मैं कह नहीं पा रहीं हूँ...
क्यों नहीं हो रहा हासिल,
जो मैं हासिल करना चाह रहीं हूँ?,
दिल भरा है बातों और अल्फाजों से,
फिर भी क्यों मैं कह नहीं पा रहीं हूँ??
यूँ तो सहा है बहुत दर्द इस दिल ने,
फिर आज ये ज़रा-सी तकलीफ़,
क्यों मैं सह नहीं पा रहीं हूँ??
दिल भरा है बातों और अल्फाजों से,
फिर भी क्यों मैं कह नहीं पा रहीं हूँ??
कभी कह दिया करती थी, हर बात यूँ ही बेधड़क,
फिर क्यों सिल से गए हैं मेरे होंठ, क्यों आज मैं कुछ कह नहीं पा रही हूँ?,
दिल भरा है बातों और अल्फाजों से,
फिर भी क्यों मैं कह नहीं पा रहीं हूँ??
जुबाँ मेरी खामोश है,
मगर दिल से चुप हो नहीं पा रही हूँ,
दिल भरा है बातों और अल्फाजों से,
फिर भी क्यों मैं कह नहीं पा रहीं हूँ??
यूँ तो हर बार रखा है सब्र मैंने,
मगर इस बार का इंतज़ार मैं सह नहीं पा रही हूँ,
दिल भरा है बातों और अल्फाजों से,
फिर भी क्यों मैं कह नहीं पा रहीं हूँ??
यूँ तो कई बातें समझी हैं मैंने बिन कहे भी,
मगर इस बार खुदा का इशारा मैं समझ नहीं पा रही हूँ,
शायद इसीलिए अल्फाजों के होते हुए भी,
इस बार मैं कुछ कह नहीं पा रहीं हूँ...
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