने को दो पल सौ-सौ बार मिन्नतें करता है,
और इतना ही नहीं जो खुद जाने को कहता था, 
अपनी जिंदगी से, आज वही शख्स मुझे खोने से डरता है,
क्यूंकि वो मुझसे बहुत प्यार करता है।               

पहले जो अपने दोस्तों के आगे मुझे कुछ नहीं समझता था,
आज वो मेरी चुप्पी भी समझता है,
और पहले जो हमारे रिश्ते को किसी के आगे बयां करने से कतराता था,
आज वो सबसे यही कहता है कि, वो ज़िंदगी भर मेरा इंतज़ार करेगा,
क्यूंकि वो मुझसे बहुत प्यार करता है

खैर, मैंने उसकी बात पर यकीन तो कर लिया,
मगर एक बात समझ नहीं आयी आजतक मुझे,
और इस बात के लिए मेरा दिल हर रोज़ मेरे दिमाग़ से लड़ता है,
की जिसने आजतक कभी वफ़ा नहीं की तुझसे,
उस बेवफ़ा पर तू कैसे यक़ीन करता है???,
क्या सिर्फ़ इसलिए की वो बार-बार ये कहता है,
कि वो मुझसे बहुत प्यार करता है।   

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51.उसके आने से पहले

उसके आने से पहले, मैं एक ग़ज़ल थी बेबहर-सी,
वो आया तो बन गई, 
मैं एक क़यामत, और छा गई जैसे किसी कहर सी...

उसके आने से पहले बहती थी नदिया-सी शीतल,
अब बहती हूँ जैसे सुनामी की लहर सी...
वो आया तो बन गई, 
मैं एक क़यामत, और छा गई जैसे किसी कहर सी...

उसके आने से पहले तो थी मैं छांव-सी ठंडी,
अब है चमक मेरी गर्म दोपहर-सी...
वो आया तो बन गई, 
मैं एक क़यामत, और छा गई जैसे किसी कहर सी...

उठ रहा है दिल में तुम्हारे ये सवाल,
थी जब ये कोमल तो अब क्यूँ बवाल?,
कौन है वो जिसने किया ये कमाल?,
दे देती ज़वाब जो पहले-सी होती, अब तो बन गई हूं, बिल्कुल ज़हर-सी... 

उसके आने से पहले, मैं एक ग़ज़ल थी बेबहर-सी,
वो आया तो बन गई, 
मैं एक क़यामत, और छा गई जैसे किसी कहर सी...

[नोट : "वो" और कोई नहीं मेरा सपना है, जो मैंने अपने लिए देखना शुरू किया है....]

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50.उफ्फ ये मुश्किलें...

क़िस्मत और ज़िंदगी ने तो लिए हैं कई बार,
क्यूँ ना एक दफा हम भी इनका इम्तिहान ले ले?, 
ये मुश्किलें ग़र आसां हो जाए, तो जाँ ही ले ले... 

उस खुदा ने नावाज़ी है ज़मी मुझे मेरे हक़ की,
अब सोचते हैं, कि उससे ज़रा आसमाँ भी ले ले,
ये मुश्किलें ग़र आसां हो जाए, तो जाँ ही ले ले...

कहा था कभी किसी ने हम से, कि कुछ नहीं चाहते वो हमारे सिवा,
अब कहते हैं उन्हें फर्क़ नहीं पड़ता कोई,
फिर चाहे हम उन्हें अपने दोनों जहाँ ही दे दे,
ये मुश्किलें ग़र आसां हो जाए तो जाँ ही ले ले...

और कितना भागें?, 
और कितना भागें, ए ज़िंदगी तेरी ज़रूरतें पूरी करने के लिए?, 
अब हमें ज़रा-सा सुकून और आराम तो दे दे,
ये मुश्किलें ग़र आसां हो जाए तो जाँ ही ले ले...

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49.ये दिल अब आवारा हो गया है

कल तक ठिकाना ढूंढता था ये दिल,
ना जाने क्यूँ अब बंजारा हो गया है,
ये दिल पहले तो ऐसा नहीं था,
ना जाने क्या हुआ, जो ये आवारा हो गया है...?

कल तक बस उस एक शिद्दत वाली मोहब्बत की चाहत थी इसे,
अब अचानक ये सबकी आँखों का तारा हो गया है,
ये दिल पहले तो ऐसा नहीं था,
ना जाने क्या हुआ, जो ये आवारा हो गया है...?

कल तक ये नजरें, नजरों में खूबसूरती तलाशती थी,
आज इन्हीं नजरों के आगे, बेकार हर नज़ारा हो गया है,
ये दिल पहले तो ऐसा नहीं था,
ना जाने क्या हुआ, जो ये आवारा हो गया है...?

कल तक इस दिल को ख्वाहिश थी उस एक चाँद की,
आज इसका ख़्वाब आसमाँ का हर सितारा हो गया है,
ये दिल पहले तो ऐसा नहीं था,
ना जाने क्या हुआ जो ये आवारा हो गया है...?

कल तक ये दिल यकीन कर लेता था, आँख बंद करके,
आज खुली आँखों से भी भरोसा करना इसे ना-गवारा हो गया है,
ये दिल पहले तो ऐसा नहीं था,
ना जाने क्या हुआ जो, ये आवारा हो गया है...?

कभी डूबा था ये भी इश्क़ के समन्दर में,
मगर अब लहरों से बेहतर समन्दर का किनारा हो गया है, 
इश्क़ करके ही इस दिल को अक्ल आयी है,
शायद इसीलिए ये दिल अब आवारा हो गया है....

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48.मेरी तन्हाई - मेरी दोस्त

है मेरी एक दोस्त,
जो ना कभी मेरा दिल तोड़ती है,
ना मुझे कभी अकेला छोड़ती है,
उसने ना कोई वादा किया मुझसे,
ना ही कोई झूठी कसमें खाई हैं,
बिन वादों के ही उसने सारी रस्में निभाई है,
वो सिर्फ मेरे दिल में ही नहीं, मेरी रगों में भी बसती है,
मैं रोऊँ तो रोती है, मेरे साथ हंसती है
कभी कोई नया दोस्त बन जाये,
तो मुस्कुरा के ताना कसती है,
ये मेरी दोस्त बहुत खास है,
सब दूर हैं मगर ये सबसे पास है,
ये मेरी दोस्त मेरे ज़हन और रूह में समाई है,
इसने तो मरने के बाद भी साथ निभाने की कसम खाई है, 
ये और कोई नहीं, बचपन से साथ दे रहीं मेरी अपनी तन्हाई है...

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47.थक गए हैं - मगर हार नहीं मानी है

थक गए हैं ज़िन्दगी की उल्टी-सीधी राहों पर चलते-चलते,
थक गए हैं हर रोज़ अपने हालातों से लड़ते-लड़ते।

ना जाने कितने नये रूप दिखाएगी ये ज़िन्दगी,
ना जाने और क्या-क्या सिखाएगी ये जिन्दगी।

सुना था ज़िन्दगी हर मोड़ पर नये-नये रंग दिखाती है, 
मगर ये तो रंगों के साथ, ज़िन्दगी जीने के कई नये ढंग भी सिखाती है।

और सुना है हमने की जान देने वाले बहुत हिम्मत वाले होते हैं,
मगर जो मुसकुराते हुए जो ज़िन्दगी जीते हैं वो लोग निराले होते हैं,
और जिनको हिम्मत मिलती है अपनों से वो किस्मत वाले होते हैं।

मगर चाहे जितने सितम कर ले ये ज़िन्दगी हमपर,
ठान ली है हमने बदलेंगे अपनी किस्मत अपने दमपर।

कई ठोकरें खाकर भी हमने कभी हार ना मानी है, 
चाहे जितनी भी कोशिश कर ले ये जिन्दगी, अब होगा वही जो ईस दिल ने ठानी है।

अगर इसे ज़िद कहते हैं तो अब यही ज़िद पूरी करके दिखाएँगे,
और अब अपनी ज़िन्दगी को हम अपने रंग अपने ढंग से दिखाएँगे।

[नोट : यह कविता देवप्रभा प्रकाशन द्वारा प्रकाशित कविता अविराम - 1 में प्रकाशित हुई है। और यह पुस्तक AMAZON.IN पर उपलब्ध है] 

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46.मैं उड़ना चाहती हूँ

मैं पंख फैला कर उड़ना चाहती हूँ,
नये ख्वाबों से जुड़ना चाहती हूँ, 
जो बीत गया उसकी तरफ़ कभी ना मुड़ना चाहती हूँ,
मैं तो बस खुले आसमान में उड़ना चाहती हूँ ।

ना जाने कब मौका मिलेगा अपने ख्वाबों से जुड़ने का,
ना जाने कब मौका मिलेगा खुली हवा में उड़ने का,
इंतज़ार है मुझे अपनी किस्मत के दरवाज़ों के खुलने का,
और बहुत बेसब्री से इंतजार है अपने सपनों से मिलने का ।

अब सोच लिया है मैने कि अब कभी हार नहीं मानूंगी,
अब लोगों से पहले मैं खुद को पहचानुंगी,
अब ठान ली है मैने कि अब कभी हार नहीं मानूंगी ।

हर कोशिश करूँगी अपने सपनों से जुड़ने की,
कोई कितना भी रोके मैं पूरी कोशिश करूँगी खुली हवा में उड़ने की।

[नोट : यह कविता देवप्रभा प्रकाशन द्वारा प्रकाशित कविता अविराम - 1 में प्रकाशित हुई है। और यह पुस्तक AMAZON.IN पर उपलब्ध है] 

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45. वो तो नन्ही सी जान थी

वो तो नन्ही सी जान थी,
वो तो दिल से नादान थी,
उसको जो सज़ा मिल रही है,
जिसमें गलती उसकी नहीं है,
वो तो उससे भी अनजान थी।

उसने पूछा था कि "ये क्या कर रहे हैं आप?" ,
उम्र से तो लगता था वो खुद एक बेटी का बाप।

मगर वो जानता था कि जो वो कर रहा है वो पाप है,
आखिर वो कैसे भूल गया कि वो खुद एक बेटी का बाप है?

मगर वो हैवान था, इनसान नहीं था,
वो ग़लती नहीं गुनाह कर रहा है,
इस बात से वो अनजान नहीं था।

मगर वो हैवान भूल कर हर इंसानियत, बार-बार वही गुनाह करता रहा,
और अपनी दो पल की खुशी के लिए एक मासूम की जिन्दगी तबाह करता रहा।

रूह कांप जाती है जब ऐसा कोई किस्सा सुनने में आता है,
कैसे होते हैं वो दरिन्दें जिन्हें उस मासूम पर ज़रा-सा भी तरस नहीं आता है?

माना वो ग़ैर है, हमारे लिए खास नहीं है,
मगर क्या हमें उसके दर्द का ज़रा-सा भी एहसास नहीं है?

