मर्दों से नफ़रत

[DISCLAIMER : ये हक़ीक़त है कोई कहानी नहीं, मगर किरदारों के नाम बदल दिए गए हैं, उनकी असली पहचान गुप्त रखने के लिए, उम्मीद है की ये कहानी आप सिर्फ पढ़ें नहीं बल्कि इसे समझे भी। और ये कहानी आपको कुछ सीखा सके, जिसका आपके जीवन में अच्छा प्रभाव पड़े] 

 क्या ऐसा हो सकता है की किसी को अपने विपरीत लिंग (OPPOSITE GENDER) से इतनी नफरत हो, की वो उसके बारे में बात करना तो दूर बल्कि वो प्रकृति के नियम को ही बदलना चाहे???  या फिर अपने जीने का तरीका ही बदल दे ???

जी हाँ ऐसा हो सकता है और ऐसा हुआ भी है, ये कहानी है पूर्वी दिल्ली में रहने वाली एक लड़की नव्या की, नव्या यूँ तो बहुत प्यारी और मदद करने वाली लड़की है मगर उसे लड़को से सख्त नफरत है, इतनी नफरत की वो ना  कभी शादी करना चाहती है, और ना ही कभी किसी लड़के का ज़िक्र करती है। 

ख़ैर, यूँ तो इस किस्से में कई किरदार हैं मगर दो किरदार बहुत खास है, मोहिनी और नव्या। ये दोनों दोस्त नहीं बल्कि जिगरी दोस्त हैं। हालाँकि मोहिनी और नव्या दोनों ही दिल्ली की रहने वाली है मगर एक पूरब है तो एक पश्चिम। ये इनके किरदार की ही नहीं बल्कि इनके रहने की दिशाएं भी हैं। 

जी हाँ!  नव्या पूर्वी दिल्ली में रहती है और एक लॉ स्टूडेंट है और मोहिनी पश्चिमी दिल्ली में रहती है, और एक लेखिका है, वो एक प्रसिद्ध लेखिका बनना चाहती थी। आप सोच रहे होंगे की पूरब और पश्चिम भला कैसे मिल सकते हैं?? कोई ना कोई तो डोर जरूर होगी इन दोनों के बीच मगर नहीं ऐसा नहीं है, ना ही ये बचपन की दोस्त हैं, ना एक ही स्कूल में पढ़ती हैं, ना कॉलेज एक है, कुल मिला कर कोई समानता नहीं है, जो इन्हे मिला सके। 

फिर कैसे मिली ये दोनों ????

बचपन से लेकर स्कूल और कॉलेज तक ये दोनों कहीं नहीं मिली, मगर एक चीज़ जिसमें दोनों को दिलचस्पी थी, वो थी "लिखना" बोले तो राइटिंग। यही वो जरिया था जिसके जरिये ये दो अनजान लड़कियां एक दूसरे की जान बन गयी। 

मोहिनी को डायरी और पेन दोनों से बहुत प्यार था, क्यूंकि वो एक प्रसिद्ध लेखिका बनना चाहती थी, तो डायरी और पेन से उसका लगाव लाज़मी था। उसे नए कपड़े और नए जूते इतने आकर्षित नहीं लगते थे जितने की डायरी और पेन लगते थे। 

एक दिन की बात है, मोहिनी पूर्वी दिल्ली की ओर कहीं जा रही थी तभी मोहिनी को एक स्टेशनरी की दूकान पर एक डायरी दिखी जो उसे अपनी तरफ खींच रही थी। मोहिनी उस दुकान पर गयी और उसने वो डायरी  बिना सोचे और पैसे पूछे बिना ही उठा ली। जब वो दुकानदार को पैसे देने लगी तो दुकानदार ने उससे खुले पैसे देने को कहा अब मोहिनी के पास बस एक पांच सौ का नोट था। और दुकानदार के पास खुले पैसे नहीं थे, तो दुकानदार ने कहीं से तीन सौ का इंतज़ाम तो कर लिया मगर उसके पास मोहिनी को  लौटाने के लिए अस्सी रूपये खुले नहीं थे, ये सब होते हुए नव्या देख रही थी, उसने देखा की एक लड़की एक मामूली सी डायरी के लिए कितनी परेशान हो रही है, हालंकि नव्या भी वह कुछ पढ़ने की किताबें लेने ही आयी थी। 

