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10. खाई है कसम

खाई है कसम अब खुद को बिलकुल नहीं बचाएंगे,
खाई है कसम अब खुद को बिलकुल नहीं बचाएंगे,
बारिश हो तो सही,
अरे! बारिश हो तो सही, हम ज़रा क्या पूरा भीग जायेंगे।

और यूँ तो बहुत आलसी हैं हम, फिर भी सज-सवर कर खड़े रहते हैं,
हर शाम अपनी चौखट पर उनके इंतज़ार में,
की कब वो गली से गुज़रेंगे, और कब हम उन्हें देख कर,
शरमाते हुए अपनी नज़रें झुकाएँगे,
खाई है कसम अब खुद को बिलकुल नहीं बचाएंगे,
बारिश हो तो सही, हम ज़रा क्या पूरा भीग जायेंगे।

और उन्हें हमारी हर बात दिल्लगी लगती है,
और उन्हें हमारी हर बात दिल्लगी लगती है,
काश! कोई बताये उन्हें के हम हर रात खुद से सवाल करते हैं,
की कब वो दिन आएंगे जब हम उन्हें "अजी सुनते हो" कहकर बुलाएँगे,
खाई है कसम अब खुद को बिलकुल नहीं बचाएंगे,
बारिश हो तो सही, हम ज़रा क्या पूरा भीग जायेंगे।

[नोट : यह कविता द स्पिरिट मेनिया  द्वारा प्रकाशितजुस्तजू  में प्रकाशित हुई है। और यह पुस्तक AMAZON.IN पर उपलब्ध है] 

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9. बंदिश

बंधी हुई हूँ एक अजीब-सी बंदिश  में,
मुझे आज़ाद होने दो ना,
दुनिया के आगे तो हमेशा हँसती हूँ,
आज मुझे अपने लिए रोने दो ना।

मानती हूँ मां ने सिखाया था बचपन में,
की स्त्री का दूसरा नाम बलिदान भी होता है,
मगर मेरा सवाल है कि,अपने सपनों की बलि चढ़ने पर ही,
हमारा नाम महान क्यूँ होता है?,

कह दो दुनिया से नहीं बनना मुझे महान,
नहीं देना अपने सपनों का बलिदान,
बिन सपनों के मैं रह जाऊँगी बे-जान,
क्यूँकि, मेरे लिए मेरे सपने ही हैं मेरी जान,
और मेरे सपने ही हैं मेरी पहचान।

[NOTE: THIS WRITE-UP IS PUBLISHED IN LET'S SPEAK BY ROOH SE PUBLICATIONS ,
AND THIS BOOK IS AVAILABLE IN AMAZON YOU CAN ORDER IT BY GIVEN LINK →AMAZON]

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8.थक गए हैं - मगर हार नहीं मानी है

थक गए हैं ज़िन्दगी की उल्टी-सीधी राहों पर चलते-चलते,
थक गए हैं हर रोज़ अपने हालातों से लड़ते-लड़ते।

ना जाने कितने नये रूप दिखाएगी ये ज़िन्दगी,
ना जाने और क्या-क्या सिखाएगी ये जिन्दगी।

सुना था ज़िन्दगी हर मोड़ पर नये-नये रंग दिखाती है, 
मगर ये तो रंगों के साथ, ज़िन्दगी जीने के कई नये ढंग भी सिखाती है।

और सुना है हमने की जान देने वाले बहुत हिम्मत वाले होते हैं,
मगर जो मुसकुराते हुए जो ज़िन्दगी जीते हैं वो लोग निराले होते हैं,
और जिनको हिम्मत मिलती है अपनों से वो किस्मत वाले होते हैं।

मगर चाहे जितने सितम कर ले ये ज़िन्दगी हमपर,
ठान ली है हमने बदलेंगे अपनी किस्मत अपने दमपर।

कई ठोकरें खाकर भी हमने कभी हार ना मानी है, 
चाहे जितनी भी कोशिश कर ले ये जिन्दगी, अब होगा वही जो ईस दिल ने ठानी है।