क्या सिर्फ कैंडल मार्च से उस मासूम को इन्साफ मिल जाएगा?
नहीं! जब बीच चौराहे पर ज़िन्दा जलाए जाएँगें,
वो हैवान असली सबक उन्हें तभी मिल पाएगा,
और फिर किसी मासूम की जिन्दगी कोई हैवान फिर से तबाह ना कर पाएगा।

[नोट : यह कविता देवप्रभा प्रकाशन द्वारा प्रकाशित कविता अविराम - 1 में प्रकाशित हुई है। और यह पुस्तक AMAZON.IN पर उपलब्ध है] 

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44.सही वक़्त का इंतज़ार है

यूँ तो हम भी जवाब दे सकते हैं दुनिया के सवालों का,
मगर हमें सही वक़्त का इंतज़ार है

जानते हैं हम की कभी हार में भी जीत है, तो कभी जीत में भी हार है,
हमें तो बस सही वक़्त का इंतज़ार है

कितनी कमीयां है हम में ये तो दुनिया जानती है,
मगर जो खुबियां देख सके हममें उस एक शख्स का इंतज़ार है,
हमें बस सही वक़्त का इंतज़ार है

यूँ तो कबके बिखर गए होते हम,
मगर इस दिल ने कभी ना मानी हार है,
इस दिल को बस सही वक़्त का इंतज़ार है

कभी-कभी लगता है बस अब बहुत हो गया, थक गए हैं चलते-चलते,
फिर हर बार की तरह इस दिल से आती आवाज़ है,
कि तुझे क्यों किसी की दरकार है?
थोड़ा सब्र कर वो वक़्त भी आएगा जिसका तुझे इंतज़ार है।

[नोट : यह कविता देवप्रभा प्रकाशन द्वारा प्रकाशित कविता अविराम - 1 में प्रकाशित हुई है। और यह पुस्तक AMAZON.IN पर उपलब्ध है] 

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43.COFFEE VS CHAI

Let me tell you,
The difference between coffee and tea,
Coffee makes you sophisticated, tea keeps you free...

Coffee can be hot or cold,
I love tea from chilhood, but why,
Nobody has never told...

I have tasted hot coffee and coffee with ice,
But if you ask me for tea,
I will say "with a little spice"...

I prefer coffee when my BP is low,
But for tea I can never say NO...

Sometimes I feel that, coffee came from some management school,
But bro! tapri wali chai is ultimately cool...

Coffee per to CCD ya STARBUCKS ka tag hai,
But dude, masala chai ka apna alag hi swag hai...

I feel coffee is like daughter-in-law,
And tea is like your own daughter,
Coffee lover can be hot,
But believe me tea lover is more hotter...

Coffee is like a guy whom your parents will choose,
But tea, tea is like your lover whom you don't want to lose...

Don't think that I'm against coffee,
But whenever I think about tea, I feel like stayfree...

Oops! Did I said something wrong,
You know what?, coffee can make you addicted,
But tea always makes you strong...

I'm sorry,
I'm saying sorry,
Not because of my mistake which I want to cover,
Is just because, I'm a chai lover...

BTW! Have you heard that song?,
Aap jaisa koi meri zindagi me aaye to baat ban jaaye,
But in my mind there is dfferent lyrics with the same tone,

Ek cup masala chai, jo mujhe mil jaaye to baat ban jaaye,
Ahaan!baat ban jaaye...


[NOTE: THIS WRITE-UP IS PUBLISHED IN TRAIT BY WISDOM PUBLICATIONS ,
AND THIS BOOK IS AVAILABLE IN AMAZON YOU CAN ORDER IT BY GIVEN LINK →AMAZON]

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42. A Story of Coffee Lover

I know all of you heard about addiction of Alcohol, Cigarettes or any other Drugs,
But one of my friend is addicted with Coffee Cups...

You must be thinking that "Is he a thief who rob Cups or mugs, or he is a convict?,
So, Let me tell you, he is neither a thief nor a Convict,
but I have to say that he is a Coffee Addict...

For him one cup of coffee , is not less than a gift or trophy,
And yes I can understand his feeling for Coffee...

After having some number of cups of Coffee,
I got to know that by his Nature he is so open, 
He don't keep things to be cover,
He is alcoholic and also a big Coffee lover...

Yes! He is alcoholic, but more addicted with Coffee,
I still remember when we went in a Coffee Shop for the first time,
he ordered a cappuccino for me and for him a Black Coffee...

Even one day I saw a dream where his Doctor told me that in his body there is no Blood,
And Doctor showed me his report, that in his veins there is only Coffee Flood...
I felt so sad, And I felt so bad,
than I realise, Oops! it's just a Dream not more than that...

Even his Coffee Love started me also get affected,
I was scared, that Am I also becoming Coffee Addicted??...
Actually he is a very big Coffee Snob,
He likes food & drinks also, but Coffee is priority for him,Coffee is always on top...

If you want Something from him, or want any favour,
than you should offer him a Black Coffee, coz that's his favorite flavour...

I know Coffee is his weakness, And Coffee is his strength,
when you spend time with him, you will get to know he is hard from outside,
but there is lots of love in his heart, somewhere under the Depth...

And Last but not the least,
CHAI MEIN AGAR SUR HAI, TO COFFEE MEIN HAI RYTHM,
AGAR CHAI MEIN MASALA HAI, TO COFFEE BHI NAHI HAI KAM...

[NOTE: THIS WRITE-UP IS PUBLISHED IN TRAIT BY WISDOM PUBLICATIONS ,
AND THIS BOOK IS AVAILABLE IN AMAZON YOU CAN ORDER IT BY GIVEN LINK →AMAZON]

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41.समझौता

अब कोई खुल के जीता कहां है,
जहां देखो समझौता  वहां है।
अब हर कहीं बस यही होता है,
अब हर कोई करता अपने सपनों से समझौता है।

कहीं किसी को अपने दिल की बात छुपानी पड़ती है,
तो कहीं खुश ना होकर भी झूठी मुस्कान दिखानी पड़ती है।

कभी-कभी तो सपनों पर जिम्मेदारी भारी पड़ती है,
मगर होती है मजबूरी, कि ना चाह कर भी,
वो जिम्मेदारी उठानी पड़ती है।

यह बस एक मेरे साथ नहीं सबके साथ यही अब होता है,
जहां घूमाओगे नजरें, तो पाओगे हर तरफ समझौता  है।
जो दिल से निभाए जाए अब कहाँ वो रिश्ते होतें है,
पहले बंधन होते थे दिल के, अब तो बस समझौता होतें हैं।

[नोट : यह कविता नवकिरण मासिक इ-पत्रिका के प्रवेशांक मई २०२० में प्रकाशित हुई है।] 

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40.What should i write today?

What should I write today?,
Should I write about the hapiness,
Or about the sadness??,
Don't know why,
but from last few days I'm feeling helpless...
Helpless because I've nothing to do,
or I'm doing nothing?,
There is Something wrong for sure,
Something is missing...

But what's that exactly?,
I'm still finding it,
If you know please tell me,
I'm not going to minding it...

Cause I'm open to say,
and open to know,
But what is missing exactly,
I still don't know...

ARRE! KOI BATAYEGA? 
YE MERE SAATH HO KYA RAHA HAI?
JAB KUCH HAI HI NAHI MERE PASS,
TO PHIR KHO KYA RAHA HAI?

I know there is some hidden history,
There must be a mysterious mystery,
Or may be your help,
Can help us to develop our chemistry...

So, don't wait,
don't be late,
Give me the answer,
before its too late,
What should I write today?,
Give me at-least a single update...

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39. क्या लिखूँ....???

सोचती हूँ क्या लिखूँ?,
पुराना लिखूँ या नया लिखूँ?,
कुछ लिखूँ या ना लिखूँ?,
वो लिखूँ या ये लिखूँ?,
इसे लिखूँ या उसे लिखूँ?
सोचती हूँ किसे लिखूँ?
सोचती हूँ क्या लिखूँ?, 
पुराना लिखूँ या नया लिखूँ?,
कोई बता दे क्या लिखूँ....

हक़ीक़त लिखूँ की फ़साना लिखूँ?,
हाल - ए - दिल या तराना लिखूँ?,
नई खुशी की ग़म पुराना लिखूँ?,
सपना पूरा या ख्वाब अधूरा लिखूँ?,
सोचती हूँ क्या लिखूँ?, 
पुराना लिखूँ या नया लिखूँ?,
कोई बता दे क्या लिखूँ?....

क्यूँ लिखूँ क्यूँ ना लिखूँ?
क्या कहता है आईना लिखूँ?,
कल रात का सपना लिखूँ या आज की सुबह लिखूँ?,
जो पाया मैने वो लिखूँ या कैसे हुई तबाह लिखूँ?,
सोचती हूँ क्या लिखूँ?, 
पुराना लिखूँ या नया लिखूँ?...
कोई बता दे क्या लिखूँ?....

चेहरे की ये खुशी लिखूँ या आँख के आंसू लिखूँ?,
जो कल थी मैं वो लिखूँ, या आज क्या हूँ वो लिखूँ?,
आने वाला पल लिखूँ या बीता हुआ कल लिखूँ?,
बीती हुई सदियाँ लिखूँ, या फिर हर एक पल लिखूँ?
सोचती हूँ क्या लिखूँ?, 
पुराना लिखूँ या नया लिखूँ?
कोई बता दे क्या लिखूँ....

दिल की हर खुशी लिखूँ, या मैं दर्द-ए-दिल लिखूँ?,
गुज़री हुई ज़िंदगी लिखूँ या फिर मैं तिल-तिल लिखूँ?,
चला गया जो वो लिखूँ, या जो आएगा उसे लिखूँ?,
आए कोई तो लिखूँ जाएगा तो क्यूँ लिखूँ?,
सोचती हूँ क्या लिखूँ?, 
पुराना लिखूँ या नया लिखूँ?
कोई बता दे क्या लिखूँ?...

जो बैठती हूँ लिखने दिन में सोचती हूँ क्या लिखूँ?,
आते नहीं ख्याल दिन में तो भला मैं क्या लिखूँ?,
पूछती हूँ फिर मैं दिल से तू ही बता दे क्या लिखूँ?,
लिख दूँ क्या वो पहला प्यार या आशिक कोई नया लिखूँ?
सोचती हूँ क्या लिखूँ, 
पुराना लिखूँ या नया लिखूँ,
कोई बता दे क्या लिखूँ....

[नोट: अगर आप इस कविता को चाहते हो सुनना, तो क्लिक👆🏻 करें नीचे⬇️ दिए गए लिंक पर...]