काफ़ी देर तक वो ये सब देखती रही मगर उससे रहा ना गया और आख़िरकार उसने मोहिनी से कहा "सुनिए अगर आप कहें तो मैं आपकी मदद कर सकती हूँ" मोहिनी ने बदले में पूछा की "आपके पास सौ रूपये के छुट्टे हैं?" नव्या ने कहा "नहीं, मगर मेरे पास बीस रूपये हैं, जिससे आपकी मदद हो सकती है, क्यूंकि आपको शायद उतने की ही जरुरत है" अब मोहिनी को एक अनजान से मदद लेना कुछ ठीक नहीं लगा, तो उसने ये कह कर मना कर दिया की "मैं आपको ,और आप मुझे नहीं जानती हो तो मैं कैसे आपसे मदद लूँ ??" इस पर नव्या ने जवाब दिया की "मेरा नाम नव्या है, मैं यही पूर्वी दिल्ली में रहती हूँ, मैं एक लॉ स्टूडेंट हूँ, मेरे ख्याल से मेरे बारे में इतनी जानकारी काफी होगी मुझे जानने के लिए, और आप भी कुछ बता दीजिये अपने  बारे में तो जान पहचान पूरी हो जाएगी ?"

इतना सुनकर मोहिनी हँस पड़ी और उसने नव्या की मदद स्वीकार कर ली।  तो इस तरह ये दो अलग-अलग दिशाएं मिली, मगर ये तो शुरुवात थी। दोनों ने अपने नंबर एक्सचेंज किये, फिर धीरे-धीरे बातें हुई, मुलाकतें हुई। 

दोस्तों कई दफा होता है ना, की जिंदगी के रास्ते में चलते हुए यूँ ही कोई मिल जाता है, मगर उसी यूँ ही मिले इंसान से अचानक एक अटूट सा रिश्ता बन जाता है हमेशा के लिए, या उससे जुडी एक कहानी हमारी जिंदगी का हिस्सा बन जाती है।

अब देखते-ही-देखते मोहिनी और नव्या की दोस्ती गहरी होती चली गयी। उनकी दोस्ती कुछ यूँ गहरी हुई की चोट एक को लगती दर्द दूसरे को होता, भूख एक को लगती खाना दूसरा खा लेता मोहिनी उम्र में नव्या से बड़ी थी इसीलिए काफ़ी हद तक कई बातें वो बिना कहे समझ जाती थी, मगर नव्या की एक आदत थी की वो कभी भी लड़को के बारे में कोई बात करना तो दूर बल्कि लड़कों का नाम आते ही भड़क जाती थी। मोहिनी ने ये देख कर कई दफा नव्या से पूछा की आखिर ऐसी कौनसी बात है, जिसकी वजह से उसे लड़को से इस कदर नफरत है? मगर नव्या ने कभी वो राज़ नहीं खोला। कुछ वक़्त के बाद मोहिनी ने भी पूछना छोड़ दिया। क्यूंकि उन सवालों से नव्या को तकलीफ़ होती थी और मोहिनी, नव्या को तकलीफ नहीं पहुंचा सकती थी। 