अगर इसे ज़िद कहते हैं तो अब यही ज़िद पूरी करके दिखाएँगे,
और अब अपनी ज़िन्दगी को हम अपने रंग अपने ढंग से दिखाएँगे।

[नोट : यह कविता देवप्रभा प्रकाशन द्वारा प्रकाशित कविता अविराम - 1 में प्रकाशित हुई है। और यह पुस्तक AMAZON.IN पर उपलब्ध है] 

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7.मैं उड़ना चाहती हूँ

मैं पंख फैला कर उड़ना चाहती हूँ,
नये ख्वाबों से जुड़ना चाहती हूँ, 
जो बीत गया उसकी तरफ़ कभी ना मुड़ना चाहती हूँ,
मैं तो बस खुले आसमान में उड़ना चाहती हूँ ।

ना जाने कब मौका मिलेगा अपने ख्वाबों से जुड़ने का,
ना जाने कब मौका मिलेगा खुली हवा में उड़ने का,
इंतज़ार है मुझे अपनी किस्मत के दरवाज़ों के खुलने का,
और बहुत बेसब्री से इंतजार है अपने सपनों से मिलने का ।

अब सोच लिया है मैने कि अब कभी हार नहीं मानूंगी,
अब लोगों से पहले मैं खुद को पहचानुंगी,
अब ठान ली है मैने कि अब कभी हार नहीं मानूंगी ।

हर कोशिश करूँगी अपने सपनों से जुड़ने की,
कोई कितना भी रोके मैं पूरी कोशिश करूँगी खुली हवा में उड़ने की।

[नोट : यह कविता देवप्रभा प्रकाशन द्वारा प्रकाशित कविता अविराम - 1 में प्रकाशित हुई है। और यह पुस्तक AMAZON.IN पर उपलब्ध है] 

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6.वो तो नन्ही सी जान थी

वो तो नन्ही सी जान थी,
वो तो दिल से नादान थी,
उसको जो सज़ा मिल रही है,
जिसमें गलती उसकी नहीं है,
वो तो उससे भी अनजान थी।

उसने पूछा था कि "ये क्या कर रहे हैं आप?" ,
उम्र से तो लगता था वो खुद एक बेटी का बाप।

मगर वो जानता था कि जो वो कर रहा है वो पाप है,
आखिर वो कैसे भूल गया कि वो खुद एक बेटी का बाप है?

मगर वो हैवान था, इनसान नहीं था,
वो ग़लती नहीं गुनाह कर रहा है,
इस बात से वो अनजान नहीं था।

मगर वो हैवान भूल कर हर इंसानियत, बार-बार वही गुनाह करता रहा,
और अपनी दो पल की खुशी के लिए एक मासूम की जिन्दगी तबाह करता रहा।

रूह कांप जाती है जब ऐसा कोई किस्सा सुनने में आता है,
कैसे होते हैं वो दरिन्दें जिन्हें उस मासूम पर ज़रा-सा भी तरस नहीं आता है?

माना वो ग़ैर है, हमारे लिए खास नहीं है,
मगर क्या हमें उसके दर्द का ज़रा-सा भी एहसास नहीं है?

क्या सिर्फ कैंडल मार्च से उस मासूम को इन्साफ मिल जाएगा?
नहीं! जब बीच चौराहे पर ज़िन्दा जलाए जाएँगें,
वो हैवान असली सबक उन्हें तभी मिल पाएगा,
और फिर किसी मासूम की जिन्दगी कोई हैवान फिर से तबाह ना कर पाएगा।

[नोट : यह कविता देवप्रभा प्रकाशन द्वारा प्रकाशित कविता अविराम - 1 में प्रकाशित हुई है। और यह पुस्तक AMAZON.IN पर उपलब्ध है] 

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5.सही वक़्त का इंतज़ार है

यूँ तो हम भी जवाब दे सकते हैं दुनिया के सवालों का,
मगर हमें सही वक़्त का इंतज़ार है