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38.मेरी मुस्कान

ये जो मेरी मुस्कान है,
ये मुस्कान ज़रा नादान है,
ये पगली है, झल्ली है,
दुनिया से जो अनजान है,
ये जो मेरी मुस्कान है,
ये मुस्कान ज़रा नादान है।

मगर अच्छा ही है, जो ये ज़रा नादान है, 
क्यूँ सिखाऊँ इसे सलीका, 
क्यूँ सीखे ये तौर- तरीका, 
ये कौन-सी किसी की है,
ये मेरी अपनी पहचान है, 
क्यूँकी ये मेरी मुस्कान है,
ये जो मेरी मुस्कान है,
ये मुस्कान ज़रा नादान है,
क्या करे ये बेचारी ये दुनिया से अनजान है।

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37. लड़की के जीवन चक्र की कथा

आज मुझे एक कहानी दोहरानी है,
एक लड़की के जीवन चक्र की कथा, आपके सामने लानी है,
एक लड़की कितनी पीड़ा सहती है, अपने पूरे जीवन काल में,
बस उसी की एक झलक आपको दिखानी है।

ये कहानी शुरू होती है जब वो पैदा होती है,
बेटे के पैदा होने पर ढोल नगाड़े बजते हैं,
मगर बेटी के होने पर आज भी हमें खुशी नहीं होती है।
क्या ये सिर्फ इसलिए होता है कि, बेटा वंश की बेल को बढ़ाता है?,
और बेटियाँ पराया धन होती है?

इसके बाद अभी तो वो महज 10-11 साल की होती है,
और उसने चलना बोलना सीखना होता है,
और हम उसे सही-गलत सीखाने लगते हैं,
उसकी ज़िंदगी पर हक़ है तो उसका,
मगर उसपे भी हम अपना हक़ जाताने लगते हैं।

उसकी अपनी मर्ज़ी क्या है, ये कोई नहीं जानता,
उसे भी हक़ है आज़ादी से जीने का, ये भी कोई नहीं मानता,
हाँ! ये हम सब करते हैं,
बस फर्क़ ये है कि दुनिया के आगे इस बात को मानने से डरते हैं।

अब वो युवा अवस्था में कदम रखती है,
यूँ तो वो शुरूवात से ही बहुत कुछ सहती है,
मगर सोचिए ज़रा, कितने सवाल उठते होंगे उसके ज़हन में,
जब अपनी ही माँ, दर्द होने पर चुप रहकर सहने को कहती है।

ग़लती माँ की नहीं है, परवरिश की है,
की उन्हें भी बचपन से ये ही सिखाया है,
दर्द होने पर चुप रहकर सहना, उनकी माँ ने उन्हें यही बताया है।

एक लड़की की युवा अवस्था होती इतनी असान नहीं है,
पूरे सात दिन खून बहता है उसके जिस्म से,
बस निकलती उसकी जान नहीं है।

फिर भी आप कहते हैं कि लड़कियां कमज़ोर हैं,
पैदा करके दिखाओ एक औलाद अपने जिस्म से, तो मानेंगे हम की आप में भी ज़ोर है,
और अगर नहीं कर सकते ऐसा, तो ये कहना छोड़ दो कि लड़कियाँ कमज़ोर हैं।

इसके बाद अब लड़की जवानी की पहली सीढ़ी पर कदम रखती है,
और शादी के रिश्ते आने लगते हैं,
और जो हो जाए मोहब्बत गलती से, तो सुनने दुनिया भर के ताने पड़ते हैं।

अब बेचारी असमंजस में पड़ जाती है,
एक तरफ जवानी और दूसरी तरफ कुर्बानी,
या तो घरवालों का निरादर करो, या भूल जाओ मोहब्बत की कहानी।

फिर घरवालों की इज्ज़त और मोहब्बत में किसी एक को चुनना पड़ता है,
और "चार लोग क्या कहेंगे? " दिन रात बस यही सुनना पड़ता है।

फिर किसी तरह शादी हो जाती है, और नए रिश्तों के साथ-साथ,
इनके कंधों पर नयी जिम्मेदारियाँ भी आ जाती है।

और ऊपर से माँ ये समझा कर भेजती है, की जो समझाया वो भूल ना जाना,
कोई कुछ भी कहे, मगर तुम दिल से हर रिश्ते को निभाना,
और जा तो रही हो डोली में, मगर वापस सिर्फ, अर्थी में ही आना।  

मगर आज वो बेटी पूछना चाहती है,
कि मैं अर्थी में क्यों आऊँ, ज़िंदा क्यों नहीं????,
ये बात होनी ही औलाद से कहते वक़्त आप शर्मिंदा क्यों नहीं???

इतना ही नहीं इसके बाद शुरू होती है,
ससुराल वालों की कहानी, और उनकी सेवा में गुज़र जाती है पूरी जवानी।

अब बारी आती एक पत्नी से माँ बनने की,
उस खुशी का हम अंदाज़ा नहीं लगा सकते,
जो होती है अपनी कोख से एक औलाद जनने की।

यूँ तो कई दर्द सहकर वो अपनी औलाद जनती है,
तब जाकर कहीं एक औरत, माँ बनती है।

फिर वही औलाद बड़ी होके अपने जीवन में,
उसकी अहमियत ना होने का एहसास दिलाती है,
ये वही माँ होती है, जो अपनी औलाद को बड़ा करने के लिए अपना दुध नहीं,
अपने जिस्म से अपना खून पिलाती है।

आखिर में वही औलाद कहती है, "मैंने जो किया अपने दम पर किया, माँ तेरी औकात ही क्या थी?",
कोई ज़रा पूछे उसको कि "पैदा नहीं करती तुझ जैसी औलाद तो फिर बात ही क्या थी?"

अब वो बेटी, बहन, पत्नी और माँ, अपने बुढ़ापे की तरफ बढ़ती है,
और ज़िंदगी तो मानो जैसे मौत की तरफ एक एक सीढ़ी चढ़ती है।

और एक दिन वो हमेशा के लिए  चैन की नींद सो जाती है,
एक बेटी की कहानी, दादी या नानी की मौत पर खत्म हो जाती है।

बस मुझे एक यही बात आप तक पहुँचानी थी,
एक लड़की के जीवन चक्र की कथा, आपके सामने लानी थी,
एक लड़की कितनी पीड़ा सहती है, अपने पूरे जीवन काल में,
बस उसी की एक झलक आपको दिखानी थी।

[नोट: अगर आप इस कविता को चाहते हो सुनना, तो क्लिक👆🏻 करें नीचे⬇️ दिए गए लिंक पर...]

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36.एक आस - मेरा विश्वास

आएगा एक दिन मेरी ज़िंदगी में वो जो बना है मेरे लिए,
मैं तो बस इसी आस में हूँ,
हाँ! खाए हैं कई धोखे मैंने, और दिल भी टूटा है कई दफ़ा,
फिर भी उस एक खास की तलाश में हूँ...
आएगा एक वो भी दिन जो सिर्फ मेरा होगा, 
मैं तो बस इसी आस में हूँ...

मेरे मन में अक्सर एक सवाल आता है, जैसे मैं बुनती हूँ सपने उस एक खास के लिए,
क्या मैं भी किसी के ख़्वाब-ए-खास में हूँ??,
आएगा एक वो भी दिन जो सिर्फ मेरा होगा, 
मैं तो बस इसी आस में हूँ...

यूँ तो दिल के साथ, ख़्वाब भी टूटे हैं कई बार मेरा,
फिर भी एक दिन होंगे ख़्वाब पूरे मेरे,
मैं बस इसी विश्वास में हूँ...
आएगा एक वो भी दिन जो सिर्फ मेरा होगा, 
मैं तो बस इसी आस में हूँ...

हैं जितने सवाल मेरे ज़हन में, उन सबके जवाब लेकर,
रखेगा कदम वो एक दिन मेरे दिल की दहलीज़ पर, उस वक़्त जो खुशी मिलेगी मुझे,
मैं तो उसी खुशी के एहसास में हूँ...
आएगा एक वो भी दिन जो सिर्फ मेरा होगा, 
मैं तो बस इसी आस में हूँ...

हाँ! मैं आस, तलाश और विश्वास में हूँ,
क्यूँकी बताया था मेरा हाथ देख कर एक पंडित ने मुझे कि,
ज़िंदगी खुशनुमा हो जाएगी उस रोज़ मेरी, जब उस शख्स से मिलेंगी राहें मेरी,
मैं बस उसी एक पल की आस में हूँ...
आएगा एक वो भी दिन जो सिर्फ मेरा होगा, 
मैं तो बस इसी आस में हूँ...

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35.मेरा आईना

यूँ ही कभी बेकार में,
कभी बिना श्रृंगार के,
लगने लगी हूँ खूबसूरत, क्यूँ समझ में आए ना, 
क्यूँ छेड़ने लगा है, मुझको ही मेरा आईना...? 

हृदय में सौ सवाल हैं,
मचा हुआ बवाल है,
सुनकर मेरी कविता, माँ कहती है तू कमाल है,
बवाल हैं, कमाल हैं, ये बस मेरे ख्याल हैं,
मेरे इन्हीं सवालों के, कोई जवाब लेके आए ना,
क्यूँ छेड़ने लगा है, मुझको ही ये मेरा आईना...???

वो आता है जो ख्वाबों में,
जाता नहीं ख्यालों से,
छुपा हुआ है शायद, इन्हीं - किन्हीं सवालों में,
ना जाने क्या है डर उसे, जो सूरत कभी दिखाए ना,
क्यूँ छेड़ने लगा है, मुझको ही मेरा आईना...? 

पहले नहीं ये उड़ती थी,
जो जुल्फ अब उड़ने लगी,
जो राह सीधी चलती थी,
वो खुद-बा-खुद मुड़ने लगी,
ये लेगी कितने मोड़ यूँ, कोई भी कुछ बताए ना,
क्यूँ छेड़ने लगा है, मुझको ही मेरा आईना...???

शायद कोई खुमार है,
या फिर चढ़ा बुखार है,
कहता है दिल, ये प्यार है,
नादां नहीं बीमार है,
मोहब्बत से हम तो दूर है, 
ये इश्क़ इक फितूर है,
शादी होनी ज़रूर है,
पर दिन अभी वो दूर है...
मालूम है इस दिल को सब, फिर भी ये बाज आए ना,
बहुत छेड़ने लगा है मुझको ही मेरा आईना...

[नोट: अगर आप इस कविता को चाहते हो सुनना, तो क्लिक👆🏻 करें नीचे⬇️ दिए गए लिंक पर...]


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34.उनके बीच दूरी है

क्यूँ उसके लिए वो इतना ज़रूरी है?,
जबकि देख सकती हूँ मैं उनके बीच कितनी दूरी है...

छोड़ कर भी छोड़ नहीं पा रहा वो उसे, आखिर उसकी ऐसी क्या मजबूरी है?,
जबकि देख सकती हूँ मैं उनके बीच कितनी दूरी है...

मैं हूँ उसके पास फिर भी जैसे उसकी दुनिया अब भी अधूरी है,
हाँ दिख रहा है मुझे कि उनके बीच कितनी दूरी है...

और कितना समझाऊं उसे, उसकी ज़िंदगी बिन उसके भी पूरी है?, 
क्यूँकी देख सकती हूँ मैं उनके बीच कितनी दूरी है...

