किसकी तकलीफ़ बड़ी?
[डिस्क्लेमर: ये कहानी सत्य घटनाओं पर आधारित है, और इसका कोई भी पात्र (character) काल्पनिक नहीं है ]
नमस्कार 😊🙏!
आज एक दोस्त जिसका नाम शेखर है उसने एक किस्सा मुझे सुनाया जो हकीकत ही है। उसका वो किस्सा सुनकर मुझे लगा की मैं यूँ ही परेशान हो रही थी , की भगवान ने सारी मुसीबत मुझे ही दे दी है। मगर मेरे दोस्त के किस्से ने मेरी परेशानी दूर कर दी।
तो किस्सा कुछ यूँ था, मेरा दोस्त फार्मासिस्ट है,बोले तो केमिस्ट वाले भैया । तो ये किस्सा उस वक़्त का है, जब वो अपनी इंटर्नशिप के शुरुवाती दौर में था और एक हॉस्पिटल में फार्मासिस्ट की ट्रेनिंग ले रहा था। उस किस्से के होने से पहले तक वो बस अपने बारे में सोचता था, जैसे की अपने सपने, अपनी ज़िन्दगी अपना करियर, वगैरह-वगैरह।
हाँ! तो ये बात है साल २०१८ (2018) की, और क्यूंकि वो एक फार्मासिस्ट की ट्रेनिंग ले रहा था तो उसी पर्चियां देख कर मरीजों को या उनके घरवालों को दवाइयाँ देनी होती थी, जैसे की केमिस्ट वाले भैया करते हैं, तो वो हर रोज़ की तरह अपना काम कर रहा था। और क्यूंकि वो फार्मेसी में था तो वहाँ सबके काउंटर अलग-अलग होते हैं मतलब, महिलाओं का अलग, पुरुषों का अलग और ऐसे ही बच्चों का भी अलग होता है।
तभी एक बच्चा जिसकी उम्र कुछ १२ (12) साल की होगी उसके वाले काउंटर पर आया और उस बच्चे के सिर पर पट्टियाँ बंधी हुई थी, उसके हाथ में प्रवेशनी (CANNULA) लगी हुई थी, और उस बच्चे के शरीर पर काफी निशान थे, और उस बच्चे को देख कर वो खुद को रोक नहीं पाया, और उसने तुरंत उसकी हिस्ट्री चैक की, हिस्ट्री देख कर उसे पता चला की उस बच्चे को थैलेसीमिया (THALASSEMIA) है।
तो किस्सा कुछ यूँ था, मेरा दोस्त फार्मासिस्ट है,बोले तो केमिस्ट वाले भैया । तो ये किस्सा उस वक़्त का है, जब वो अपनी इंटर्नशिप के शुरुवाती दौर में था और एक हॉस्पिटल में फार्मासिस्ट की ट्रेनिंग ले रहा था। उस किस्से के होने से पहले तक वो बस अपने बारे में सोचता था, जैसे की अपने सपने, अपनी ज़िन्दगी अपना करियर, वगैरह-वगैरह।
हाँ! तो ये बात है साल २०१८ (2018) की, और क्यूंकि वो एक फार्मासिस्ट की ट्रेनिंग ले रहा था तो उसी पर्चियां देख कर मरीजों को या उनके घरवालों को दवाइयाँ देनी होती थी, जैसे की केमिस्ट वाले भैया करते हैं, तो वो हर रोज़ की तरह अपना काम कर रहा था। और क्यूंकि वो फार्मेसी में था तो वहाँ सबके काउंटर अलग-अलग होते हैं मतलब, महिलाओं का अलग, पुरुषों का अलग और ऐसे ही बच्चों का भी अलग होता है।
तभी एक बच्चा जिसकी उम्र कुछ १२ (12) साल की होगी उसके वाले काउंटर पर आया और उस बच्चे के सिर पर पट्टियाँ बंधी हुई थी, उसके हाथ में प्रवेशनी (CANNULA) लगी हुई थी, और उस बच्चे के शरीर पर काफी निशान थे, और उस बच्चे को देख कर वो खुद को रोक नहीं पाया, और उसने तुरंत उसकी हिस्ट्री चैक की, हिस्ट्री देख कर उसे पता चला की उस बच्चे को थैलेसीमिया (THALASSEMIA) है।
यह आनुवांशिक रोग जितना घातक है, इसके बारे में जागरूकता का उतना ही अभाव है। सामान्य रूप से शरीर में लाल रक्त कणों की उम्र करीब 120 दिनों की होती है, परंतु थैलेसीमिया के कारण इनकी उम्र सिमटकर मात्र 20 दिनों की हो जाती है। इसका सीधा प्रभाव शरीर में स्थित हीमोग्लोबीन पर पड़ता है। हीमोग्लोबीन की मात्रा कम हो जाने से शरीर दुर्बल हो जाता है तथा अशक्त होकर हमेशा किसी न किसी बीमारी से ग्रसित रहने लगता है। थैलेसीमिया नामक बीमारी प्रायः आनुवांशिक होती है। इस बीमारी का मुख्य कारण रक्तदोष होता है। यह बीमारी बच्चों को अधिकतर ग्रसित करती है तथा उचित समय पर उपचार न होने पर बच्चे की मृत्यु तक हो सकती है।