जानते हैं हम की कभी हार में भी जीत है, तो कभी जीत में भी हार है,
हमें तो बस सही वक़्त का इंतज़ार है

कितनी कमीयां है हम में ये तो दुनिया जानती है,
मगर जो खुबियां देख सके हममें उस एक शख्स का इंतज़ार है,
हमें बस सही वक़्त का इंतज़ार है

यूँ तो कबके बिखर गए होते हम,
मगर इस दिल ने कभी ना मानी हार है,
इस दिल को बस सही वक़्त का इंतज़ार है

कभी-कभी लगता है बस अब बहुत हो गया, थक गए हैं चलते-चलते,
फिर हर बार की तरह इस दिल से आती आवाज़ है,
कि तुझे क्यों किसी की दरकार है?
थोड़ा सब्र कर वो वक़्त भी आएगा जिसका तुझे इंतज़ार है।

[नोट : यह कविता देवप्रभा प्रकाशन द्वारा प्रकाशित कविता अविराम - 1 में प्रकाशित हुई है। और यह पुस्तक AMAZON.IN पर उपलब्ध है] 

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4.COFFEE VS CHAI

Let me tell you,
The difference between coffee and tea,
Coffee makes you sophisticated, tea keeps you free...

Coffee can be hot or cold,
I love tea from chilhood, but why,
Nobody has never told...

I have tasted hot coffee and coffee with ice,
But if you ask me for tea,
I will say "with a little spice"...

I prefer coffee when my BP is low,
But for tea I can never say NO...

Sometimes I feel that, coffee came from some management school,
But bro! tapri wali chai is ultimately cool...

Coffee per to CCD ya STARBUCKS ka tag hai,
But dude, masala chai ka apna alag hi swag hai...

I feel coffee is like daughter-in-law,
And tea is like your own daughter,
Coffee lover can be hot,
But believe me tea lover is more hotter...

Coffee is like a guy whom your parents will choose,
But tea, tea is like your lover whom you don't want to lose...

Don't think that I'm against coffee,
But whenever I think about tea, I feel like stayfree...

Oops! Did I said something wrong,
You know what?, coffee can make you addicted,
But tea always makes you strong...

I'm sorry,
I'm saying sorry,
Not because of my mistake which I want to cover,
Is just because, I'm a chai lover...

BTW! Have you heard that song?,
Aap jaisa koi meri zindagi me aaye to baat ban jaaye,
But in my mind there is dfferent lyrics with the same tone,

Ek cup masala chai, jo mujhe mil jaaye to baat ban jaaye,
Ahaan!baat ban jaaye...


[NOTE: THIS WRITE-UP IS PUBLISHED IN TRAIT BY WISDOM PUBLICATIONS ,
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3.A Story of Coffee Lover

I know all of you heard about addiction of Alcohol, Cigarettes or any other Drugs,
But one of my friend is addicted with Coffee Cups...

You must be thinking that "Is he a thief who rob Cups or mugs, or he is a convict?,
So, Let me tell you, he is neither a thief nor a Convict,
but I have to say that he is a Coffee Addict...

For him one cup of coffee , is not less than a gift or trophy,
And yes I can understand his feeling for Coffee...

After having some number of cups of Coffee,
I got to know that by his Nature he is so open, 
He don't keep things to be cover,
He is alcoholic and also a big Coffee lover...

Yes! He is alcoholic, but more addicted with Coffee,
I still remember when we went in a Coffee Shop for the first time,
he ordered a cappuccino for me and for him a Black Coffee...

Even one day I saw a dream where his Doctor told me that in his body there is no Blood,
And Doctor showed me his report, that in his veins there is only Coffee Flood...
I felt so sad, And I felt so bad,
than I realise, Oops! it's just a Dream not more than that...

Even his Coffee Love started me also get affected,
I was scared, that Am I also becoming Coffee Addicted??...
Actually he is a very big Coffee Snob,
He likes food & drinks also, but Coffee is priority for him,Coffee is always on top...