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33.मैं भी "शायरा" हूँ

हमारा दिल बहुत बड़ा है, इसीलिए हमने उन्हें अपना लिया था,
ये फूल मेरे दुश्मन क्या बनेंगे, हमने तो कांटों से भी दोस्ती का रिश्ता बना लिया था।

जो पड़ रही है कानों में उनके, वो आवाज़ हमारी नहीं किसी पंछी ने ही गीत गाया था,
जानते हैं दिल टूटा था उनका, इसीलिए सहारा देने को हमने हाथ बढ़ाया था।

जिस राह से गुजरें हम, वहाँ तारों का नहीं उनका साथ चाहिए था,
चाँद के टीके की हमें ज़रूरत नहीं थी, हमें तो बस दोस्ती का हाथ चाहिए था।

दुनिया वैसे ही जलती थी हमसे, उन्हें और जलाकर क्या करते ?, 
जो सम्भाले ना संभले ऐसा प्यार दिखा कर क्या करते?

बेवजह करते थे मशक्कत वो मुझसे दूर जाने की, भला मैं कहाँ उन्हें कुछ कहती थी,
वो शायर सही मैं भी "शायरा" हूँ, इसीलिए हर बार उनकी शायरी का ज़वाब दे देती थी।

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32.शादी या बर्बादी

रह लेगी वो दिल पर पत्थर रख कर, जो अब तक तेरे प्यार की आदि थी,
जो लग रही है शादी तुझे, असल में वो उसके सपनों की बर्बादी थी।

आज वो अपने आँसू दुध में घोल कर ले जाएगी,
जब छुएगा उसका पति उसको, तब उसका जिस्म नहीं रूह तक जल जाएगी।

अब होश में क्या ख़्वाब में भी ख़्वाब देखने से डरेगी,
मोहब्बत एक बार होती है, तो दुबारा कैसे करेगी?

ना चाहते हुए भी उसे झूठा प्यार करना होगा,
फर्ज़ और कर्तव्य की खातिर उसके सच्चे प्यार को मरना होगा।

हाँ! अब साथ फेरे तो लेने पड़ेंगे उसको किसी और के साथ,
शायद ये फेरे तुम्हारे साथ होते, अगर मांग लेते वक़्त पर तुम उसका हाथ।

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31.मेरी एक दोस्त

मेरी एक दोस्त है जो बन गई है, कुछ दिनों में बहुत खास,
वो रहती है दूर, मगर है मेरे दिल के पास,  
क्या अहमियत है उसकी मेरी जिंदगी में,
उस बुद्धू को नहीं है, इस बात का एहसास। 

चेहरे से तो सुन्दर है ही, मगर दिल से और भी खूबसूरत है,
इस झूठ से भरी दुनिया में, वो सच्चाई की जिन्दा मूरत है।    

वो है नादान कुछ मेरी ही तरह, ये मैं उसकी आँखों में देख सकती हूँ,
या ये कहूँ की उसमें मैं अपना बीता हुआ कल देख सकती हूँ। 

हाँ! वो थोड़ी नादान है और ज़रा-सी पगली भी है,
मगर है सोने-सी खरी पीतल-सी नकली नहीं है,
मेरी जिंदगी में थी जिस दोस्त की कमी बरसों से,
अब लगता है ये झल्ली वही है। 

याद है मुझे जब मिले थे पहली बार,
दिल कर रहा था काट दूँ वक़्त की डोर किसी कैंची से,
क्यूँकि बरसों का इंतज़ार उसके आते ही बीत रहा था बहुत तेज़ी से। 

उतर गया था मेरा चेहरा उसे देखकर वापस जाते,
कल फ़ोन आया तो बता रही थी, 
याद है उसे मेरा LOVE YOU-2  कहना जाते-जाते।   

गुस्सा तो बहुत आता है सोचकर की ये बीते लम्हें वापस क्यूँ नहीं आते,
मुझे जब भी आती है उसकी याद ये घड़ी के कांटे मुझे और है चिढ़ाते। 

हाँ! ये सच है कि मुझे है अगली मुलाक़ात का बेसब्री से इंतज़ार,
और ये भी की एक-दूसरे से मिलने को हम दोनों है बेकरार,
ये दुनिया पागल है जो हमारी दोस्ती को समझती है तीन सौ सस्तर (IPC377) वाला प्यार,
मैं बस इतना कहूँगी की अपने मन की कर TANU और दुनिया को गोलीमार। 

(DEDICATED TO MY FRIEND, TARUNA SHARMA)  

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30.सूट सलवार और वेस्टर्न

सिर्फ सूट सलवार में ही नहीं, वेस्टर्न में भी जचती हूँ मैं,
हूँ तो इसी जहाँ की, बस तुझे ही नहीं लगती हूँ मैं।

माना मुझे पाने के लिए लड़कों ने बवाल मचा रखा है,
और तू भी उन्हीं में से एक है, जिसने मुझे पाने का ख्याल सजा रखा है।

तू कहता है मेरे पीछे जो आशिक हैं उन्हें तू छठी का दुध याद दिला देगा,
मगर तू है कौन? क्या रिश्ता है तेरा मुझसे?, जो मेरे बदले तू उन्हें सजा देगा?

मैं उड़ती पतंग हूँ, और मुझे दीवार में कैद तस्वीर नहीं बनना,
तेरे रांझा बनने से मुझे ऐतराज़ नहीं, मगर मुझे तेरी क्या, किसी की हीर नहीं बनना।

क्यूँ जाऊँ उस सड़क से जो तूने ख्यालों में बना रखी है?, 
ये तो रहमत है खुदा की, कि उसने नवाज़ा है वो हुस्न मुझे, 
की इस शायरा के हुस्न ने तुझ जैसे कईयों की जान निकाल रखी है।

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29.वो गले लगाने लगता है

मैं जाती हूँ दोस्ती निभाने,
वो मोहब्बत की बातें करता है,
मैं जब भी हाथ बढ़ाती हूँ,
वो गले लगाने लगता है

शायद खाली है दिल उसका,
या है तन्हा मेरी ही तरह,
इसीलिए शायद, मैं जब भी हाथ बढ़ाती हूँ,
वो गले लगाने लगता है।

शायद टूटा है दिल उसका,
या कई टूटे दिल देखे हैं,
इसीलिए तो वो मोहब्बत के,
वादों से इतना डरता है,
मैं जब भी हाथ बढ़ाती हूँ,
वो गले लगाने लगता है।

चलो मान लिया नहीं है दिलचस्पी,
उसको प्यार मोहब्बत में,
फिर क्यूँ वो अक्सर,
मुझसे मिलने की मिन्नत करता है,
मैं जब भी हाथ बढ़ाती हूँ,
वो गले लगाने लगता है। 

जब भी सोचुं उसके बारे में,
मेरा दिल ये सवाल करता है,
तू जब भी हाथ बढ़ाती है,
वो गले क्यूँ लगाने लगता है? 

लगता है कि दिल-ही-दिल में,
शायद वो मुझपर मरता है,
दिल में तो है लेकिन जुबा से,
कभी ना इज़हार करता है, 
मैं जब भी हाथ बढ़ाती हूँ,
वो गले लगाने लगता है।

[Dedicated to one of my good friend (Shubham Gupta)]

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28.वो अल्हड़ है दीवाना है

वो अल्हड़ है दीवाना है,
बस मोहब्बत से बेगाना है,
कहता है तुझे घुमाना है,
तुझे शिमला लेकर जाना है।

कभी कहता है मिलने आना है,
ना जाऊँ तो कहे बहाना है,
हाँ! दोस्त मेरा वो जिद्दी है,
और ज़रा दीवाना है।
वो अल्हड़ है दीवाना है, 
बस मोहब्बत से बेगाना है।

जो मना करूँ मैं मिलने को,
उसको बस रूठ जाना है,
खुद ही रूठे, खुद ही मनाये,
अजब-गजब दीवाना है।
वो अल्हड़ है दीवाना है, 
बस मोहब्बत से बेगाना है।

कभी मुझको बाहर बुलाना है,
कभी उसको घर पे आना है,
बनता है मेरे आगे बुद्धू,
वैसे तो बहुत सयाना है।
वो अल्हड़ है दीवाना है, 
बस मोहब्बत से बेगाना है।

कहता है वादा नहीं करूँगा,
और ना मुझे निभाना है,
मैं दोस्त हूँ तेरा, और शुभचिंतक,
बस यूँ ही चलते जाना है।
वो अल्हड़ है दीवाना है,
बस मोहब्बत से बेगाना है।

शादी उसको पसंद नहीं है,
बस दोस्त बनाते जाना है,
कहता है शादी झंझट है,
बस कलेश का बहाना है।
वो अल्हड़ है दीवाना है,
बस मोहब्बत से बेगाना है।

पर क्या हुआ जो वो अल्हड़ है,
और ज़रा दीवाना है,
है तो अखिर दोस्त मेरा वो,
कौन-सा बेगाना है।

वो अल्हड़ है दीवाना है,
इक मोहब्बत से बेगाना है,
कहता है तुझे घुमाना है,
तुझे शिमला लेकर जाना है।

[Dedicated to one of my good friend (Shubham Gupta)]

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27.चंद सवाल खुद से 

क्यूँ मैं सात साल से चलते-चलते आज रुकी हूँ?,
ये थकान है जिसने मुझे रोक दिया है?,
या मैं अपने हालातों से हार कर झुकी हूँ?...

हाँ! मालुम है मुझे मेरे सपने मेरे कद से बहुत बड़े हैं,
मगर क्या कभी पूरे हो पाएंगे सपने मेरे जहाँ खुद मेरे अपने मेरे ख़िलाफ़ खड़े हैं?...
यूँ तो मैं लड़ जाती हूँ दुनिया से, मगर नहीं दे पाती जवाब उन्हें,
क्यूँकी उम्र और रिश्ते दोनों में वो मुझसे बड़े हैं...

समझ नहीं आता कि रिश्ता किस्से ज्यादा गहरा है?,
मेरे अपनों से या मेरे सपनों से??, 
दुनिया का तो मैं मुह तोड़ जवाब दे सकती हूँ,
मगर कैसे करूँ सामना मेरे ही ख़िलाफ़ खड़े मेरे अपनों से??... 

चलो! अपनों से खून का रिश्ता सही, सपनों से तो दिल का नाता है,
जब कोई साथ नहीं दे पाता तो, "जो करो सोच - समझकर करना",
एक यही बात क्यूँ समझाता है??
कहना है उन सब से दिल से नादान सही, पर दिमाग से मुझे सब समझ आता है...

काश! कोई बता दे कहाँ जाऊँ मैं अपने सवाल लेकर?, 
क्या कोई आयेगा ऐसा जो चुप करा दे मेरे ईन सवालों को जवाब देकर?...

खैर जब थक जाती हूँ अपने सवालों से, तो बस यही सवाल खुद से कर लेती हूँ,
जवाब नहीं मिलते तो बस डायरी के पन्ने भर लेती हूँ...

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26.वक़्त किसके पास है?

आज अपनों से बात करने का वक़्त किसके पास है?,
लगे हुए हैं सब WhatsApp, FB or Twitter पर उनको ढूंढने में जो दूर होकर भी खास हैं,
जो सुनना नहीं चाहते, उनके लिए तो दिल में लाखों अल्फाज़ हैं,
मगर अपनों से बात करने का वक़्त किसके पास है?...

