दो दोस्तों में, ख्यालातों के ज़रिए बातों का सिलसिला कैसे रुका???(भाग -3)

[डिस्क्लेमर: ये कहानी सत्य घटनाओं पर आधारित है, और इसका कोई भी पात्र (character) काल्पनिक नहीं है ]

नमस्कार 🙏 दोस्तों! जैसा की हमने पिछले भाग में कहा था, कि शेखर शर्मा और शायरा के बीच आगे ख्यालातों के ज़रिए क्या बातें हुई और बात कहाँ पहुंची ये इस भाग में आप पढ़ पाएँगे।

शायरा : "आओ कुछ बातें करें, जो लब हैं खामोश अरसों से, 
              चलो उन्हीं लबों से आज, जज़्बातों की बरसात करें,
              ज़्यादा नहीं बस दो-चार वो पहले जैसी मुलाकातें करें,
              आओ फिर से कुछ बातें करें।"       

शेखर  "दो नहीं चाहे चार करों मुलाक़ात, 
              जिसके हर लम्हे में हो एक अनोखी बात,
              चलना हो तो चाओ आखिरी सांस तक,
              वरना रहने दो ये पल-दो-पल का साथ।"     

शायरा :  "पल दो पल के साथ में भी कई दफा,
               ज़िंदगी जीने की वजह मिल जाती है,
               और जो करते हैं वादा ज़िंदगी भर साथ निभाने का,
               कई बार वही वादा-ए-वफ़ाई खुद खुशी की वजह बन जाती है..."

शेखर :  "नहीं चाहिए कोई वादा तुझसे, न है कोई ख़ास उम्मीद,
              ये ज़रूर कहूँगा की, मैं पहचान सकता हूँ तुझे, 
              फिर चाहे मेरे आगे हो लाखों की भीड़।"   

शायरा :  "लाखों की भीड़ में मुझे पहचानोगे कैसे?
               पल दो पल वाली मुलाकात नहीं करोगे तो,
               तो साथ दो दिन का है या ज़िंदगी भर का,
               इस हक़ीक़त को जानोगे कैसे??"

शेखर :  "साथ दो दिन का भी, एक पुरी जिंदगी के बराबर है,  
              तेरी हसीं के लिए तो मेरी जिंदगी न्यौछावर है,
              मेरे लिए हक़ीक़त बस एक तू है,
              बाकि सब तो बस रेत के बराबर है।"   

शायरा :  "यूँ तो बातें हुई हैं हमारे बीच कई बार, मगर मुलाकात तो हुई है सिर्फ़ एक बार,
               भगवान हो क्या जो, दो दिन को ज़िंदगी के बराबर करने की बात करते हो,
               कमाल हो आप शर्मा जी, कि एक ही मुलाकात में ज़िंदगी न्यौछावर करने की बात करते हो..."

शेखर :   "जिंदगी निसार करने के लिए, पूरी ज़िन्दगी नहीं एक मुलाक़ात ही काफी है,
               मिलने के लिए ना जाने ज़िन्दगी कितनी बाकि है,
               लेकिन जब भी मिलो तुम मुझसे,  
               मिल जाये उसमे मुझे जीने की सिर्फ़ एक वज़ह, मेरे लिए इतना ही काफी है।"    
शायरा :  "खुदा करे आपकी ज़िन्दगी पूनम की रात की तरह लम्बी हो,
               मिले खुशियाँ आपको दुनिया भर की, कहीं न कोई कमी हो,   
               और गलती से ग़र आ भी जाये आंसू आपकी आँखों में,
                तो दुआ है मेरी रब से कि वो भी खुशियों की नमी हो।"        
  
शेखर :  अब क्या कहूँ ??? तुमने मेरे लिए कुछ छोड़ा ही नहीं , तुमसे शायरी में जितना नामुमकिन है, मेरे लिए                       बेहतर होगा की मैं हार मान लूँ 🤭✋🤚।   

(और इस तरह एक बार और शायरा और शेखर के ख्यालातों के ज़रिए बातों का सिलसिला फिर रुक गया, मगर  अबकी बार हमेशा के लिए, मगर सिर्फ  शायरियों का बातों का नहीं , आगली बार  फिर कुछ नया लेकर आएंगे )

अगर आपने पिछले  दोनों भाग किसी वजह से मिस कर दिये हैं तो आप नीचे दिए गए लिंक के ज़रिये पढ़ सकते हैं। 



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