इंसानियत भूल गया इंसान
आप सबको है, हर बात का ज्ञान,
पढ़-लिख कर भी आज का युवक रह गया है अज्ञान,
पूछ रही धरती आज, पूछ रहा आसमान,
इंसानियत क्यूँ भूल गया आज का इंसान?
कितना दर्द और पीड़ा झेल गई बेज़ुबान,
क्यूँकी वो माँ भी थी, इसीलिए नहीं किया किसी का नुकसान,
चाहती तो कर देती तबाही,
दर्द सहा उसने लेकिन शांत रही ना चिल्लाई।
वो जानवर होके भी वार गई अपनी जान,
समझा गई अर्थ हमें, की व्यर्थ है इंसान,
पूछ रहा है हर कोई, पूछ रहा ब्रह्मांड,
इंसानियत क्यूँ भूल गया आज का इंसान?
कोरोना, भूकंप, बाढ़ है इस बात का प्रमाण,
की इंसान की इस हरकत पर शर्मिंदा भगवान,
आतंकवाद और दंगे कम थे?,जो कर बैठे ये भी अपराध,
ब्रह्मा जी भी पूछ रहे हैं,
इंसानियत क्यूँ भूल गया आज का इंसान?
जो करते रहे यूँ ही अपराध, तो एक बात तुम लो जान,
यही जानवर आकर एक दिन ले जाएंगे तुम्हारे प्राण,
फिर पछताना और कहना खुद से,
काश! इंसानियत को ना भूलता इंसान।
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very beautiful lines.. very nice.
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