कोई किसी से रोज़ दो पल बात करने को तरसता है,
और जो सुनना नहीं चाहते, उन पर बातों का बादल रोज़ बरसता है,
मगर जो तरसा हो पानी की एक बूंद के लिए,
बारिश में भीगने की खुशी वही समझता है...
मगर समझ सके वो खुशी कोई किसी के लिए, इसका कहाँ किसी को एहसास है,
आज अपनों से बात करने का वक़्त किसके पास है?...

आज भी पति-पत्नी, और भाई-बहन में लड़ाई ज़रूर होती है,
मगर उन लड़ाइयों में पहले की तरह प्यार नहीं मजबूरियाँ होती है,
उन्हें खुद भी एहसास नहीं होता, मगर बढ़ रही उनके बीच की दूरियाँ होती हैं,
मगर इस भागती ज़िंदगी में दूरियों का कहा किसे एहसास है,
सच ही तो है कि, आज अपनों से बात करने का वक़्त किसके पास है...

यूँ आपस में बात ना करना आज आम हो गया है,
WhatsApp पर उंगलिया चलाना चैटिंग नहीं ज़रूरी काम हो गया है,
सुना था मैंने किसी को कहते हुए कि, टेक्नोलॉजी के आने से बड़ा आराम हो गया है,
अब बच्चों के पास वक़्त नहीं है अपने माँ-बाप के लिए, ये चर्चा भी आम हो गया है,
मगर इस बदलती टेक्नोलॉजी ने रिश्तों के मायने भी बदल दिए हैं,
इस बात का हुआ नहीं वक़्त पर किसी को भी एहसास है,
अपनों से बात करने का वक़्त किसके पास है?...

ना जाने ज़िंदगी की किस दौड़ में हैं?, ना जाने क्या पाने की होड़ में हैं?,
भाग तो रहे हैं सब मगर बगैर ये जाने, कि आखिर खुशी किस मोड़ पे है...

आज सबको आगे बढ़ना है, सबको ज़िंदगी में कुछ हटकर करना है,
मालूम है सबको अपना अंत, मगर फिर भी मरने से पहले अपना नाम रोशन करना है,
अक्सर ज़िंदगी की दौड़ में हम जीना भूल जाते हैं,
ना जाने कौन से इम्तेहान की तैयारी में हैं जो अपनों को वक़्त देना भूल जाते हैं?...

जी लो जो दो पल दिए हैं ज़िंदगी ने तुम्हें,
जो चला गया तो वो वक़्त लौट कर नहीं आयेगा,
और जब तक हासिल करने के बाद मुट्ठी खोलोगे, ये वक़्त रेत की तरह हाथों से फिसल जाएगा,
मेरी ये कविता पढ़कर आप भूल जाएंगे, इस बात का मुझे खूब एहसास है,
क्यूँकी आज अपनों से बात करने के बारे में सोचे कोई इतना वक़्त किसके पास है?...

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25.बाल-विवाह की अनकही कहानी

आओ तुमको एक बात बताऊँ,
एक गुड़िया की कहानी सुनाऊँ।

कितना बताऊँ, कितना छुपाऊं,
क्या तुम उसको समझोगे,
या फिर मेरी कहानी सुनकर,
तुम बस यूँ ही चल दोगे।

बात है कुछ सालों पुरानी,
कौन-सा साल क्या तारिख,
ठीक-ठाक कुछ याद नहीं,
थी वो कुछ बारह-तेरह साल की,
मगर ठीक-ठाक कुछ याद नहीं।

छोड़ों ये सब उम्र और साल,
अब मुद्दे पर आते हैं,
कैसे छीनता है बचपन तुमको आज बताते हैं।

थी वो छोटी बच्ची ही तो,
दिल से भी थी सच्ची वो तो,
मासूम थी, नादान थी वो,
उम्र की भी कच्ची थी वो।

उसके पास थी इक गुड़िया, और एक गुड्डा रखती थीं,
रोज खेल-खेल में वो उनकी शादी करती थी।

मज़ा बड़ा उसे आता देख के गुड्डे की शेरवानी और दुल्हन का जोड़ा,
क्या पता था उसको की, उसकी माँ भी लाई है उसके नाप का इक जोड़ा।

खुश हो गयी थी वो भी की उसको भी दुल्हन की तरह सजाएंगे,
लेकिन थी वो अनजान इस बात से की, अब उसको उसके पीहर से दूर ले जाएंगे।

छूट गया घर - आँगन, छुट गया स्कूल,
उस बच्ची से कहती सास "तू है नामाकूल"।

छोटी-सी वो बच्ची थी कहाँ उसे कुछ आता था,
फिर भी घर मे हर कोई उसपर रौब जमाता था,
कभी चोट उसे लग जाती, कभी हाथ जल जाता था,
पर माँ की तरह उसके ज़ख्मों पर कोई ना मरहम लगाता था। 

रोती थी, बिलखती थी, किसको बताती वो अपना दुख,
माँ तो कहती थी कि ब्याह के बाद मिलता है सुख।

कहाँ है वो सुख-चैन, कहाँ है आराम,
जब से आयी थी सासरे में सब करवाते  उससे काम।

छुट गया बचपन पीछे, वक़्त से पहले आयी जवानी,
धुल गयी मासूमियत आंसुओं से, भूल गयी नादानी।

अब क्या सुनाऊँ किस्सा तुम्हें, क्या सुनाऊँ कहानी,
मालूम है मुझे की सुनकर ये किस्सा आ गया है आपकी आँखों में पानी,
मगर सच में आज भी कई गाँवों में जो ढूंढने जाओगे तो मिलेंगी,
 ऐसी कई बाल - विवाह की अनकही कहानी। 

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24.इंसानियत भूल गया इंसान

आप सबको है, हर बात का ज्ञान,
पढ़-लिख कर भी आज का युवक रह गया है अज्ञान,
पूछ रही धरती आज, पूछ रहा आसमान, 
इंसानियत क्यूँ भूल गया आज का इंसान?

कितना दर्द और पीड़ा झेल गई बेज़ुबान,
क्यूँकी वो माँ भी थी, इसीलिए नहीं किया किसी का नुकसान,
चाहती तो कर देती तबाही,
दर्द सहा उसने लेकिन शांत रही ना चिल्लाई।

वो जानवर होके भी वार गई अपनी जान,
समझा गई अर्थ हमें, की व्यर्थ है इंसान, 
पूछ रहा है हर कोई, पूछ रहा ब्रह्मांड,
इंसानियत क्यूँ भूल गया आज का इंसान?

कोरोना, भूकंप, बाढ़ है इस बात का प्रमाण,
की इंसान की इस हरकत पर शर्मिंदा भगवान,
आतंकवाद और दंगे कम थे?,जो कर बैठे ये भी अपराध, 
ब्रह्मा जी भी पूछ रहे हैं,
इंसानियत क्यूँ भूल गया आज का इंसान?

जो करते रहे यूँ ही अपराध, तो एक बात तुम लो जान,
यही जानवर आकर एक दिन ले जाएंगे तुम्हारे प्राण,
फिर पछताना और कहना खुद से,
काश! इंसानियत को ना भूलता इंसान

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23.उफ़ ये चाय !

चाय, चाय, चाय, चाय!
उफ़ ये चाय , हाय ये चाय,
जितनी बार हमसे पूछी जाए,
ना जाने क्यों हम मना ना कर पाए।

कभी अदरक वाली, तो कभी मसाला चाय,
कभी लेमन वाली, तो कभी कटिंग हो जाये,
कभी घर पे, तो कभी टपरी पे हो जाये।

सुबह, दोपहर या शाम हो जाये ,
अपने को तो चाहिए बस एक कप चाय

कभी खाने के बाद कभी खाने से पहले,
कभी ऑफिस के बाद, कभी ऑफिस से पहले।

कभी दोस्ती में तो कभी यारी में,
कभी पड़ोसी के घर तो, कभी यूँ ही रिश्तेदारी में।

कहीं शादी का रिश्ता हो,
या फिर पुराने प्यार का कोई पुरना किस्सा हो।

बात हो मजाक की, या गंभीर हो जाये,
दिल टूटा हो या फिर मोहोब्बत हो जाये,
हर मौके पर बस चाय हो जाये।

प्रमोशन मिले या बॉस से झगड़ा हो जाये,
पड़ोसन के साथ कोई लफड़ा हो जाये,
या फिर ज़िन्दगी में बवाल तगड़ा हो जाये,
इन सबका बस एक ही उपाय,
ज्यादा कुछ नहीं बस एक कप चाय

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22.निर्भया - एक कहानी, आठ साल पुरानी

तो दोस्तों!
साउथ दिल्ली की ये कहानी है,
और ये कहानी कुछ आठ साल पुरानी है,
जो मुझे आज आपको याद दिलानी है।

दिसम्बर का वो महीना था और रात भी कुछ अँधेरी थी,
लेकिन उस रात  वो लड़की नहीं अकेली थी,
उसका दोस्त उसके साथ था जब इस हादसे की शुरुआत हुई थी,
वो लड़की पागल थी शायद वरना घर से बाहर निकलती क्यों जब शुरू रात हुई थी।

अरे! क्या हुआ??? आप लोग ऐसे क्यों देख रहे हो, हम लड़कियों को बचपन से यही तो सिखाया जाता है,
अपने नज़रें नीचे रखना , जब भी कोई हमें बुरी नज़र से देखना चाहता है।
हम अक्सर लड़कियों को सीखाते हैं, नज़रें नीची रखना, कपड़े पुरे पहनना, और किसी लड़के से बात ना करना,
हम लड़को को ये क्यों नहीं सीखाते की हर लड़की की इज़्जत करना?
जिस दिन ये हो जायेगा उस दिन से लड़कियाँ छोड़ देंगी सड़को पर डर कर चलना।

तो हम बात कर रहे थे एक पुरानी कहानी की, जो मुझे आप सबको बतानी थी,
हाँ! ये वही कहानी थी जो आठ साल पुरानी थी।
और मैं जानती हूँ  दोस्तों आप बहुत समझदार हैं, समझ ही गये होंगे ये कौनसी कहानी थी,
जो मुझे आज आपको याद दिलानी थी।

मेरा मकसद नहीं था उस दर्द भरी दास्तान को दोहराने का,
मेरा मकसद था आप सबको नींद से जगाने का, और कुछ याद दिलाने का।

क्यूँ हम किसी हादसे के बाद जगते हैं,
क्यूँ हम कैंडल जलाकर पूरी रात जगते हैं?

क्यूँ करने देते हैं किसी मासूम पर ज़ुल्म उन शैतानों को?,
क्यों ज़िंदा नहीं जला देते ऐसे हैवानों को?

