बंदिश (Bandish)



बंधी हुई हूँ एक अजीब-सी बंदिश में,
मुझे आज़ाद होने दो ना,
दुनिया के आगे तो हमेशा हँसती हूँ,
आज मुझे अपने लिए रोने दो ना।

मानती हूँ मां ने सिखाया था बचपन में,
की स्त्री का दूसरा नाम बलिदान भी होता है,
मगर मेरा सवाल है कि,अपने सपनों की बलि चढ़ने पर ही,
हमारा नाम महान क्यूँ होता है?,

कह दो दुनिया से नहीं बनना मुझे महान,
नहीं देना अपने सपनों का बलिदान,
बिन सपनों के मैं रह जाऊँगी बे-जान,
क्यूँकि, मेरे लिए मेरे सपने ही हैं मेरी जान,
और मेरे सपने ही हैं मेरी पहचान।

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