If you want Something from him, or want any favour,
than you should offer him a Black Coffee, coz that's his favorite flavour...

I know Coffee is his weakness, And Coffee is his strength,
when you spend time with him, you will get to know he is hard from outside,
but there is lots of love in his heart, somewhere under the Depth...

And Last but not the least,
CHAI MEIN AGAR SUR HAI, TO COFFEE MEIN HAI RYTHM,
AGAR CHAI MEIN MASALA HAI, TO COFFEE BHI NAHI HAI KAM...

[NOTE: THIS WRITE-UP IS PUBLISHED IN TRAIT BY WISDOM PUBLICATIONS ,
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2.समझौता

अब कोई खुल के जीता कहां है,
जहां देखो समझौता  वहां है।
अब हर कहीं बस यही होता है,
अब हर कोई करता अपने सपनों से समझौता है।

कहीं किसी को अपने दिल की बात छुपानी पड़ती है,
तो कहीं खुश ना होकर भी झूठी मुस्कान दिखानी पड़ती है।

कभी-कभी तो सपनों पर जिम्मेदारी भारी पड़ती है,
मगर होती है मजबूरी, कि ना चाह कर भी,
वो जिम्मेदारी उठानी पड़ती है।

यह बस एक मेरे साथ नहीं सबके साथ यही अब होता है,
जहां घूमाओगे नजरें, तो पाओगे हर तरफ समझौता  है।
जो दिल से निभाए जाए अब कहाँ वो रिश्ते होतें है,
पहले बंधन होते थे दिल के, अब तो बस समझौता होतें हैं।

[नोट : यह कविता नवकिरण मासिक इ-पत्रिका के प्रवेशांक मई २०२० में प्रकाशित हुई है।] 

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1.विकलांग कौन है?

विकलांग कौन है?

क्या शारीरिक रूप से असमर्थ और मानसिक रूप से अपरिपक्व व्यक्ति को ही विकलांग कहते हैं? हाँ! ये दो प्रकार की विकलांगता है जोकि मानव के शरीर (भौतिक रूप) में होती है परंतु विकलांगता के और भी रूप हैं। अर्थात् इन दो के अलावा विकलांगता का तीसरा रूप भी हमारे समाज में पाया जाता है। विकलांगता का यह तीसरा रूप उन लोगों में भी पाया जा सकता है जो शारीरिक और मानसिक रूप से सामान्य हों। यह तीसरा रूप है 'वैचारिक विकलांगता' जो आजकल समाज में तीव्र गति से अपना प्रसार कर रहा है।
इसके कुछ उदाहरण इस प्रकार हैं:-
1) अपने बच्चों की खुशी समझने में असमर्थता।
2) प्रेम का अर्थ समझने में असमर्थता।
3) दकियानूसी रिवाज़ों और प्रथाओं से बाहर आने में असमर्थता।

1) हम मानते हैं कि आज के वक़्त में पहले के मुकाबले ज़्यादा प्रतिस्पर्धा है। विद्यालयों में, नौकरी में और अन्य क्षेत्रों में भी। मगर इसका मतलब ये नहीं है की मासूम बच्चों पर अत्याचार किये जायें। कुछ माँ-बाप असमर्थ हैं अपने बच्चों की प्रतिभा को समझने में। हर बच्चा कक्षा में प्रथम नहीं आता है मगर हर बच्चे में कुछ-न-कुछ ख़ास ज़रूर होता है। उनके (माता-पिता/संरक्षक) लिए अपने बच्चों की इच्छा और भविष्य से ज्यादा ज़रूरी है अपनी वो इज़्ज़त जो कई दफ़ा हमने 'शर्मा जी का लड़का' या 'वर्मा जी की लड़की' के नाम से सुनी होती है। जैसे पाँचों उंगलियाँ बराबर नहीं होती हैं वैसे ही हर किसी की क्षमता या प्रतिभा एक बराबर नहीं होती है। कोई बच्चा गाना गाने में अच्छा हो सकता है, कोई पढ़ने में, तो कोई अपने ख़्यालों को शब्द देने में या किसी भी अन्य काम में। हाँ! समाज में इज़्ज़त सबको चाहिए मगर उसके लिए अपने ही बच्चों को न समझना एक प्रकार की असमर्थता ही तो है। इस असमर्थता के इलाज के लिए ज़रूरी है की माता-पिता अपने बच्चों को समझें और उन्हें समझायें।

