लिखना - मेरा जुनून


पहले लिखना बस एक शौक-सा था,
फिर लिखने की आदत हुई,
अब लिखना जैसे जुनून-सा है,
पहले लिखने से दिन में चैन मिल जाता था,
अब लिखना जैसे रातों के सुकून-सा है।

कुछ लिखने वाले ख़यालों के समंदर से शब्दों के मोती चुन लेते हैं,
हमें तैरना नहीं आता, इसलिए हम किनारे पर ही बैठ कर,
ख़्वाबों और ख्यालों का झालर बुन लेते हैं।

सुना है हमने लिखने वाले बड़ी मेहनत करते हैं, कई तो पसीना भी बहाते हैं,
ना जाने वो कौन है जो इतनी शिद्दत से लिख पाते हैं,
पसीने का तो पता नहीं, मगर लिखना अब जैसे मेरी रगों मे बहता खून-सा है। 
हाँ! पहले लिखना बस एक शौक-सा था, 
फिर आदत हुई, अब लिखना जैसे जुनून-सा है।

मेरे कई दोस्त मुझे शायरा कहकर चिढ़ाते हैं,
और उन्हीं चिढ़ाने वालों में से कई तारीफ़ भी कर जाते हैं,
मगर कोई समझाये उन्हें की अभी सफर शुरू हुआ है, मंज़िल अभी बाकी है,
अभी तो बस जुनून चढ़ा है, शिद्दत अभी भी बाकी है,
और जहाँ पहुंची हूँ मैं, वो कामयाबी की ऊँचाई नहीं है,
उंगली पर नाखून-सा है।
पहले लिखना बस एक शौक-सा था, 
फिर आदत हुई, अब लिखना जैसे जुनून-सा है।

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