 ज़िंदा ही जला देना चाहिए जो इंसानियत पर लगा हुआ एक दाग हैं,
जानती हूँ  बातें सुनकर जल रही आप सबके सीने में आग है।

लेकिन अगर ये आग किसी मासूम को इन्साफ नहीं दिला सकती तो भुजा दो इस आग को,
जो ना इन्साफ दिला सकती है, ना मिटा सकती है उसके माथे पर लगे दाग को।

जो आग जली है आप सबके दिलों में मुझे बस यही आग जलानी थी,
बिलकुल सही समझे हैं आप ये कहानी निर्भया की कहानी थी।

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21.खुशी के पल

मत सोच अब और,
बस अब अपनी ज़िंदगी का हाथ थाम कर चल,
ना जाने फिर कब मिले तुझे ये खुशी के पल

जी ले खुल कर ज़िंदगी के ये हसीन लम्हे,
कौन जाने क्या हो कल?,
बस तू मुस्कुरा के जिए जा ये खुशी के पल

ज़िंदगी का नाम ही मशक्कत करना है,
मत डर तू मुश्किलों से,
बस तू डट कर चल,
आज मौका है तो जी ले ये खुशी के पल

वक़्त किसी का नहीं होता,
और क़िस्मत ऊपर वाला लिखता है,
ये तो सब कहते हैं,
मगर तू अपनी क़िस्मत खुद बदल,
यही मौका है बना ले तू खुद अपने खुशी के पल

दुनिया का काम है गिराना,
मगर तू हिम्मत कर,
उठ और सम्भल, फिर चल,
और देख तेरी ज़िंदगी तुझे मौका दे रहीं है,
तो जी खुलकर अपनी जिंदगी के कभी ना वापस आने वाले पल।

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20.आग - जो दिलों में जलानी है

याद है वो कहानी, जो हो गयी है कुछ आठ साल पुरानी,
आज फिर वैसी ही एक कहानी किसी ने दोहराई है,
आज फिर मुझे वो कैंडल मार्च याद आयी है।

वैसा ही हुआ है कुछ फिर से जब उस रात उन दरिंदों के अंदर का इंसान मर गया था,
और उस किस्से के बाद हमने दिया उसको नाम निर्भया था।

फिर से एक निर्भया को किसी ने जनम दिया है,
फिर एक मासूम की हँसती खेलती ज़िन्दगी को कुछ हैवानो ने,
दो पल की ख़ुशी के लिए कुचल दिया है।

यूँ तो वो करती थी इलाज़ बेज़ुबाँ जानवरों का,
ये लोग तो उससे भी बद्द्तर निकले,
जिनसे इंसानियत के नाते मांगी थी,
मदद उसने आखिर वही जानवर निकले।

क्या इसका हश्र भी वही होगा जो आशिफ़ा और निर्भया का हुआ था,
रावण को तो मौत की सजा हुई थी,
जब उसने सिर्फ सीता माँ की परछाई को छुआ था।

आज वैसा इन्साफ हम क्यों नहीं कर पाते हैं,
ऐसी बातें सुनकर हमारे सिर क्यों, झुक जाते हैं?

गुस्सा आ रहा होगा, एक आग जल रही होगी दिल में सुनकर मेरी बातें,
कभी-कभी मेरे दिल में ख्याल आता है, ऐसे हैवान पैदा होने से पहले ही मर क्यों नहीं जाते?

दोस्तों क्या फायदा इस आग का जो हर बार एक औरत की परीक्षा ले सकती है,
मगर ऐसे हैवानों को मौत नहीं दे सकती है।

पहले निर्भया की बली, फिर आशिफ़ा मरी, अब प्रियंका रेडडी की कहानी है,
ये जो आग जल रही है आप सबके दिलों में, बस यही आग उन हैवानों के जिस्म तक पहुंचानी है।

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19.रंग ज़िन्दगी के जो 
अबतक देखें हैं

यूँ तो देखे हैं कई रंग मैंने ज़िंदगी के अब तक,
ना जाने और कितने रंग दिखाएगी ये ज़िंदगी कहाँ तक और कब तक...

देखा था एक रंग मैंने अपने बचपन में जो सबका अक्सर रंगीन होता है,
मगर मेरे लिए वो मानो जैसे रंग हीन था,
मेरा बचपन, बचकाना नहीं बड़प्पन का शौकीन था...

मेरा बचपन, बचपन में ही सीख गया था अपने सपनों को तकिये के नीचे दबा कर रखना,
मेरी आँखों ने भी सीख लिया था माँ - बाबा से अपने आँसू छुपा कर रखना...

कोई पूछता था कि कैसे हो, तो बस सर हिला दिया करती थी,
माँ जब पूछती थी "कुछ चाहिए तो नहीं तुझे" तो "नहीं माँ" कह कर कई बार झूठ बता दिया करती थी...

फिर सामना हुआ जवानी के रंग से,
ये बचपन के जैसे पूरी तरह नहीं मगर हाँ, ये भी कुछ बेरंग थे...

बचपन में दोस्त कभी बनाये नहीं,
तो जवानी में भी वो साथ आए नहीं...

शायद ये जवानी कुछ जादा ही मेहरबान थी, तभी तो मुहब्बत और नौकरी दोनों एक साथ मिल गई थी,
यूँ तो मुझे खुश होना चाहिए था, मगर नौकरी और मुहब्बत के बीच मेरी तो कैलक्यूलेशन ही हिल गई थी ...

जो नौकरी संभालती तो मुहब्बत फीकी पड़ रही थी,
और मुहब्बत सम्भालने जाती तो नौकरी मे ढीली पड़ रही थी...

मैं तंग आगयी थी, देख कर मुहब्बत और नौकरी के रंग,
ऊब गयी थी देखकर उन दोनों के ढंग,
सोचती थी कि इससे तो अच्छी थी पहले ही ज़िंदगी जब हुआ करती थी बेरंग...

फिर सोचा दोनों को एक साथ छोड़ दूँ, दोनों से रिश्ता तोड़ दूँ,
मगर कर ना सकी नौकरी को खुद से जुदा, क्यूँकी मुझपर घर की ज़िम्मेदारी थी,
हाँ दोस्तों क्यूँकी नौकरी, मुहब्बत से ज़्यादा भारी थी...

अब मैंने नौकरी के हिसाब से अपने ढंग बदल लिए थे,
इसीलिए ज़िंदगी ने भी अपने कुछ रंग बदल लिए थे...

इसके बाद कहानी खत्म नहीं हुई, मैं अब भी उसी जवानी के दौर में हूँ,
पहले फंसी हुई थी मुहब्बत और नौकरी के बीच, और,अब पैसे और नाम कमाने की दौड़ में हूँ...

अब मुहब्बत कर ली है मैंने अपनी जिम्मेदारियों और सपनों के साथ,
जो बचे हुए रंग हैं मेरी ज़िंदगी में, बस वही बांट लेती हूँ कुछ गिने-चुने अपनों के साथ...

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18.बंदिश

बंधी हुई हूँ एक अजीब-सी बंदिश  में,
मुझे आज़ाद होने दो ना,
दुनिया के आगे तो हमेशा हँसती हूँ,
आज मुझे अपने लिए रोने दो ना।

मानती हूँ मां ने सिखाया था बचपन में,
की स्त्री का दूसरा नाम बलिदान भी होता है,
मगर मेरा सवाल है कि,अपने सपनों की बलि चढ़ने पर ही,
हमारा नाम महान क्यूँ होता है?,

कह दो दुनिया से नहीं बनना मुझे महान,
नहीं देना अपने सपनों का बलिदान,
बिन सपनों के मैं रह जाऊँगी बे-जान,
क्यूँकि, मेरे लिए मेरे सपने ही हैं मेरी जान,
और मेरे सपने ही हैं मेरी पहचान।

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17.माँ मुझे उड़ने दे

माँ मुझे उड़ने दे
मुझे नए ख़्वाबों से जुड़ने दे। 

जैसे कभी लगायी थी नानी ने तेरे पाओं में बेड़ियाँ,
मत बाँध मुझे उसी तरह मुझे खुले आसमान में खुलकर उड़ने दे,
माँ मुझे उड़ने दे, मुझे नए ख़्वाबों से जुड़ने दे। 

मैं मानती हु मैं बेटा नहीं तेरी बेटी हूँ,
मगर मैं बिगड़ूँगी नहीं तुझे दिल से ये वादा देती हूँ। 

माँ! कर दे ना मुझे उन दक़ियानूसी ज़ंजीरों से आज़ाद,
मैं तेरा बेटा नहीं तो क्या?, आखिर हूँ तो तेरी ही औलाद। 

चार लोग क्या कहेंगे इस पर हम क्यों करे विचार,
क्यों उन चार अनजान लोगों के लिए होती हमारे बीच तकरार?

भला तुझे क्यों लगता है मैं तुझसे किया वादा तोड़ूँगी,
मैं बेटा नहीं हूँ जो शादी के बाद तुझे वृद्ध आश्रम में छोड़ूंगी। 

भरोसा रख मुझपर तेरा सर कभी शर्म से झुकने नहीं दूंगी,
मगर तू भी वादा कर और कह दे की "मैं तुझे कभी रुकने नहीं दूंगी"।

जैसे बेटों को दिए जाते है आशीर्वाद कामयाब होने के लिए, मुझे भी दे तो मैं भी कामयाब बनूँगी,
डर मत! यकीन रख मुझपर, मैं तेरा नाम कभी ना खराब करुँगी।

तू क्यों डरती है मेरे नए लोगों से जुड़ने से ,
माँ! खोल दे ना ये मेरे पैरों में बंधी ज़ंजीर जो समाज ने बाँधी है,
और मुझे खुली हवा में खुलकर उड़ने दे,
माँ मुझे उड़ने दे, मुझे नए ख़्वाबों से जुड़ने दे

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16.क़िस्मत

समझ नहीं आ रहा कि ये क़िस्मत मुझे कहाँ ले आयी है,
वापस जाऊँ तो कुआँ और आगे खाई है, 
यूँ तो क़िस्मत की भाषा आजतक किसी को समझ नहीं आयी है।

तो फिर हम कहाँ के शहंशाह हैं जो ये हमें अपने राज़ बताएगी,
ये सबको दिखाती है रंग अपने तो हमें भी दिखाएगी।

कभी - कभी दिल करता है कि जहाँ हूँ बस वहीं रुक जाऊँ,
मगर फिर याद आ जाती हैं ज़िम्मेदारियां जो मुझपर हैं उन्हें कैसे भूल जाऊँ? 

कभी सोचती हूँ ये सारी ज़िम्मेदारियों की ज़ंजीर तोड़ दूँ,
मगर फिर सवाल आता है मन में की मेरे माँ - बाप को इस उम्र में कैसे अकेला छोड़ दूँ?

मैं जहाँ हूँ, वहाँ आगे बढ़ने की उम्मीद से आयी थी,
और उम्मीद भी मुझे किसी खास ने दिलाई थी।

कभी - कभी सवाल करता है मेरा मन की आगे बढ़ने के लिए जो कदम बढ़ाए थे मैंने, वो सही है या नहीं?, 
जिन सपनों को मैं खुली आँखों से देखना चाहती हूँ, उनसे कभी मुलाक़ात होगी या नहीं?

