कहानी - अधूरा ख़्वाब (भाग-2)
माफ़ कीजिए आपको इंतज़ार करवाया...
अब चलते हैं आगे कहानी, ओह ख्वाब के दूसरे भाग में...
हम पहुंचे थे उस हिस्से में, जहां सुप्रिया ने सचिन का फोन बिना किसी जवाब दिए ही रख दिया था... और सवाल था कि "क्या सुप्रिया वहां सचिन से मिलने जाएगी?"...
तो हाँ! सुप्रिया वहाँ गई...
वो जैसे ही पार्क में पहुंची उसने देखा कि सचिन उसी बेंच पर बैठा है, जहाँ कभी वो दोनों घंटों वक़्त बिताते थे, एक दूसरे से बातें करते, तो कभी बस एक दूसरे को देख-देख कर...
सुप्रिया वहां चली तो गई और हालाकिं वो पहली बार नहीं मिल रही थी सचिन से, मगर उसके हाथ-पैर बिल्कुल ऐसे कांप रहे थे मानो वो सचिन से पहली बार मिलने आयी हो...
उसने हिम्मत करके सचिन को आवाज दी और कहा "हैलो, तुमने कहा था कि कोई जरूरी काम है अब बताओ क्यूँ बुलाया मुझे?"
लेकिन ये सुनने पर भी सचिन कुछ कहना तो दूर उसकी तरफ मुड़ा भी नहीं... फ़िर सुप्रिया ने कहा "लगता है तुमने मेरी आवाज नहीं पहचानी मैं सुप्रिया... अब बताओ भी क्या काम था?, मुझे और भी काम है" मगर सचिन का कोई जवाब नहीं आया...
फिर सुप्रिया ने कहा "अच्छा ठीक है नहीं हूँ मैं नाराज तुमसे पता है तुम्हारी गलती नहीं है, घरवाले नहीं माने तो तुम क्या करते... खैर तुमने देखा नहीं आज मैंने वही पीला सूट पहना है जिसमें देखकर तुम मुझे परी कहा करते थे, और ये घड़ी याद है मेरी माँ की पुरानी घड़ी जिसे पहली बार देखकर तुम इतना हसीं थे कि मैं ro पड़ी थी, और फिर तुम सामने वाली दुकान से चॉकलेट्स लेकर आए थे मुझे मनाने के लिए, और आज मैंने पायल भी वही वाली पहनी है जिसकी आवाज सुनकर तुम चिड़ जाया करते थे, और कहते थे कभी तुम्हारी पायल की छम-छम तो कभी तुम्हारी बक-बक दोनों परेशान करती हो मुझे... चलो छोड़ों ये सब तुम बताओ क्यूँ बुलाया मुझे?"
इतनी बातें सुनने के बाद अखिरकार सचिन मुड़ा और कहा "ये मेरी शादी का कार्ड है, तारिख तय हो गई है, तो सोचा तुम्हें बता दूँ"...
ये सुनने के बाद सुप्रिया स्तब्ध रह गयी क्यूँकी सचिन की फोन कॉल ने एक बार और उम्मीद जगाई थी सुप्रिया के मन में, अब कार्ड हाथ मे ले तो लिया मगर सुप्रिया अब भी सोच रही थी कि "हो सकता है सचिन ने घरवालो को मना लिया हो, और उस कार्ड पर सुप्रिया का नाम लिखा हो, या अगर किसी और का नाम हुआ तो??,फिर वो क्या करेगी??"
बहुत डरते-डरते सुप्रिया ने कार्ड को देखा और दुल्हन के नाम की जगह.....
सुप्रिया का....
नहीं किसी और का नाम था...
यूँ तो पहले जब भी सुप्रिया, सचिन का नाम किसी और के साथ सुनती थी तो आग-बबूला हो जाती थी, मगर आज, आज वो खामोश थी, चाह कर भी वो कुछ ना कह सकी, मगर उसकी आखों में जलन का लावा आंसूं बन उतर गया था और छलकने ही वाला था कि वो अचानक मुड़ गई ताकि सचिन को ये ना लगे कि वो कमज़ोर है और घर की ओर बिना कुछ कहे, बिना कोई सवाल किए भागने लगी...सचिन उसे आवाज़ लगता रहा मगर सुप्रिया नहीं रुकी....
रोती-रोती घर पहुंची, दरवाज़ा जोरों से खटखटाने लगी ताकि अपने कमरे में जाकर तकिये पर सिर रख कर जी भरकर रो सके....और जैसे ही दरवाजा खुला...
सुप्रिया की नींद भी खुल गई... और उसे एहसास हुआ कि ये तो महज़ एक ख्वाब था, मगर फिर उसकी आंखे क्यों हकीकत मे भीगी हुई थी???...
और अब सुप्रिया ने इस बात को मान लिया था, की सचिन जा चुका है अब कभी नहीं लौटेगा... वो ये सोच ही रही थी की अचानक सुप्रिया के फ़ोन की घंटी बजती है और उस पर नाम होता है "सचिन" का ......
"अब क्या सुप्रिया का ख्वाब हकीकत बनने वाला था???"
तो दोस्तों ये ख्वाब था...जिसका ख्वाब कोई प्रेमी या प्रेमिका ख्वाब मे भी नहीं देखना चाहते... उम्मीद करती हूँ आपको ये ख्वाब नुमा कहानी पसंद आयी होगी.... और क्या मुझे इसका अगला भाग लिखना चाहिए??? आपके फीडबैक या suggestion आप कमेंट बॉक्स में लिख सकते हैं
अगर आपने इस कहानी का पहला भाग नहीं पढ़ा है तो नीचे दिए गए लिंक के ज़रिये पढ़ सकते हैं...
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Star writer 🎉
ReplyDeleteToo much romantic stirg
बेहद उम्दा कहानी
ReplyDeleteIts beautiful...miss ✍
ReplyDeleteKhawab, haan kabhi kabhi sach bhi hote he aur kabhi nahi bhi.. nice story.. keep writing dear 💐
ReplyDeletevery nice.. bless u . keep it up
ReplyDeleteBht badiya...
ReplyDeleteKafi emotional hai aapki story
ReplyDeleteGood
Great writing
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