एक दिन नव्या और मोहिनी ने मिलने का प्लान बनाया, दोनों मिली और खूब घूमे-फिरे, खाया-पिया, फिर एक जगह बैठ कर दोनों बातें करने लगी, अच्छी-बुरी, पास्ट-फ्यूचर की बातें करने लगी। उन्ही बातों के बीच नव्या ने मोहिनी को उस राज़ से रूबरू करवाया, जिसके बारे में पहले कई दफा मोहिनी ने सवाल किया था मगर नव्या ने कभी उसका जवाब नहीं दिया था।  मगर शायद अब नव्या को भरोसा और हिम्मत दोनों हो चले थे मोहिनी पर, इसीलिए तो उसने हिम्मत की सच कहने की, और उसने कहा "मोहिनी तुम हमेशा मुझसे सवाल करती थी की मैं लड़को से नफरत क्यों करती हूँ, क्यों मुझे लड़को से दोस्ती तो दूर उनका ज़िक्र करना भी नहीं पसंद, तो सुनो , ये किस्सा है जब मैं महज पांच साल की थी, हमारे पड़ोस में एक परिवार रहता था, जिसमे कुल मिलाकर चार लोग थे, मिया बीवी और उनके दो बेटे, एक बेटा मुझसे बड़ा था, जिन्हे मैं भैया कहती थी, और दूसरा कुछ तीन साल का था तो जायज़ है मुझसे छोटा था। शुरुवात में वो हमारी काफ़ी मदद करते थे, और इसी वजह से माँ को उन पर भरोसा हो चला था, मानों की माँ हमसे ज़्यादा उनपर यकीन करती थी। एक दिन हमारे घर में पूजा थी, माँ-पिताजी और बाकि सब, पूजा की तैयारियों में लगे हुए थे, मैं सबसे छोटी थी तो इसीलिए अपने खिलौनों के साथ खेल रही थी। अचानक मेरे कमरे में एक शख्स दाखिल हुआ। मैं उस इंसान को देखकर खुश हो गयी क्यूंकि मुझे घर-घर खेलने के लिए, एक दोस्त चाहिए था , मुझे लगा की ये वही दोस्त है। मगर मैं अनजान थी मेरे साथ होने वाले हादसे से, यूँ तो वो शख्स अक्सर मुझे गोद में उठा लेता था, मगर उस दिन जब उस शख़्स ने मुझे छुआ, तो ना जाने क्यों मुझे अच्छा नहीं लगा, और मैंने उनका हाथ खुदपर से हटा दिया। मगर मुझे क्या मालूम था की, उस दिन के बाद मुझे लड़को से इतनी नफरत हो जाएगी, उस इंसान ने घर में सबके व्यस्त होने का पूरा फायदा उठाया, उस वक़्त मुझे बलात्कार या रेप का मतलब तो नहीं पता था मगर ये एहसास था की मेरे साथ कुछ गलत हुआ है, मैं माँ को बताना चाहती थी मगर ये बात मैं बताती उससे पहले उस शख्स ने कहा "किसी को बताना नहीं, वरना तेरी माँ मुझे कुछ नहीं कहेगी क्यूंकि मैं लड़का हूँ, लेकिन तुझे जरूर मारेगी" माँ की मार का डर कुछ यूँ था मुझे की मैं कभी  उन्हें बता ही नहीं सकी, की उनकी नवी  के साथ क्या हुआ है....ये शख़्स और कोई नहीं बल्कि हमारे पड़ोसी का ही बड़ा बेटा था जिसे मैं भैया कहा करती थी।  यही कारण था जो मुझे लड़को से इतनी नफरत है।" 

ये बताते हुए नव्या की आँखों से आंसू छलक उठे, और मोहिनी को एहसास हुआ की क्यों नव्या को लड़को से इतनी नफरत है, जो उसके साथ हुआ उसके चलते , नव्या की नफरत जायज़ थी...  

लेकिन सवाल ये उठता है की क्या इसे रोका जा सकता था?? 

हाँ! बिलकुल रोका जा सकता था, अगर नव्या की माँ अपने बच्चों पर अँधा नहीं, मगर विश्वास करती और माँ के साथ-साथ अपनी बेटी की दोस्त बनती, अपने बच्चों के दिल में, डर की जगह प्यार इज्ज़त बनाती तो ये हादसा रोकना मुमकिन था।    

और अगर आप ये कहानी पढ़ रहे हैं, तो अपने बच्चों और आस-पास हो रहे इस तरह के हादसों को समझने की कोशिश कीजिये।  

धन्यवाद 



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