काश! मुझे मिल जाता इन सवालों का जवाब कहीं,
हाँ! मैं परेशान हूँ मगर कमज़ोर नहीं।

सुना था मैंने की गिरना - सम्भलना क़िस्मत  सिखाती है,
और देर से ही सही मगर ये क़िस्मत एक दिन ज़रूर जगमगाती है।

तो हम भी करेंगे अपनी क़िस्मत के दरवाज़े खुलने का इंतजार,
और ना आजतक मानी है, और ना कभी मानेंगे हार।

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15.मुझे अच्छा लगता है

तुम हर रात मेरे सपने में आती हो,
फिर बातें करते-करते अचानक चुप हो जाती हो,
फिर धीरे से पलकें झुका कर, ज़रा सा मुस्काती हो,
ये सपना मुझे सच्चा सा लगता है,
तुम यूँ ही हर रात मेरे सपनों में आया करो, मुझे अच्छा लगता है

वो तुम्हारी बड़ी-बड़ी आँखों में वो ज़रा सा काजल,
तुम्हारी जुल्फें हो जैसे काला बादल,
वो तुम्हारा मेरी बातें सुनते-सुनते मुस्काना,
वो तुम्हारा जाते-जाते पीछे मुड़ जाना,
ऐसी आदत है मुझे इस सपने की, कि मेरा दिल जगने से डरता है,
तुम यूँ ही हर रात मेरे सपनों में आया करो, मुझे अच्छा लगता है

वो तुम्हारा होठों को दाँतों से दबाना,
वो तुम्हारा उँगलियों से लटों को कान के पीछे ले जाना,
वो अचानक सामने आजाने पर तुम्हारा घबराना,
और उसी घबराहट में वापस चले जाना,
ये सपना तो अब मुझे और सच्चा सा लगता है,
तुम यूँ ही हर रात मेरे सपनों में आया करो, मुझे अच्छा लगता है

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14.मेरा दिल आज भी उसे प्यार करता है

मेरा दिल आज भी उसे प्यार करता है,
सच ही कहते हैं लोग की दिल नादान होता है,
तभी तो उसी के हाथों टूटने के बावजूद,
आज भी टूटकर उसी से प्यार करता है।

बहुत सितम सहे हैं इस दिल ने उस बेदर्द के,
मगर कमाल की हिम्मत है इस दिल में कि,
इतने ज़ुल्म-ओ-सितम के बाद भी,
मेरा दिल आज भी उसी से प्यार करता है।

लोग मरते हैं अक्सर उनपर जो दिखने में खूबसूरत होते हैं,
वो बात अलग है कि वही लोग बेवफाई की जिन्दा मूरत होते हैं,
वरना आज दिल देख कर कौन मोहब्बत करता है,
मेरा दिल पागल है, जो आज भी उसी से प्यार करता है।

यूँ तो हसीं हम भी कम नहीं,
और हमारे चाहने वालो की गिनती भी कम नहीं,
मगर ये दिल सूरत पे नहीं उसकी सीरत पे मरता है
शायद इसीलिए मेरा दिल आज भी उसी से प्यार करता है।

तोड़े हैं कई दिल हमने भी उनके जो हमारे दीवाने थे,
वो करेगा बेवफ़ाई कभी हमसे, इस बात से हम अनजाने थे,
हमें तो ये उन आशिक़ों की बद्दुआओं का ही असर लगता है,
की ये मेरा दिल एक बेवफा से वफ़ा की उम्मीद करता है,
हाँ! मेरा दिल ज़रा नादान है, जो आज भी उसी से प्यार करता है।

क्या अंजाम होगा इस मोहोब्बत का इस बात का हमें एहसास है,
हम उनके लिए कुछ भी नहीं, मगर वो हमारे लिए बहुत ख़ास है,
जो कल तक मेरा था आज वो किसी और का है,
ये बात जानकर भी ये दिल किसी की नहीं सुनता है,
और टूटकर भी ये आज भी उस बेपरवाह की परवाह करता है,
माफ़ कीजियेगा मेरा दिल ज़रा झल्ला है, नादान है,
इसीलिए आज भी उस बेवफा से इस कदर प्यार करता है।
   
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13.मेरे वाला EX

मेरे वाला EX जो है, वो ज़ालिम है हरजाई है,
हर बार मेरी वफा में उसको दिखी बस बेवफ़ाई है...

कोई ऐसा दिन ना था, जब उसने मुझे सताया नहीं,
मेरा ऐसा कोई राज़ नहीं था, जो मैंने उसे बताया नहीं...
फिर भी है सौ दर्द सहे, माँ से भी बात छुपाई है,
उसके साथ रहकर बस रो कर, मैंने हर रात बिताई है...
मेरे वाला EX जो है, वो ज़ालिम है हरजाई है,
हर बार मेरी वफा में उसको दिखी बस बेवफ़ाई है...

घरवालों से मिलवाया उसने, शादी की बात भी कर ली थी,
जब देखे मेरी कोई ड्रैस पूछे ये वाली कब ली थी?,
हर बार बताना पड़ता था, कि ये माँ ने दिलाई है,
उसको यकीन दिलाने की खातिर, ना जाने कितनी कसमें खाई है...
मेरे वाला EX जो है, वो ज़ालिम है हरजाई है,
हर बार मेरी वफा में उसको दिखी बस बेवफ़ाई है...

सोचा उसकी माँ से कहूँ, तेरा लाल मुझे सताता है,
लेकिन कैसे कहती मैं, उनका बेटा अक्सर मुझसे छुपकर मिलने आता है?,
सोचा मैं ग़र कह भी दूँ, फिर भी बात मेरी ना मानेगी, अखिर वो उसकी आई है,
अब पता चला? क्यूँ मेरे वाला EX जो है, वो ज़ालिम है हरजाई है?,
हर बार मेरी वफा में उसको दिखी बस बेवफ़ाई है...

फिर आया मुझको ये याद, सोचा करूँ बहन से फ़रियाद,
और करके फोन मैने कह दी उनसे सारी बात,
मिला जवाब वापस मुझको,
चल मान लिया, कि सच है सब तूने जो बात बताई है,
पर तू ये कैसे भूल गई पहले वो मेरा भाई है?,
माना मेरे EX  जो है, वो ज़ालिम है हरजाई है,
हर बार मेरी वफा में उसको दिखी बस बेवफ़ाई है...

पर रोक ना पायी खुदको मैं,
और कहा मैने उनसे,
दीदी मेरी अन्तर आत्मा ने ले ली अंगड़ाई है,
करो खत्म ये रिश्तेदारी जो अब तक आगे बढ़ाई है,
मुड़ के ना देखूंगी उसको आज कसम ये खाई है,
जैसे वो आपका भाई है, अब से मेरा भी भाई है... 🙏🤣

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12.क्या रखा है बेवजह रोने में???

जिसे जाना था वो चला गया,
अब खुलकर जियो, खुलकर हंसो,
क्या रखा है बेवजह रोने में???

वो अब कभी लौटेगा नहीं,
तो क्यूँ अपने आँसू ज़ाया करते हो 
उसकी याद में आँखें भिगोने में???

एक अकेले तुम ही नहीं हो जिसने मोहब्बत की है,
हमने भी मोहब्बत की थी कभी, इसीलिए मालूम है हमें की,
कितना दर्द होता है किसी को पाकर-खोने में...

और सीखा है मैंने, कि वक़्त ज़रूर लगता है,
मगर मज़ा बहुत आता है, टूटने के बाद, खुद को संजोने में...

हाँ! दर्द हुआ था मुझे भी उसे पाकर-खोने में,
जिस रात टूटा था दिल हमारा, बैठ कर रोये भी थे हम एक कोने में...

मगर वक़्त ने ज़ख्म भर दिए, और हालातों ने समझाया कि,  
कुछ नहीं रखा अब उस बेवफ़ा की याद में रोने में...

तो मान लो तुम भी, अपने लिए जियो, अपने लिए हंसो,
कुछ नहीं रखा है बीते पलों को याद कर के रोने में... 

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11.यूँ हर रात मेरे ख़्वाबों में आया ना कर

मत कर इतनी मुहब्बत मुझसे,
यूँ बेवजह अपना वक़्त ज़ाया ना कर,
कितनी बार समझाया तुझे,
यूँ हर रात मेरे ख़्वाबों में आया ना कर...

आकर-जाना, जाकर-आना, तेरी फ़ितरत है,  ये जानते हैं हम,
अब कि बार ग़र आकर रुक सके तो आना,
आकर-जाने के लिए वापस आया ना कर,
कितनी बार समझाया तुझे, 
यूँ हर रात मेरे ख़्वाबों में आया ना कर...

मालूम है हमें, की हमारा रिश्ता महज़ मज़ाक था तेरे लिए,
इस बात का एहसास मुझे बार-बार कराया ना कर,
कितनी बार समझाया तुझे, 
यूँ हर रात मेरे ख़्वाबों में आया ना कर...

जब हमने माँगा था तेरा वक़्त तुझसे,
उस वक़्त, वक़्त नहीं था तेरे पास हमारे लिए,
तो अब बेवजह मेरे पीछे अपना वक़्त तू गवाया ना कर,
कितनी बार समझाया तुझे, 
यूँ हर रात मेरे ख़्वाबों में आया ना कर...

और दिल्लगी करना तो तेरी आदत है,
तो कर दुनिया भर से मुझे कोई ऐतराज़ नहीं,
मगर तू अपनी ये दिल्लगी मुझपर आज़माया ना कर,
कितनी बार समझाया तुझे, 
यूँ हर रात मेरे ख़्वाबों में आया ना कर...

एक वो भी वक़्त था जब हमने, 
अपना हाथ बढ़ा कर तुझसे तेरा साथ माँगा था,
तब जो ना दिया तूने साथ मेरा,
तो अब मेरा साथ मांगने को तू अपना हाथ बढ़ाया ना कर,
कितनी बार समझाया तुझे, 
यूँ हर रात मेरे ख़्वाबों में आया ना कर...

जब तेरे साथ चलने की चाह थी हमें,
तब तुझे अकेले चलना था,
अब हम सीख गये हैं, ज़िंदगी को अकेले जीना,
और खाई है कसम की पीछे मुड़ कर कभी नहीं देखेंगे, 
तो चलने दे अब मुझे तन्हा, 
यूँ हर बार पीछे मुझे आवाज़ लगाया ना कर, 
कितनी बार समझाया तुझे, 
यूँ हर रात मेरे ख़्वाबों में आया ना कर...