ये सब देखने के बाद शेखर ने उस बच्चे से पूछा "बेटा आपके साथ कौन है?", उस बच्चे ने जवाब दिया "मम्मी है, मगर वो रिक्शा लेने गयी हैं, आप मुझे इस पर्ची पर लिखी दवाई दे दो"।
ना जाने शेखर को अचानक क्या हुआ कि वो पूरा सुन्न पड़ गया, उसके सहकर्मी ने उसे हिलाया और बोला "अरे! क्या हुआ भैया"। शेखर के पास उस सहकर्मी को देने के लिए जवाब नहीं था, मगर उस बच्चे को देने के लिए दवा ज़रूर थी।
दवाई देते वक़्त शेखर की आँखें नम थी और वो सोच रहा था की ना जाने ये बच्चा इस दवाई के लिए कब से खड़ा होगा? जो उसे किसी भी मेडिकल की दुकान पर आसानी से मिल जाती मगर सिर्फ इसलिए की उसके घरवालों के पास पैसे नहीं है बाहर से दवाई लेने के लिए तो बस कुछ पैसे बचाने के लिए वो छोटा सा बच्चा कितनी मेहनत कर रहा था, खुद बीमार होते हुए भी लाइन में लगा हुआ था, और शेखर ये भी सोच रहा था की दुनिया में कितना ग़म है और मेरा ग़म कितना कम है। शेखर ये भी सोच रहा था की कितने लोग हैं जो मेडिक्लेम करवाते है और कितनी अच्छी सुविधाएं मिलती हैं उन्हें, और जिन्हें असल में उन सुविधाओं की ज़रूरत है वो बेचारे कुछ कर नहीं पाते।
फिर शेखर ने सोचा की आजतक अपने लिए जीता आया हूँ, काश किसी और के लिए भी कुछ कर सकूँ, तो उसने उस बच्चे को दवा के साथ-साथ अपना नंबर भी दिया और कहा "की जब भी अस्पताल अपना इलाज या जांच करवाने आये तो बस एक फोन कर देना, लाइन में मत लगना मैं दवा दे दिया करूँगा"
शेखर का ये किस्सा सुनकर मेरी आँखें भी भर आयी और समझ में आया की सिर्फ मैं ही नहीं जो अपनी जिंदगी से परेशान है, मेरे अलावा और मुझसे ज़्यादा और भी कई लोग है दुनिया में जो परेशान हैं, मगर फिर भी मुस्कुराते हैं, अपनी ज़िन्दगी जीते हैं।
जैसे किसी का जूता फटा है तो वो सोचता है "काश मैं नए जूते ले पाता", किसी के पास चप्पल है तो वो सोचता है की "काश फटा ही सही एक जूता तो होता", जिसके पैर नंगे है तो वो चप्पल को तरसता है, और जिसके पैर नहीं है वो ऊपर वाले से शिकायत करता है की "हे भगवान! तूने मुझे पैर क्यों नहीं दिये"।
"सबकी अपनी कहानी है,
सबके अपने किस्से हैं,
ख़ुशी किसी-किसी के पास है,
मगर ग़म सबके हिस्से हैं। "
मेरी इस कहानी का अर्थ सिर्फ इतना है की क्या हम अंदाज़ा लगा सकते हैं की किसकी तकलीफ़ हमसे बड़ी या छोटी है? नहीं क्यूंकि हम इंसान है, और हमारी फितरत है ये की हमे अपना दुःख हमेशा बड़ा लगता है।
तो कभी अगर आपको भी अपनी तकलीफें बड़ी लगे तो ये किस्सा याद कर लीजियेगा, जैसे मैं करती हूँ।
चलिए अगली बार फिर किसी नए किस्से को आपके साथ बाटूँगी।
उम्मीद करती हूँ आपको कहानी का मतलब या अर्थ समझ आया होगा।
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कहानी पढ़कर अपना फीडबैक ज़रूर दीजिएगा comment box में।
धन्यवाद 😊🙏
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Interesting
ReplyDeletevery nice.. too good.. keep it up.
ReplyDeleteNice thought....
ReplyDeleteVery true ✌
ReplyDeleteHelping hands story
ReplyDelete🙏🙏🙏🙏🙏 हमें हमेसा दुसरो की मदद करनी चाहिए
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