आग - जो दिलों में जलानी है


[Written on 2nd DEC, 2019]

याद है वो कहानी, जो हो गयी है कुछ आठ साल पुरानी,
आज फिर वैसी ही एक कहानी किसी ने दोहराई है,
आज फिर मुझे वो कैंडल मार्च याद आयी है।

वैसा ही हुआ है कुछ फिर से जब उस रात उन दरिंदों के अंदर का इंसान मर गया था,
और उस किस्से के बाद हमने दिया उसको नाम निर्भया था।

फिर से एक निर्भया को किसी ने जनम दिया है,
फिर एक मासूम की हँसती खेलती ज़िन्दगी को कुछ हैवानो ने,
दो पल की ख़ुशी के लिए कुचल दिया है।

यूँ तो वो करती थी इलाज़ बेज़ुबाँ जानवरों का,
ये लोग तो उससे भी बद्द्तर निकले,
जिनसे इंसानियत के नाते मांगी थी,
मदद उसने आखिर वही जानवर निकले।

क्या इसका हश्र भी वही होगा जो आशिफ़ा और निर्भया का हुआ था,
रावण को तो मौत की सजा हुई थी,
जब उसने सिर्फ सीता माँ की परछाई को छुआ था।        

आज वैसा इन्साफ हम क्यों नहीं कर पाते हैं,
ऐसी बातें सुनकर हमारे सिर क्यों, झुक जाते हैं?

गुस्सा आ रहा होगा, एक आग जल रही होगी दिल में सुनकर मेरी बातें,
कभी-कभी मेरे दिल में ख्याल आता है, ऐसे हैवान पैदा होने से पहले ही मर क्यों नहीं जाते?
  
दोस्तों क्या फायदा इस आग का जो हर बार एक औरत की परीक्षा ले सकती है,
मगर ऐसे हैवानों को मौत नहीं दे सकती है।

पहले निर्भया की बली, फिर आशिफ़ा मरी, अब प्रियंका रेडडी की कहानी है, 
ये जो आग जल रही है आप सबके दिलों में, बस यही आग उन हैवानों के जिस्म तक पहुंचानी है।
  

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