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10.अब मुझे उसकी याद नहीं आती

अब मुझे उसकी याद नहीं आती,
जब भी देखती हूँ दो प्यार करने वालों को,
हँसते-हँसते मेरी आँखें हैं भर जाती,
मगर अब मुझे उसकी याद नहीं आती

जब भी कभी उन गालियों से निकलती हूँ,
जहाँ कभी हम साथ चले थे,
उस वक़्त मेरे चेहरे पर एक मुस्कान आज भी है आती,
फिर भी मुझे उसकी याद नहीं आती

कभी तड़पते थे हम जिसकी एक झलक के लिए,
आज वो सामने से भी गुज़र जाये, 
तो भी मेरी नज़रें उस पर नहीं जाती,
क्यूँकी अब मुझे उसकी याद नहीं आती

एक वक़्त था जब उसका नाम भी, किसी और के साथ सुनने भर से हम तड़प उठते थे, 
मगर अब उसे किसी और के साथ देख कर भी मैं आँसू नहीं बहाती, 
क्या करूँ? अब मुझे उसकी याद ही नहीं आती

कभी-कभी सवाल करता है दिल मेरा मुझसे, 
की क्यूँ इतनी शिद्दत के बाद भी वो तेरा ना हुआ? 
सच कहूँ, तो आज भी मैं इस सवाल का जवाब अपने दिल को दे नहीं पाती,
अब सच में मुझे उसकी याद नहीं आती

आज भी जब वो जा चुका है हमेशा के लिए,
और मुझे अपनी बेवकूफ़ी याद आती है, तो मैं रात भर सो नहीं पाती, 
हाँ! करवटें ज़रूर बदलती हूँ,
मगर सच है ये के अब मुझे उसकी सच में याद नहीं आती

[नोट: अगर आप इस कविता को चाहते हो सुनना, तो क्लिक👆🏻 करें नीचे⬇️ दिए गए लिंक पर...]

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9.हमें पता अचानक चला


उनके दिल में  तो मोहोब्बत कब की ख़त्म थी,
वो बात अलग है, हमें पता अचानक चला

बेवफाई करने की साज़िश तो पहले से थी उनकी,
उनकी क्या गलती जो, हमें पता अचानक चला

हमें इल्म ही नहीं था की वो सपने देख रहे हैं,
आशियाना किसी और का सजाने के,
दर्द-ए -दिल का उस रोज़, हमें पता अचानक चला

सुना तो बहुत था की कैसे टूटते हैं सपने,
और कैसे टूटकर बिखरता है दिल कांच की तरह,
इश्क़ की चुभन का एहसास क्या होता है,
ये उस शाम हमें पता अचानक चला

यूँ तो कई बार बताया था लोगो ने की,
मेरा मेहबूब कर रहा है मेरी क़ज़ा की तय्यरियाँ,
मगर जब उस रात बेवफ़ाई के ज़हर को चखा हमने,
तो यकीन हुआ की लोग सही थे, एक हमें ही पता अचानक चला।

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8.याद है मुझे आज भी

याद है मुझे आज भी,
वो जब पहली बार उनके होंठ मेरे माथे से टकराए थे,
कहना बहुत कुछ था, पर फिर भी हम उनसे कुछ कह नहीं पाए थे।

कैसे भूल जाऊँ ,
की उस दिन काजल से नहीं मैंने अश्कों से अपनी आँखें सजाई थी,
हाँ! डर तो नहीं था कोई, थोड़ी-सी ही सही, मगर मैं घबराई थी।
सुकून तो मिला उस छुअन से, मगर दिल में बेचैनी बड़ी थी, 
दिल किया कि उछल पड़ु खुशी से, मगर फिर भी मैं स्तब्ध खड़ी थी।

हाँ मुझे याद है,
जब उनके लब मेरे माथे से टकराए थे,
जिस्म तो चला गया उनका अपने घर,
मगर दिल से वो मुझसे दूर जा नहीं पाए थे,
कहना बहुत कुछ था उन्हें भी,
मगर कह वो भी नहीं पाए थे।

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7.शादी का रिश्ता

है याद आज भी मुझको वो मेरी पहली मुलाक़ात,
वो थे खमोश और मैं कर रही थी बिन रुके हर बात ,
मैं थी बेबाक उस दिन ना मैं घबराई ना शरमाई,
हुआ अफ़सोस उसको क्यूंकि मैंने कह दिया भाई।

हुआ मुझको अचंम्भा और मैं यह जान ना पायी,
क्यों है नाराज़ मेरी माँ जो उसको कह दिया भाई?,
मेरी माँ की सहेली थी वो रिश्ता मेरे लिए लायी,
मगर ये बात मेरी माँ ने मुझको थी ना बतलायी। 

फिर जब माँ ने खुलके मेरे आगे राज़ ये खोला,
मैं तो देख रही थी जमाई तूने भाई क्यों बोला?,
मैं भी थी सदमे में अब इसके आगे मैं क्या बोलूं?
जिसको बोल दिया है भाई उसको जान कैसे बोलूं?  

अब क्या बताऊ आगे क्या हुआ था इसके बाद,
जैसे मुझको है याद, उसको भी तो होगा याद,
किया कुछ ऐसा जिसको मेरी माँ भी भूल न पायी,
और इस के बाद मेरी माँ की सहेली कोई रिश्ता ना लायी, 
गयी इस बार तो मैं उसको राखी बाँध के आयी,
ये शादी के रिश्ते का किस्सा ही खतम कर आयी

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6.Our first meeting

I still remember that day When we met for the first time,
He brought chocolates for me And arranged a perfect dine...

How can I forget the way he was talking to me, 
We had pasta and glasses of bear,
With him I was feeling safe, And there was no fear...

That day I was able to see that, his lips and tongue both were not in his control,
But cause we met first time that's why he was trying so hard to follow the protocol....

Even I was feeling shy otherwise I'm too bold,
The way he was trying I was also trying to keep me hold...

We finished the food and drinks, And he dropped me at my home,
He didn't hugged me that day, but I felt that his feeling was so warm...

I remember while he was dropping me at my place and we were in his car,
Whatever he was saying to me, I was feeling so special just like a star...

And than our first meeting was end,
Now I hope that the way im waiting he is also waiting for second...

I felt that We both don't want to say bye, 
But we can't do anything,
He told me that next time when we meet,
He will not play tha songs, coz he want me to sing...

Aur iss tarah pehli mulaqat khtam hui,
Aur shuru hua dusri mulaqat ka intezaar,
Yakeen hai mujhe jaise mujhe bechaini hai dusri mulaqat ki,
Wo bhi hoga bekraar....

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5.Those Few Moments

How Can I forget those few special moments
which we spent together in our office timings,
I still remember that you love to listen my poems & Rhymings... 

You were not the first person who always want me to write or appreciate,
But yes you are the first who inspire me to write & keeps me motivate,
I know we can't be together all the time, But we both know that our JODI was Ultimate...

I still remember when we went in a Cafe, for the first time and ordered beer,
And that day we enjoyed without any tension or fear...

And then we used to meet in day for meetings & in night for dream,
Hope you remember that I asked you, so many times to bring me an Ice-Cream...

You were never my addiction but, you became my life's an important part,
I told you that you gained twenty percent part in me heart...

We never spend Few Moments, actually we spent so much of good time together,
I hope the way I keep you in my heart, you also remember me forever...

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4.कोरोना से मत डरो ना

कोरोना की मुसीबत सर पे है,
अच्छा है सब घर पे हैं,
वरना पूछो उनका हाल,
जो जीवन को तरसे हैं।  

ये कोरोना ज़रा घमंडी है,
इसके कारण  बंद दुकाने,
बंद सब्ज़ी मंडी है,
मगर ये आता नहीं तुम्हरे पास,
जब तक तुम ना इसे बुलाओ,
यही सलाह है मेरी सबको,
घर में रहो न बाहर जाओ।
टल  जाएगी ये विपदा भी,
ज़रा सब्र करो  घबराओ।

हम भी पक्के हिंदुस्तानी है,
अगर ये है कोरोना,
ये डराता है उनको जो रहते हैं बाहर,
तो मत निकलो तुम बाहर घर में ही रहो ना।

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3.लॉकडाउन vs कोरोना

इस लॉकडाउन में और कुछ तो नहीं मगर इतना समझ में आया है,
की मोदी जी के कारण इंसान को रिश्तों का अर्थ समझ में आया है,
और वो इसीलिए की लोगों ने बहुत अर्से के बाद अपने परिवार के साथ वक़्त बिताया है।

और इसी बीच एक और बात सामने आयी है, जो अब तक देखी नहीं थी किसी ने,
ऊपर वाले ने ये दुनिया कितनी खूबसूरत बनाई है।
और कुछ लोग हैं अब भी बाकी जिन्हें डंडे खाकर भी अक्ल नहीं आयी है,
जो समझ रहे हैं कोरोना को एक मामूली-सा वाइरस,असल में वो बेतहाशा तबाह करने वाली तबाही है।

मोदी जी का गला बैठ गया बोल-बोल कर, फिर भी उन्होंने हार नहीं मानी है,
भगाएंगे इस कोरोना को देश के बाहर, ये ज़िद उन्होंने ठानी है।

मगर अफसोस है तो इस बात का, कि अब भी आधी जनता इस तबाही से अनजानी है,
और लोगों को इस बीमारी से कम और लॉकडाउन से जादा परेशानी है।

सोशल - डिसटैनसिंग से ही टूटेगी ये कोरोना की कड़ी, इस छोटी-सी लड़ाई को क्यू कर रहे हैं हम बड़ी,
समर्थन दें सब मिलकर लॉकडाउन का तो टल जाएगी ये मुश्किल घड़ी।
आओ ठान ले हम भी जो मोदी जी ने ठानी है, 

चाहे जो भी हो हमे ये तबाही अपने देश के बाहर भगानी है,
ये मौका है साबित करने का, की हम है सच्चे देश-भक्त, और पक्के हिन्दुस्तानी हैं।

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2.कोरोना - कोरोना

घर में ही रहो ना, घर में ही रहो ना,
चला जाएगा ये कोरोना-कोरोना,
आया है जहां से वहीं जाएगा ये,
बाहर जो तुम निकले तो खा जाएगा ये।

बात तुम सुनो ना, घर में ही रहो ना,
फोन तुम करो ना, गेम खेल लो ना,
एमेजोन, नेटफलिक्स पे मूवी देखो ना,
अपनी परिवार को वक़्त तुम दो ना।

हाथ धो लो ना, मास्क पहनो ना,
अपने हाथों को सैनीटाइज करो ना,
जो - जो कहा वो सब करो ना
मेरी बात मानो घर में ही रहो ना
चला जाएगा ये कोरोना-कोरोना।
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1.कोरोना की दहशत

कोरोना की दहशत  देखो,
घेर रहा है ये इंसान,
सारी दुनिया सोच रही है,
आगे क्या होगा भगवान।

अपने घर में कैदी हैं सब,
माँग रहें हैं सब आज़ादी,
डर बैठा है सबके दिल में,
और करे कितनी बर्बादी,
ना जाने कितनी बर्बादी।

अब घर ही है मंदिर - मस्जिद,
अब घर ही है चारो धाम,
जो हैं रोज कमाते-खाते,
उनका कैसे चलेगा काम।

रुकी हुई है अर्थव्यवस्था,
रुके हुए सारे काम,
रुका हुआ है उत्पादन भी,
बड़ गए हैं चीजों के दाम।

लेकिन हमको लड़ना होगा,
बिल्कुल भी ना डरना होगा,
फैले ना ये आगे जाकर,
ऐसा अब कुछ करना होगा।

मचा हुआ है हाहाकार,
चीख रही अपनी सरकार,
रहो घर के अंदर अपने,
मत निकलो घर से बाहर।

ये संकट तो टल जाएगा,
जो देंगे हम सबका साथ,
करो नमस्ते, रहो दूर तुम,
मत मिलाना किसी से हाथ।

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