2) इसमे इंसान अपनी पसंद या ज़िद को प्रेम का नाम दे देता है। वैसे तो प्रेम का अर्थ ही 'समर्पण' होता है मगर इस बीमारी में इंसान के लिए प्रेम का अर्थ 'प्रिय को हासिल करना' ही होता है। जब वो हासिल नहीं कर पाता तो अपहरण, रेप, रेप का झूठा इल्जाम लगाना, एसिड अटैक या हत्या जैसे कांड कर बैठता है। क्योंकि प्रिय को हासिल नहीं कर पाना यूँ तो मामूली बात है मगर इसे स्वीकार करने में वह असमर्थ होता है। "इसका अर्थ है की इस असमर्थता का इलाज 'स्वीकृति' है।" 

3) अब आखिरी असमर्थता की बात करें तो इसका सम्बंध पुराने रिवाजों से है, जिसे कई गाँव यहाँ तक की शहरों में भी कई लोग इसका पालन करते हैं। जी हाँ! करते हैं और वो भी अपनी सहूलियत के अनुसार।
जैसे कि मैंने एक बार अख़बार में पढ़ा था कि कोई गाँव है जहाँ आज भी एक प्रथा का पालन किया जाता है जिसमें "एक लड़की की शादी उसके पति के साथ-साथ उसके बाकी भाईयों के साथ भी होती है।" एक गाँव में भोज प्रथा है, "विवाह के बाद अगर पूरे गाँव को भोज नहीं कराया तो उस विवाह को वैधता प्राप्त नहीं होगी।" ऐसी ही कई प्रथाओं का पालन कई लोग कर रहे हैं मगर बिना किसी जाँच-परख़ और सवाल-जवाब के। इस असमर्थता का भी एक इलाज है और वो है 'सवाल-जवाब', कि जो प्रथा या रिवाज़ है वह क्यों है? आज इसकी ज़रूरत है या नहीं?

शारीरिक या मानसिक विकलांगता का इलाज किया जा सकता है। मगर ये जो साधारण मनुष्य के भीतर वैचारिक विकलांगता है उसे ठीक करना मुश्किल है क्योंकि उनकी असमर्थता उनकी नज़र में असमर्थता नहीं होती। अगर हम चाहते हैं की ये वैचारिक विकलांगता और न बढ़े तो इसके लिए बड़ों को अपना नज़रिया और परवरिश का तरीका बदलने की ज़रूरत है। ये समझने की ज़रूरत है कि हमारे बच्चों को क्या करने की इच्छा है, वो किस क्षेत्र में आगे बढ़ने की क़ाबिलियत रखते हैं। अपने आने वाली या आ चुकी पीढ़ी को प्रेम का अर्थ समझाने की ज़रुरत है कि प्रेम केवल हासिल कर लेना या वासना नहीं होता। प्रेम में पवित्रता और सहमति दोनों ज़रूरी होती हैं। तीसरी और आख़िरी ज़रूरत, हमें वक़्त के साथ-साथ परम्पराओं के नाम पर चल रही कुप्रथाओं को बदलने और उन्हें हटाने की ज़रूरत है। ये उपाए करके ही हम अपने समाज की विकलांगता और असमर्थता को दूर कर सकते हैं।

{नोट: यह आर्टिकल निनाद ई-पत्रिका मई 2020 पृष्ठ संख्या १२ पर प्रकाशित हुआ है,  यदि आप विकलांगता पर और भी कई विचारों से अवगत  होना चाहें या पूरी पत्रिका पढ़ना चाहें तो नीचे दिए गए लिंक से पूरी पत्रिका भी डाउनलोड कर सकते हैं}


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