मेरा दिल क्यूँ तोड़ दिया???
मैं तो नन्ही सी बच्ची थी,
मेरा दिल क्यूँ तोड़ दिया?,
मेरी माँ ने घर की खातिर,
घर का दामन छोड़ दिया...
भूल नहीं पायी मैं अबतक,
कैसा-कैसा ज़ुल्म किया,
खता किसी की, सज़ा किसी को,
कैसा ये इंसाफ किया???
कभी गिराया, कभी सम्भाला,
सबने इक-इक ज़ख्म दिया,
सज़ा वो देगा ऊपर वाला,
मैंने अपना कर्म किया...
याद है मुझको, वो भी इक दिन,
जब मैंने रोना छोड़ दिया,
गलती उसके बच्चे की थी,
उसने मेरा हाथ मरोड़ दिया...
वो था उसका अपना बच्चा,
मैं ठहरी औलाद किसी की,
सबको दिखता दर्द है अपना,
नहीं यहाँ तकलीफ़ किसी की...
शायद उसे मालूम ना होगा,
कि दर्द मुझे भी होता है,
देख के खाली घर को मेरे,
मेरा दिल भी रोता है...
उसने सोचा मैं पत्थर हूँ,
इसीलिए तो तोड़ दिया,
सीख लिया ज़ख्मों पर हँसना,
अब मैंने रोना छोड़ दिया...
काँच जो टूटे, ज़ख्म है लगता,
दिल ने कब, किसको ज़ख्म दिया,
दिल ही था, कोई काँच नहीं था,
क्या हुआ जो तोड़ दिया??...
हर दिन पूछे ये दिल मुझसे,
माँ की तेरी मज़बूरी थी,
शौक नहीं जो छोड़ दिया,
तू तो थी मासूम सी बच्ची,
फिर तेरा ही दिल क्यूँ तोड़ दिया????
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Bahot khoob.. ek bachi ke dil ki vyatha ko ache se vyakt kiya aapne, aisa laga ki wakai me mera dil toot gaya.. badhai
ReplyDeleteBuhat khoob likha h apne
ReplyDeleteWaaaah kya baat h
ReplyDeleteReally heart touching lines by a daughter to her mother... Really appreciate you to @sanjita.... To worte this thoughts to mother.. 💗
ReplyDeleteInteresting
ReplyDeleteVery very good creation
ReplyDeleteVeryyy nice
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